ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन अगले हफ्ते भारत आएंगे। बहुप्रतीक्षित यात्रा में एक मुक्त व्यापार समझौता और सुरक्षा से लेकर यूक्रेन संकट तक के क्षेत्रों में सहयोग को लेकर बात होगी। लेकिन क्या भगोड़े विजय माल्या और नीरव मोदी के प्रत्यर्पण पर चर्चा होगी, जिन पर भारतीय बैंकों का हजारों करोड़ का कर्ज है?
माल्या और नीरव मोदी की वर्तमान प्रत्यर्पण स्थिति पर एक नजर डालें, जिन्होंने भारतीय बैंकों को कुल ₹15,000 करोड़ का चूना लगाया है।
नीरव मोदी
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक से बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का खुलासा होते ही हीरा व्यापारी नीरव मोदी और उसकी पत्नी अमी जनवरी 2018 के पहले सप्ताह में देश छोड़कर भाग गए। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की विभिन्न धाराओं और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं में उनके खिलाफ मामला 31 जनवरी, 2018 को दर्ज किया था।
नीरव मोदी और उसकी फर्मों पर पंजाब नेशनल बैंक की ब्रैडी हाउस शाखा के साथ धोखे से 150 लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी करने और बैंक को 6,498 करोड़ रुपये का चूना लगाने का आरोप है।
मार्च 2019 में जारी प्रत्यर्पण वारंट के तहत गिरफ्तारी के बाद से हीरा व्यापारी इस समय दक्षिण-पश्चिम लंदन के वैंड्सवर्थ जेल में बंद है। उसने मानसिक बीमारी का हवाला देते हुए भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को चुनौती दी हुई है।
इस बीच, 12 अप्रैल को मुंबई की एक अदालत ने नीरव मोदी के सहयोगी सुभाष परब को 26 अप्रैल तक सीबीआई हिरासत में भेज दिया। मोदी की फर्म फायरस्टार डायमंड के उप महाप्रबंधक (वित्त) को सीबीआई अधिकारियों ने उसी दिन मिस्र की राजधानी काहिरा में गिरफ्तार कर भारत भेजा था.
विजय माल्या
शराब कारोबारी, जिसके पास अब बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइंस भी है, पर भारतीय बैंकों से 9,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप है। वह मार्च 2016 से ब्रिटेन में है और कथित धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में भारत में वांछित है।
फरवरी 2019 में ब्रिटेन के तत्कालीन गृह सचिव साजिद जाविद ने विजय माल्या के प्रत्यर्पण के आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। दो महीने बाद वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने माल्या के खिलाफ भारत के सबूतों को बरकरार रखा और उसके प्रत्यर्पण को मंजूरी दे दी।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 10 मार्च को सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ब्रिटेन में मामले में कुछ गोपनीय चल रहा है, लेकिन ब्रिटेन द्वारा सरकार को सूचित किया गया है कि वहां कुछ ऐसा चल रहा है जिसे साझा नहीं किया जा सकता है। हालांकि भारत सरकार का ऐसा रुख नहीं है।
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