‘क्या नन भी भारत की नागरिक नहीं हैं, जो न्याय और अदालत से सुरक्षा की हकदार हो?’ पूछती हैं सिस्टर लूसी कलप्पुरा, जिन्हें बिशप फ्रेंको मुलक्कल मामले में पीड़िता का समर्थन करने के लिए फ्रांसिस्कन क्लैरिस्ट कांग्रिगेशन (एफसीसी) से निष्कासित कर दिया गया था।
सितंबर 2018 की शुरुआत से ही केरल में कैथोलिक नन द्वारा फ्रेंको मुलक्कल के खिलाफ असाधारण विरोध देखा जा रहा है। फ्रेंको पर एक नन के साथ दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था। सिस्टर लूसी ने इस मामले में शुरुआत से ही पीड़िता का समर्थन किया है। लेकिन 14 जनवरी 2022 को अतिरिक्त जिला और सत्र अदालत ने उन्हें झटका देते हुए रोमन कैथोलिक बिशप को आरोपों से बरी कर दिया।
सिस्टर लूसी ने कहा, “हर नन अपना जीवन और सब कुछ अपने धार्मिक समुदाय को समर्पित कर देती है। ऐसे में जब इस तरह की अनुचित बात होती है, तो क्या अदालत को हमारी रक्षा नहीं करनी चाहिए? यह अवैध, अनुचित और अत्याचारी है।”
सिस्टर अनुपमा केलमंगलथुवेलियिल, नीना रोज़, जोसेफिन विलूनिकल, एंकिट्टा उरुंबिल, और अल्फी पल्लासेरिल महामारी की चपेट में आने से पहले लॉकडाउन से ही केरल के कोट्टायम जिले के सेंट फ्रांसिस मिशन होम, कुराविलांगड में में रह रही हैं। चूंकि उन्होंने अपने बीच की एक सिस्टर का न्याय के लिए उसकी लड़ाई में समर्थन करने का फैसला किया, इसलिए चर्च के अधिकारियों ने उन्हें त्याग दिया।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक नन ने कहा कि पीड़िता “पूरी तरह से स्तब्ध और लकवाग्रस्त” है, क्योंकि वह महसूस करती है कि उसे अदालत ने निराश किया है। उसने कहा, “यह शक्तिशाली और शक्तिहीन के बीच की लड़ाई है। इसलिए कोर्ट को इस मामले को पीड़िता की नजर से देखना चाहिए था। ऐसा लगता है जैसे अदालत ने उसकी कमजोरी का फायदा उठाया है। ”
सिस्टर लूसी ने बताया, “ऐसा लगता है कि अदालत ने इस पर शोध किया है कि आरोपी के बजाय नन को कैसे दोषी पाया जाए। यह अन्याय है! उसने इतनी बड़े समुदाय के खिलाफ बोलने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। वह सच सामने लाना चाहती थी।”
उन्होंने कहा, “एक असहाय महिला ऐसे पुरुष के खिलाफ लड़ रही है, जिसके पास बहुत सारा पैसा, शक्ति और राजनीतिक संबंध हैं। यह फैसला हमारी न्यायपालिका का अपमान है। अगर बिशप का ड्राइवर या कोई अन्य व्यक्ति आरोपी होता, तो क्या अदालत उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करती? उन्होंने निश्चित रूप से उसे दंडित किया होता।”
‘सेव अवर सिस्टर्स’ फोरम (एसओएस) के संयोजक फादर ऑगस्टीन वटोली ने कहा कि अब जब वह बरी हो गए हैं, तो अदालत कम से कम यह सुनिश्चित कर सकती है कि बिशप को चर्च से संबंधित कोई जिम्मेदारी नहीं दी जाए।
जहां सिस्टर लूसी इस लड़ाई में सबसे आगे हैं, वहीं केरल में अदालत और अपने समुदाय के साथ उनका अपना संघर्ष भी है, जिसे अब तक तीन साल से अधिक का समय हो चुका है।
केरल हाई कोर्ट ने 14 जुलाई 2021 को सिस्टर लूसी को मौखिक रूप से सुझाव दिया था कि उन्हें अपनी सुरक्षा के मद्देनजर वायनाड में कॉन्वेंट खाली करना पड़ सकता है, क्योंकि वह अब एफसीसी की सदस्य नहीं थीं।
कॉन्वेंट ने सिस्टर लूसी पर अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए दावा किया था कि वह कविताएं लिख रही थीं, किताबें प्रकाशित कर रही थीं, कार चला रही थीं और फ्रेंको मामले में पीड़िता का समर्थन कर रही थीं।
लेकिन सिस्टर लूसी का तर्क है कि एक नन के रूप में भी उन्हें अपने दुखी साथी नन के लिए न्याय मांगने के लिए विवेक की स्वतंत्रता होनी चाहिए।
सिस्टर लूसी ने अदालत को बताया था कि उन्होंने अपने खिलाफ बेदखली के आदेश को दीवानी अदालत में चुनौती दी थी, जिस पर फरवरी 2022 में सुनवाई होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि इस पर फैसला होने तक वह कॉन्वेंट में रहना जारी रखना चाहती हैं।
हालांकि, अदालत ने कहा कि उनके पास केवल पुलिस सुरक्षा के लिए याचिका है और वह तब तक उन्हें देने को तैयार है जब तक वह कॉन्वेंट में नहीं रह रही हैं।
सिस्टर लूसी, जिन्होंने 40 से अधिक वर्षों तक कॉन्वेंट में सेवा की है, ने समझाया कि कॉन्वेंट में रहना “बेहद जोखिम भरा” रहा है, जहां उन्हें सभी से दूर रखा जाता है। उनका मानना है कि उन्हें बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, “यहां की नन मुझसे बात करना पाप मानती हैं, इसलिए मैं बहिष्कृत हूं। लेकिन जो कोई भी समुदाय के खिलाफ बोलता है, उसे बाहर करना आदर्श बन गया है। भले ही हमारे पक्ष में सच्चाई हो। ”
उन्होंने कहा, “इतने सारे ननों ने इस प्रतिक्रिया का सामना किया है और बहुतों के साथ अभी भी इस तरह का व्यवहार किया जा रहा है। मैं चर्च के इस अहंकारी रवैये को बदलना चाहती हूं। इसके लिए मुझे समर्थन देने और इस रवैये को बदलने के लिए अदालत की आवश्यकता है।”