2022 के गुजरात विधानसभा चुनाव से ढाई साल पहले हुए स्थानीय निकाय निकायों के चुनावों में एक साथ दो दलों ने प्रवेश किया उसके बाद जो नतीजे आए वो चौंकाने वाले थे। यह पार्टी कोई और नहीं बल्कि असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM (‘ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन’)और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी है। सूरत की सफलता के बाद आम आदमी पार्टी पूरे गुजरात में ” झाड़ू ” घुमाने का दम भर रही है , ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन अहमदाबाद नगर निगम में उपस्थिति के बावजूद महज 13 सीट पर चुनाव लड़ रही है।लेकिन वह प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बने हुए हैं।
2022 के विधानसभा चुनाव के पहले 2020 के अंतिम महीने में हुए स्थानीय निकाय में AIMIM अहमदाबाद नगर निगम की 21 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, जिनमें से उसे 7 पर जीत मिली. AIMIM के पैनल ने जमालपुर और मकतमपुरा की सभी सीटों पर जीत हासिल की है. दिलचस्प बात यह है कि ये सभी सीटें उन्होंने कांग्रेस से जीती थीं।पंचमहल जिले की 44 सदस्यीय गोधरा नगरपालिका में, पार्टी ने 8 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें से उसने 7 सीटों पर जीत हासिल की। यहां भी बीजेपी 18 सीटों के साथ पहले नंबर पर रही, जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक सीट आई. यह परिणाम ओबैसी के लिए गुजरात के सियासी आसमान में ” पंतंग ” उड़ने के लिए अनुकूल हवा का संकेत था , विदित हो पतंगबाजी के लिए गुजरात प्रसिध्द है और AIMIM चिन्ह भी पतंग है।
AIMIM की नजर राज्य में करीब 9. 67 फीसदी आबादी वाले मुस्लिम वोट बैंक पर है.गुजरात 26 सीटों पर मुस्लिम प्रभावी हैं। जबकि 9 सीट ऐसी हैं जिनमे अगर मुस्लिम मत गोल बंद हो जाये तो परिणाम एकतरफा रहे लेकिन ऐसा होता नहीं। गुजरात के मुस्लिम के लिए सबसे बेहतर समय 1985 का था जब 8 मुस्लिम विधानसभा में थे। उसके बाद मुस्लिम जनप्रतिनिधित्व विधानसभा में कम होता गया। गुजरात में 2022 में कांग्रेस ने 3 मुस्लिम विधायकों को रिपीट करते हुए कुल 6 टिकट दी है जबकि आम आदमी पार्टी ने 2 मुस्लिम प्रत्याशी दरियापुर से जावेद कुरैशी और जमालपुर से हारून कुरैशी को मैदान में उतारा है। ओवैसी अपनी सभाओं में लगातार यह मुद्दा उठाते हैं कि 12 प्रतिशत पटेल यदि गुजरात में राज कर रहे हैं तो मुस्लिम पीछे क्यों है ? इसका दोषी वह कांग्रेस को मानते हैं। 2017 में कांग्रेस से तीन मुस्लिम विधायक चुने गए थे। 2022 में AIMIM ने तीनो सीट पर अपने प्रत्याशी उतार कर उनकी राह मुश्किल कर दी है।
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अपने लक्षित इलाकों में लगातार दौरा कर रहे हैं। भाजपा की बी टीम का आरोप झेल रही AIMIM के प्रत्याशी कई सीटों पर समीकरण बिगाड़ते दिख रहे हैं। एआईएमआईएम ने दो हिंदुओं और 12 मुसलमानों को टिकट देते हुए विधानसभा चुनाव में 14 सीटों पर उम्मीदवार उतारे . अहमदाबाद की बापूनगर सीट पर एआईएमआईएम के उम्मीदवार शाहनवाज पठान ने कांग्रेस के विधायक हिम्मत सिंह पटेल को समर्थन देने के लिए अपना पर्चा वापस ले लिया है.शाहनवाज खान पठान कांग्रेस के पूर्व नगरसेवक मुश्ताक खान पठान के भतीजे हैं. शाहनवाज के नामांकन वापस लेते ही हिम्मत सिंह ने राहत की सांस ली। इन 13 सीटों में से फिलहाल कांग्रेस के पास 7 और बीजेपी के पास 6 सीटें हैं. अकेले बडगाम में ओवैसी चार सभा कर चुके है , जहां से दलित आंदोलनकारी जिग्नेश मेवाणी विधायक हैं।
आश्चर्य नहीं कि गुजरात चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एआइएमआइएम की उपस्थिति मात्र से कांग्रेस के पेट में खलबली मच जाती है, क्योंकि मुस्लिम मतदाता अब भी कांग्रेस के साथ बहुतायत गोलबंद हैं। कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व सत्ता हासिल करने में विफल रहता है, और प्रभावी विपक्ष साबित नहीं हो सकता। ऐसे में गुजरात में तेज तर्रार और विवादित बयान देकर आक्रामक रुख अपनाने वाले ओवैसी की मौजूदगी कांग्रेस के मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी कील ठोंक सकती है. एआइएमआइएम के गुजरात प्रमुख सबीर काबलिवाला कांग्रेस से विधायक रह चुके है , एआइएमआइएम से जुड़े हुए ज्यादातर लोग काबलिवाला की तरह किसी ना तरह कांग्रेस से जुड़े रहे हैं।
वांकानेर से लगातार तीन बार जीत रहे कांग्रेस विधायक जावेद पीरजादा कहते है , ओबैसी की पूरी कोशिश मुस्लिम वोटों के बिखराव की है। वह भाजपा के इशारे पर खेल रहे हैं , सबीर काबलिवाला की भाजपा नेताओं से नजदीकी और मुलाकात जगजाहिर है। मुस्लिम समझ रहा है की वह किसको फायदा पंहुचा रहे है , वैसे भी मुस्लिम वोटों को बाटने के लिए भाजपा कितने मुस्लिम प्रत्याशियों को निर्दलीय के तौर पर खड़ा करती है।
AIMIM के गुजरात प्रमुख और कांग्रेस के पूर्व विधायक साबीर काबलिवाला भाजपा से किसी तरह की मिलीभगत से इंकार करते हुए कहते हैं , कांग्रेस ने कुल 6 मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे है।वह खुद मुस्लिम समाज का इस्तेमाल वोट बैंक के तौर पर कर रही है। मुस्लिम दलित से भी विकास में पीछे है , यह सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है , इसका दोषी कौन है। हमने कुछ सीट पर ही प्रत्याशी खड़े किये हैं, बाकी वह क्यों नहीं जीतते।
राजनीतिक विशेषज्ञ घनश्याम कहते है ओबैसी को पता हैं की उन्हें किनका वोट मिल सकता है और किनका नहीं। भूतकाल में वह आदिवासी दलित मुस्लिम समीकरण बनाने के लिए छोटू वासवा की बीटीपी से गठबंधन किया था ,लेकिन उन्हें परिणाम नहीं मिला। इसलिए वह लक्षित सीट पर चुनाव लड़ रहे है , काबलिवाला के अलावा कोई गंभीर उम्मीदवार उनके पास नहीं है लेकिन वह नुकसान तो कुछ जगह कांग्रेस को कुछ जगह नुकसान तो कर ही सकते है.
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