राजकोट: कच्छ के रण में वन्यजीव कार्यकर्ताओं ने प्रसिद्ध जंगली गधा अभयारण्य (Wild Ass Sanctuary) के अंदर कथित अतिक्रमण (encroachment) पर गंभीर चिंता जताई है। इसलिए कि यह संरक्षित जानवर का अंतिम निवास स्थान है, जिसे स्थानीय रूप से घुड़खर के नाम से जाना जाता है। कार्यकर्ताओं ने राज्य के वन और पर्यावरण मंत्री मुलु बेरा से फौरन दखल देने की मांग की। उनके मुताबिक, नमक बनाने वाली कुछ बड़ी यूनिटों ने अभयारण्य के अंदर कुछ हिस्सों पर अतिक्रमण कर लिया है और अपनी मशीनरी का इस्तेमाल कर रही हैं।
“संकटग्रस्त” पशु के रूप में सूचीबद्ध (listed) जंगली गधा दरअसल IUCN द्वारा वन्यजीव संरक्षण कानून(Wildlife Protection Act) के तहत एक संरक्षित जानवर है। अभयारण्य कच्छ के छोटे रण के 4,953 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। 2020 की जनगणना के अनुसार, अभयारण्य में जंगली गधे की आबादी 6,500 से अधिक है। यह जानवर अभयारण्य क्षेत्र के बाहर सुरेंद्रनगर जिले के मूली और लखतर तालुका में भी पाया जाता है। रण में पाई जाने वाली अन्य प्रजातियों में चिंकारा, काला हिरन, हिरण और लकड़बग्घा हैं। वैसे यह कई प्रवासी पक्षियों (migratory birds) का घर भी है।
दिशा निर्देश समिति, ध्रांगधरा और कई कार्यकर्ताओं ने पिछले तीन हफ्तों में बेरा और वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की है। उनसे इन अवैध गतिविधियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा है। उन्होंने बताया है कि मरुस्थल (desert) के उत्तरी भाग में मंदारकी और वेणसर गांवों के बीच की जमीन पर कुछ बड़े नमक निर्माताओं ने कब्जा कर लिया है। वे इंडस्ट्रियल उपयोग के लिए नमक का उत्पादन करते हैं। वे अर्थ मूवर्स जैसी भारी मशीनरी का उपयोग कर रहे हैं, जो इस जंगली गधे के साथ-साथ पूरी इकोलॉजी के लिए खतरनाक हैं।
बता दें कि कच्छ के रण में पीढ़ियों से नमक बनाने वालों को अगरिया के नाम से जाना जाता है। इसके लिए उनके पास 10 एकड़ से कम जमीन है और वे भारी मशीनरी का उपयोग नहीं करते हैं, जो अभयारण्य क्षेत्र के अंदर प्रतिबंधित है। दिशा निर्देश समिति के जितेंद्र राठौड़ ने कहा, ‘हमने उस जगह का दौरा किया जिस पर बड़े उद्योगपतियों ने कब्जा कर रखा है। ये लोग अवैध खनन में भी शामिल हैं जो इकोलॉजी के लिए बड़ा खतरा है। क्षेत्र को पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र (eco-sensitive zone) के रूप में घोषित किया गया है, लेकिन यह केवल कागजों पर ही रह गया है।
कार्यकर्ताओं ने कहा कि रण में मानसून के दौरान विभिन्न तलछट (sediments) अपने आप जमा हो जाती है, जो सैकड़ों गांवों में कृषि भूमि को रेगिस्तान बनने से बचाती है। उनका दावा है कि यह अवैध गतिविधि इन तलछटों को नष्ट कर देगी। एक अन्य स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता चतुर चमारमारी ने कहा, “हमने इस मुद्दे को कई बार वन के उप संरक्षक (deputy conservator) के सामने उठाया है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई है।” संपर्क करने पर जंगली गधा अभयारण्य, ध्रांगधरा के उप वन संरक्षक डीएफ गढ़वी ने कहा, “7 जनवरी को हमने उन लोगों के साथ बैठक बुलाई है, जिन्होंने अतिक्रमण की शिकायत की है। हमने उनसे सबूत देने के लिए कहा है, जिसके आधार पर जांच शुरू की जाएगी।”
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