गुजरात में विधानसभा चुनाव 2022 में होना है। यानी अभी भी एक साल बाकी है- यह मानते हुए कि मार्च-अप्रैल में ही उत्तर प्रदेश के साथ समय पूर्व चुनाव नहीं होने वाला है, जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है-आम आदमी पार्टी (आप) जैसे गंभीर दावेदार के साथ-साथ भाजपा और कांग्रेस ने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी हैं।
कांग्रेस में अब तक की अव्यवस्था और दौड़ में बने रहने के लिए अजीबोगरीब प्रयोगों में शामिल आम आदमी पार्टी को देखते हुए ऐसा लगता है कि भाजपा इन दोनों से आगे है। इसलिए कि उसके पास पिछले महीने बनी मंत्रियों और मुख्यमंत्री की नई और युवा टीम है।
ऐसे में वाइब्स ऑफ इंडिया ने यह जायजा लिया है कि पार्टियां इस समय क्या कर रही हैं, जब कोविड-19 महामारी में छा गई खामोशी भंग हो चुकी है, चेहरों से मास्क उतर चुके हैं और मिट चुकी हैं सामाजिक दूरियां।
भारतीय जनता पार्टी, जल्दबाजी में:
फरवरी से चले आ रहे भाजपा की चुनावी जीत के सिलसिले से उत्साहित और इस तथ्य से कि उन्होंने पूरे विजय रूपाणी मंत्रिमंडल को बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, गुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल सबसे प्रभावी भूमिका में हैं। अपने दक्षिण गुजरात क्षेत्र के विधायकों को भूपेंद्र पटेल मंत्रिमंडल में वित्त और गृह सहित अच्छे मंत्रालय सुनिश्चित कराने के बाद, वह खुद अब आगे बढ़ चुके हैं।
इसे अहंकार कहें या आत्मविश्वास, पाटिल ने मंगलवार को घोषणा की कि 2022 के चुनावों के लिए 100 मौजूदा विधायकों को हटा दिया जाएगा। हिम्मतनगर में हुए पार्टी एक समारोह में उन्होंने कहा: “मेरे पास काम से संबंधित सिफारिशों के साथ मत आओ। प्रदर्शन करके दिखाओ या भुगतो।”
भाजपा इस समय पूर्व मुख्यमंत्री और उनकी टीम के कारण हुए कथित नुकसान की भरपाई करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है- जिन्हें एक साथ बेदखल कर दिया गया।
इस महीने की शुरुआत में गांधीनगर नगर निगम चुनाव में 44 में से 41 सीटों पर पार्टी की भारी जीत के बाद सीआर पाटिल ने यहां तक कहा, “मंत्रिमंडल बदलने की रणनीति भाजपा के पक्ष में गई।” यह अलग बात है कि फरवरी में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा को भारी जीत मिली थी, जो विजय रूपाणी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुआ था।
सूत्रों ने कहा कि जहां शहरी क्षेत्र भाजपा का गढ़ बना हुआ है, वहीं पार्टी अब उन ग्रामीण क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां कांग्रेस पार्टी का मजबूत आधार है।
कांग्रेस में गुजरात के नए प्रभारी से कुछ उम्मीद:
निराशाजनक देरी के बाद कांग्रेस आलाकमान ने कोविड-19 की जटिलताओं के कारण दिवंगत हो गए राजीव सातव के स्थान पर गुजरात का नया प्रभारी नियुक्त किया है। पार्टी ने इसके लिए राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा को चुना है, जिन्हें वहां कोविड की स्थिति को प्रभावी ढंग से संभालने का श्रेय दिया जाता है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी विश्वासपात्र हैं। बता दें कि दिसंबर 2017 के गुजरात चुनावों में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन में अशोक गहलोत ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
पार्टी को अब अमित चावड़ा और परेश धनानी की जगह नया प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष मिलने की भी उम्मीद है। उन्होंने पार्टी की चुनावी हार के मद्देनजर तीन बार पहले ही इस्तीफा दे दिया था, लेकिन नेतृत्व ने उन्हें लंबे समय तक बनाए रखा, जिससे गुजरात इकाई अधर में पड़ी रही।
रघु शर्मा की विशेषता यह है कि वह आसानी से उपलब्ध रहते हैं और गुटबाजी आदि से ऊपर हैं। इस कारण पार्टी के लिए कुछ करने की उम्मीद लौटी है। समझा जाता है कि शर्मा ने पार्टी को बता दिया था कि गुजरात में भाजपा पर हमला करने के लिए मुद्दों की कोई कमी नहीं है, लेकिन पहली प्राथमिकता घर को व्यवस्थित करना है। दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के राज्य के कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल के साथ हाथ मिला लेने से कांग्रेस को कुछ युवा ऊर्जा मिलने की भी उम्मीद है। उनके पास पार्टी के अभियान को आवश्यक आक्रामकता देने की क्षमता है।
आम आदमी पार्टी, मौके की ताक में:
हाल ही में गांधीनगर नगर निगम चुनाव में 44 सीटों के लिए 21.77% वोट हासिल करने के बाद आम आदमी पार्टी को पहले से ही एक राज्य-स्तरीय अवसर दिखाई दे रहा है। हालांकि आप ने केवल एक सीट जीती, लेकिन उसे यह जीत कांग्रेस की कीमत पर मिली। दो सीटों पर जीतने वाली कांग्रेस का वोट शेयर 2016 में 46.93% था, जो इस बार गिरकर 28.02% ही रह गया। वैसे कांग्रेस और आप को मिले वोट जोड़कर देखा जाए तो बीजेपी के 46.89% की तुलना में 49.79% हासिल किया, जो काफी अधिक है।
फरवरी में सूरत नगर निगम से कांग्रेस का सफाया करने के बाद 27 सीटों पर पार्टी की जीत से आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल उत्साहित हैं। उन्होंने इस सप्ताह की शुरुआत में नई दिल्ली में सूरत के सभी 27 पार्षदों सहित पार्टी की पूरी गुजरात इकाई की बैठक बुलाई, ताकि उन्हें उत्साहित में बनाए रखा जा सके। यह कहने के अलावा कि गुजरात आप को एक बड़ा अवसर प्रदान करता है, केजरीवाल ने उन्हें यह भी कहा कि आगे जाकर ‘बिकाऊ’ नहीं होना चाहिए। वहां मौजूद एक पार्षद के अनुसार, “उन्होंने कहा कि आप के पास पैसा नहीं है, लेकिन आप लोग बहकावे में न आएं और भविष्य के लिए बड़ा लक्ष्य देखें।”
वैसे गुजरात में तीसरा मोर्चा पहले कभी सफल नहीं हुआ है। फिर आप के पास राज्य-स्तरीय नेटवर्क या प्रभावी नेतृत्व भी नहीं है। ऐसे में अगर केजरीवाल की पार्टी साथ नहीं आई तो कांग्रेस के लिए यह निश्चित रूप से खेल बिगाड़ने वाला साबित होगा। कांग्रेस इसे भाजपा की ‘बी’ टीम कह सकती है, लेकिन आप सिर्फ और सिर्फ प्रमुख विपक्षी पार्टी की छोड़ी जगह में ही पैर पसार रही है।