बीमा कंपनियों और अस्पताल के बीच चल रहे विवाद में उपभोक्ताओं के पिसने की बारी आ गयी है | बीमारी के वक्त किसी के आगे हाथ ना फैलाना पड़े इसलिए हम आप चिकत्सीय बीमा कराते हैं ,उसके लिए निश्चित राशि का भुगतान करते हैं ताकि बीमारी के वक्त नगद भुगतान अस्पताल को नहीं करना पड़े लेकिन अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन (AHNA) के प्रतिनिधियों ने घोषणा की कि अगर एसोसिएशन की सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के साथ जो मसले हैं उनका समाधान नहीं हुआ तो 15 जनवरी, 2022 के बाद अपने सदस्य अस्पतालों और नर्सिंग होम में कैशलेस सुविधाओं को बंद कर देंगे |
अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ भरत गढ़वी के अनुसार, निजी बीमा कंपनियों द्वारा हर साल कीमतों में बदलाव के मुकाबले पिछले पांच वर्षों से विभिन्न प्रक्रियाओं और अस्पताल में भर्ती होने के शुल्क में वृद्धि नहीं किया गया है। इसके लिए उन्होंने चार सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों – न्यू इंडिया एश्योरेंस, ओरिएंटल इंश्योरेंस, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और नेशनल इंश्योरेंस का विशेष तौर से उल्लेख किया | डॉ गढ़वी के मुताबिक चिकित्सा प्रणाली इन सालों में बेहतर हुयी है , यह जीवन से जुड़ा हुआ अहम मसला है इसलिए लागत भी बढ़ी है | उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा एमआरआई और सीटी स्कैन नियमित प्रक्रियाएं बन गई हैं जिससे लागत बढ़ गई है। बीमा कंपनियां उपयोग किए गए डिस्पोजेबल के लिए भुगतान करने से इनकार करती हैं, जिसमें कीटाणुशोधन शुल्क या दस्ताने के लिए शुल्क शामिल है। नियमित रूप से डिस्चार्ज होने में 30 मिनट का समय लगता है लेकिन इन कंपनियों के बीमा वाले मरीजों को छह घंटे या उससे अधिक या कभी-कभी एक दिन की देरी भी लगती है।
लेकिन इन सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों ने अपने बुनियादी ढांचे को आधुनिक नहीं किया है और जब तक वे ऐसा नहीं करती हैं, तब तक ऐसी समस्याएं बनी रहती हैं। हमारा सुझाव है कि यदि मरीज उचित स्वास्थ्य सेवा चाहते हैं तो उन्हें इन चार कंपनियों की सेवाओं का लाभ नहीं उठाना चाहिए।
AHNA के लगभग 100-125 अस्पतालों और नर्सिंग होम में 15 जनवरी, 2022 के बाद कैशलेस भुगतान बंद होने की उम्मीद है। कैशलेस भुगतान में रोक का मतलब होगा कि एक मरीज को अस्पताल में चिकित्सा सेवाओं के लिए भुगतान करना होगा और बाद में किए गए खर्च का दावा करना होगा। बीमा कंपनियों द्वारा शिकायतों में मनमानी कटौती के साथ ही अस्पतालों को भुगतान में “तीन से छह महीने तक की देरी” शामिल है, एएचएनए के अनुसार 30 दिनों के भीतर पूरा भुगतान होना चाहिए | साथ ही तीसरे पक्ष के प्रशासकों (टीपीए) में कोई योग्य डॉक्टर नहीं है। दावों का यथोचित और न्यायोचित आकलन करें और न ही अस्पताल, बीमा कंपनी और टीपीए के बीच त्रिपक्षीय समझौता स्थापित हो। टीपीए एक वह संस्था है जो बीमा कंपनियों और अस्पताल प्रशासन के बीच निर्णायक संस्था है | आइकन अस्पताल के मालिक डॉ मनीष भटनागर ने कहा, “हम अपने मरीजों को असुविधा नहीं पहुंचाना चाहते हैं, लेकिन इन बीमा कंपनियों के साथ व्यापार करना खराब व्यवसाय है |
हम उपभोक्ता मुकदमों को आगे बढ़ाते हैं और इस तरह की अक्षमता से निपटना हमारे लिए परेशानी का सबब है। अस्पतालों के लिए शुल्क तय करने की कोई पारदर्शी प्रक्रिया नहीं है। दरों में पिछला संशोधन 2014 में किया गया था लेकिन अस्पतालों को 2016 तक मंजूरी मिल गई थी। आमतौर पर सार्वजनिक बीमा कंपनियां हर पांच साल में एक बार दरों में संशोधन करती हैं। हम कुछ अस्पतालों को बीमा कंपनियों द्वारा तदर्थ मनमाना लाभ दिए जाने के बजाय दरों और समझौतों में एकरूपता की मांग कर रहे हैं, जहां वे विशेष अस्पतालों को बेहतर दर प्रदान करते हैं।
मसला यदि नहीं सुलझता तो मरीजों को और परेशान होने के दिन हैं |