गुजरात के मुख्य वन संरक्षक (Chief Forest Conservator) ने एक आदेश जारी कर कोनोकार्पस पेड़ (Conocarpus tree) के रोपण पर रोक लगा दी है क्योंकि यह ‘विदेशी’ प्रजाति जमीन में गहराई तक जाती है और इतनी अधिक बढ़ जाती है कि संचार केबल, जल निकासी लाइनों और पेयजल पाइपलाइनों को नुकसान पहुंचाती है।
शीर्ष वन अधिकारी एस.के. चतुर्वेदी के इस पेड़ के रोपण पर प्रतिबंध लगाने वाले पत्र में आगे बताया गया है कि इस पेड़ में फूल सर्दियों में लगते हैं और इससे फैलने वाले कण सर्दी, खांसी, अस्थमा, एलर्जी आदि का कारण बनते हैं जो आस-पास के मनुष्यों को नुकसान पहुंचाते हैं।
इसलिए वन विभाग ने नर्सरी, वन क्षेत्र, राजस्व क्षेत्र और अन्य जगहों पर इस प्रजाति के पेड़ों के रोपण पर प्रतिबंध लगा दिया है और विभाग से इस पेड़ और इससे होने वाले नुकसान के खिलाफ जागरूकता पैदा करने को कहा है।
पहले केरल और दिल्ली जैसे राज्यों और बाद में तेलंगाना ने भी अत्यधिक पानी की खपत या ऐसे अन्य पर्यावरणीय कारणों से इस पेड़ के उपयोग पर रोक लगा दी है, हालांकि यह प्रजाति अपने चमकदार गहरे हरे पत्तों के साथ सजावटी मूल्य के लिए सार्वजनिक स्थानों पर खास पहचान रखती है।
साबरमती रिवरफ्रंट (Sabarmati riverfront) और राजकोट में राम वन (Ram Van) में स्थानीय प्रशासन ने भी इन स्थानों को सजाने के लिए इस पेड़ का व्यापक उपयोग किया है। वडोदरा में नगर निगम द्वारा लगभग 25,000 कोनोकार्पस (Conocarpus_ पौधे लगाए गए हैं।
फायदा यह है कि यह प्रजाति गोजातीय या जंगली शाकाहारी जानवरों के लिए बहुत स्वादिष्ट नहीं है और यह तेजी से बढ़ने वाली सदाबहार प्रजाति है जो चट्टानी इलाकों में भी उग सकती है जहां अन्य स्थानीय प्रजातियां जीवित नहीं रहती हैं।
अहमदाबाद नगर निगम (Ahmedabad Municipal Corporation) ने किसी भी नए वृक्षारोपण में प्रजातियों का उपयोग नहीं करने और मौजूदा पौधों को उखाड़ने के बजाय, कम प्रतिकूल प्रभाव के लिए उन्हें न्यूनतम स्तर तक काटने की योजना बनाई है।