कांग्रेस का हिचकोले खाता जी-23 और उसके नेता अब पहले की तुलना में अधिक खुश हो सकते हैं। वे कहीं अधिक असंतुष्ट और तुनकमिजाज बुजुर्ग नेताओं की सदस्यता की उम्मीद कर सकते हैं।
यहां तक कि अधिकांश गुजरात मीडिया, जो सत्ता में बैठे लोगों से कुछ हद तक प्रभावित है, ने कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी में जाने को महत्व नहीं दिया है। हालांकि ऐसा पूरी तरह से नहीं है।
गुजरात में महज 11 महीने की छोटी अवधि को छोड़कर, 1995 के बाद से कांग्रेस लगातार विफल होती रही है। तब शंकरसिंह वाघेला ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से राज्य में शासन किया था।
इसका मतलब है कि 1995 से 2021 तक कांग्रेस की एक पूरी पीढ़ी सत्ता से वंचित रही है। सत्ता सुख से 26 वर्षों तक वंचित रहने के कारण कांग्रेस का आत्मविश्वास रसातल में चला गया है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि युवा, आत्मविश्वासी और दुनिया में बदलाव के लिए तत्पर युवाओं को कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रेरित भी किया है।
कांग्रेस की पहेली
कांग्रेस अक्सर यह दावा करती रही है कि वह गुजरात में अपने वोट शेयर में सुधार कर रही है। हालांकि तथ्य यह है कि वोट शेयर या वोट प्रतिशत के बावजूद कांग्रेस कोई बढ़त नहीं बना पाई है।
गुजरात में कांग्रेस को धन की ही नहीं, युवाओं की भी कमी है। कांग्रेस के साथ बने रहने वाले कई लोगों ने ठेकों, बोलियों और निविदाओं के लिए सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से हाथ मिला लिया है या फिर पार्टी के अंदर की जानकारी दे रहे हैं। गुजरात में जयराजसिंह परमार, मनीष दोशी, इंद्रविजयसिंह गोहिल जैसे कई गंभीर युवा कांग्रेस सदस्य रहे हैं, लेकिन उन्हें पार्टी में वह स्थान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे। वे अब प्रौढ़ हो चुके हैं।
आखिर यह अच्छी खबर क्यों है
हार्दिक पटेल के साथ कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी युवाओं में एक नई उम्मीद जगा सकते हैं। कुछ समय के लिए पहले भी साथ रह चुके मेवाणी और पटेल से अधिक कन्हैया कुमार युवाओं, विशेषकर छात्रों और पेशेवरों के बीच बहुत अच्छे वोट कैचर हो सकते हैं।
कहना ही होगा कि गुजरात जातिगत व्यवस्था में दृढ़ विश्वास रखता है। हार्दिक पटेल पाटीदार हैं, मेवाणी दलित हैं। जबकि कन्हैया कुमार भूमिहार हैं, जिन्हें गुजरात में ऊंची जाति का माना जाता है। यह जाति संयोजन गुजरात के अत्यधिक राजनीतिकरण हो चुके वातावरण में आकर्षण पैदा करता है। कुमार, मेवाणी और निश्चित रूप से पटेल अच्छे वक्ता हैं। वे उम्रदराज कांग्रेसी नेताओं की तुलना में जनता की नब्ज को बेहतर जानते हैं, जो पदों की तलाश में रहते हैं लेकिन अपनी जमीनी पहचान खो चुके हैं।
तीन तरफा लड़ाई की कहानी
गुजरात में मुद्दों की कोई कमी नहीं है। सूची में बेरोजगारी, किसानों के मुद्दे, मध्यम और लघु उद्योग (एमएसएमई) का संकट सबसे ऊपर है। इन मुद्दों पर फोकस करने से आम आदमी पार्टी (आप) को काफी फायदा हो रहा है।
गुजरात आप में लगभग सभी नेता 45 वर्ष से नीचे हैं। कुमार, मेवाणी, पटेल के अलावा एक ओबीसी और एक मुस्लिम चेहरे वाली यह युवा टीम आप और भाजपा के गणित को गड़बड़ा सकती है। यकीनन यह पहली बार है, जब गुजरात में भाजपा, कांग्रेस और आप के बीच वास्तविक रूप से त्रिकोणीय चुनावी लड़ाई है।
भाजपा पूरी तरह से हिंदुत्व और मोदी या मोदी और हिंदुत्व पर निर्भर है। इसमें आप भी पीछे नहीं है। मंदिर पर्यटन वाली आप की हालिया पहल से उसे भाजपा के कुछ मतदाताओं को आकर्षित करने में मदद मिल रही है। लेकिन निश्चित रूप से, अंत में आप की जीत का अंतर केवल एआईएमआईएम (AIMIM) के साथ-साथ कांग्रेस की संख्या को ही प्रभावित करेगा।
गुजरात में कुमार और मेवाणी कांग्रेस में जो सबसे बड़ा परिवर्तन लाते हैं, वह है- विद्रोहशीलता, जिद और दुस्साहस, जो सभी क्रांतियों में व्यवस्थाओं को पलटने के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित होते हैं।
गुजरात में लगातार हार के बाद कांग्रेस ने अपना जादू, लड़ाई की भावना, वह साहस खो दिया है। जिसे गुजरात ने 1970 के दशक में नव निर्माण आंदोलन की पृष्ठभूमि बनते देखा था। ऐसा आंदोलन जो जयप्रकाश नारायण की अगुआई में भ्रष्टाचार के खिलाफ विशुद्ध रूप से छात्र-संचालित और समाजवाद की कामना वाला था।
कुमार, पटेल और मेवाणी नव निर्माण आंदोलन की वही चिंगारी लेकर आए हैं। इस बार लड़ाई क्रोनी कैपिटलिज्म, कोविड-19 कुप्रबंधन, मनगढ़ंत सरकारी झूठ, प्रचार और निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ होगी। गुजरात में इस समय सत्ता से वंचित और बेदखल मनःस्थिति में रह रहे कांग्रेस के वर्तमान नेता इसकी शुरूआत नहीं कर सकते। वे थके हुए हैं, निराशावादी हैं। सबसे बड़ी बात कि उन्होंने हार मान ली है।
इम्मानुएल कांट ने कहा था कि सिद्धांत के बिना अनुभव अंधा होता है, लेकिन अनुभव के बिना सिद्धांत भी केवल बौद्धिक नाटक ही है। आम आदमी पार्टी यानी आप गुजरात में इस महान सिद्धांत यानी अनुभवहीनता से पीड़ित है। कांग्रेस अगर (और यह अगर बहुत भारी वाली है) इन नए आए युवाओं के सिद्धांतों और विचारधाराओं के साथ अपने अनुभव का तालमेल बिठाने का फैसला करती है, तो यकीनन फिर से जादू पैदा हो सकता है। एक ऐसा जादू जो गुजरात के लोगों को भारतीय राष्ट्रवाद और हिंदू राष्ट्रवाद के बीच थाह दे सकता है।
गुजरात में समस्या यह है कि हिंदू धर्म उर्फ मोदित्व का संगम अनजाने में भाजपा को फायदा पहुंचा रहा है। उधर कांग्रेस के इन नए सितारों को भले ही नीचे से ऊपर तक शुरुआत करनी होगी, लेकिन वे एक वैकल्पिक राजनीतिक विचार और नेतृत्व को सामने ला सकते हैं।
क्या गुजरात में कांग्रेस की वापसी होगी?
इसके पास एक ऐसा नेतृत्व है जो अपने ही जाल में नहीं फंसा है, बल्कि जो लोगों की नब्ज को समझता है और निडरता और मुखरता से आवाज उठाता है। केवल युवा ही एक वैकल्पिक कांग्रेस की पेशकश कर नया सामाजिक ब्लॉक बना सकते हैं, जो न केवल जनता के साथ कांग्रेस के अलगाव को दूर कर सकता हैं बल्कि जनता की नब्ज और हताशा को चतुराई से समझ भी सकते हैं।
बता दें कि 2017 में भाजपा ने अपना सबसे खराब प्रदर्शन दिया था और कांग्रेस 1995 के बाद पहली बार भगवा उछाल को दो अंकों के आंकड़े तक खींच लाने में सफल रही थी। हालांकि, भाजपा का वोट प्रतिशत अभी भी कांग्रेस की तुलना में 7.6 प्रतिशत अधिक है। इस बार आप भी पूरी तरह से मैदान में है।
कुमार और मेवाणी के जुड़ने से युवाओं में काफी जोश आया है, जिसकी गूंज शैक्षिक परिसरों तक में पहले नहीं सुनी जाती थी। सबसे बढ़कर वे मुखर, जोशीले और बेदाग राजनीतिक के रूप में जाने जाते हैं।
कुमार भले ही बिहार में बेगूसराय लोकसभा सीट पर एक वरिष्ठ भूमिहार नेता से चार लाख से अधिक मतों से हार गए हों, लेकिन हमें यह याद रखने की जरूरत है कि गिरिराज सिंह जीते क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल भी मैदान में था और दो लाख से अधिक वोट उसके खाते में चले गए थे। कुमार आने वाले महीनों में बहुत ही महत्वपूर्ण आवाज बनने जा रहे हैं, लेकिन उनके गृह राज्य बिहार में यह देखा जाना बाकी है कि राजद नेता तेजस्वी यादव भाजपा का सफाया करने के लिए उनके साथ मिलकर काम करते हैं या नहीं। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं तो कुमार के लिए बिहार में अच्छा मौका नहीं है।
गुजरात के वर्तमान वरिष्ठ नेताओं ने अपना प्रभुत्व खो दिया है और उनमें से कई ने निजी व्यावसायिक हितों को बढ़ावा देने के लिए निगमों से लेकर विधानसभा और संसद तक विभिन्न स्तरों पर भाजपा के साथ समझौता भी कर लिया है।
दरअसल, इस समय गुजरात कांग्रेस के पास किसी पूर्णकालिक राजनेता की कमी है। पार्टी में शामिल हुए ये नेता इस परिदृश्य को बदल सकते हैं और पैसे से प्रभावित भी नहीं होंगे, जो गुजरात में सबसे महत्वपूर्ण बात है। भाजपा ने गुजरात से ही अपनी “खरीद-फरोख्त” की कवायद शुरू की थी और वह अभी भी यहीं है कि वे सबसे शक्तिशाली हैं। युवा अक्सर पैसे या पदों के वादों से कमजोर और लालच में आ जाते हैं। ऐसा ओबीसी के सबसे प्रतिभाशाली युवाओं में से एक अल्पेश ठाकोर के साथ हुआ था, जिन्होंने पहले बीजेपी को चुना, फिर कांग्रेस में गए, और फिर खुद को पूरी तरह से अलग-थलग और कटा हुआ पाते हुए बीजेपी में लौट आए।
कांग्रेस के लिए हमेशा हितैषी रहे हैं वामपंथी झुकाव वाले मध्यमार्गी
हां, मेवाणी और कुमार को बीजेपी और आप का सामना करना पड़ेगा, लेकिन इससे भी ज्यादा उन्हें अपनी ही पार्टी में उन वरिष्ठों का सामना करना पड़ेगा जो युवाओं को आगे नहीं बढ़ने देने के लिए कुख्यात हैं। ऐसे में राहुल गांधी या प्रियंका गांधी को इनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने की जिम्मेदारी लेनी होगी। क्योंकि, जैसा कि लॉरेंस ड्यूरेल ने कहा है- यह प्यार नहीं है जो अंधा है, बल्कि ईर्ष्या है। ऐसे में पार्टी के भीतर ही रंजिश है।