उत्तरप्रदेश में पुरुष मतदाताओं की अनुपस्थिति का किसे होगा फायदा

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उत्तरप्रदेश में पुरुष मतदाताओं की अनुपस्थिति का किसे होगा फायदा

| Updated: March 8, 2022 21:03

उत्तर-प्रदेश में चुनावी यात्रा के दौरान, हमने गांवों और कस्बों में सैकड़ों मतदाताओं से बात की. इनमें महिला और पुरुष, दोनों ही शामिल थे. ऐसा लगता है कि जो पुरुष मतदाता वोट नहीं दे पाए उनमें अधिकतर प्रवासी मजदूर थे.

उत्तर-प्रदेश के विधानसभा चुनाव के सात चरणों के मतदान के खत्म के साथ ही विभिन्न एजेंसियो से एग्जिट पोल जारी किया , जिनमे भाजपा पर एक बार फिर से मतदाताओं ने भरोसा जताया है लेकिन अगर ऐसा हुआ है तो हुआ क्यों है , समाजवादी पार्टी से कहा चूक रह गयी , कहा भाजपा को बढ़त मिली , यह जानने के लिए मतदान प्रतिशत को समझना आवश्यक है।

एनडीटीवी इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिला मतदाताओं की तुलना में पुरुष मतदाताओं की संख्या में इस बार भारी कमी देखी गई. इस तरह के मतदान और इसके असर के बारे में विरले ही चर्चा होती है. 2017 की तरह इन चुनावों में भी पूर्वी उत्तर-प्रदेश में पुरुष मतदाताओं ने महिला मतदाताओं की तुलना में 10% कम वोट दिए. जबकि केंद्रीय और पश्चिमी उत्तर-प्रदेश में महिला और पुरुष मतदाताओं की संख्या लगभग समान रही.बहुत पुरानी बात नहीं है जब भाजपा के पास महिला मतदाताओं की तुलना में पुरुष मतदाताओं का अधिक समर्थन था.

नोट: पुरुष मतदाताओं की संख्या में यह गिरावट केवल पांचवे, छठे और सातवें फेज में 171 विधानसभा क्षेत्रों में दर्ज की गई. इनमें पूर्वी यूपी शामिल है. बाकि के 202 विधानसभा क्षेत्रों में पश्चिमी, केंद्रीय यूपी आते हैं, जहां पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्य लगभग एक समान है.

यह कौन पुरुष मतदाता हैं जिन्होंने मतदान नहीं किया?

पूर्वी उत्तर-प्रदेश में चुनावी यात्रा के दौरान, हमने गांवों और कस्बों में सैकड़ों मतदाताओं से बात की. इनमें महिला और पुरुष, दोनों ही शामिल थे. ऐसा लगता है कि जो पुरुष मतदाता वोट नहीं दे पाए उनमें अधिकतर प्रवासी मजदूर थे. जो प्रदेश के दूसरे शहरों में अपने पूर्वी उत्तर-प्रदेश के गांवों से दूर काम कर रहे थे. उनके पास घर वापस आकर मतदान करने के लिए ना ही पैसा है और ना ही छुट्टी. हालांकि, राज्य के भीतर बड़े शहरों में काम करने वाले वोट डालने लौटते हैं. पूर्वी उत्तर-प्रदेश में राज्य के अन्य स्थानों की तुलना में प्रवासी मजदूर अधिक हैं, क्योंकि यह उत्तर-प्रदेश का सबसे गरीब इलाका है.


चुनाव आयोग को गरीब प्रवासियों के लिए इस समस्या पर ध्यान देना होगा कि उनके मतदान के अधिकार में बाधा आ रही है. अधिकतर प्रवासियों के पास वैध आधार कार्ड होता और अन्य सबूत भी होते हैं, जिनसे यह साबित हो सकता है कि वो असल मतदाता हैं. लेकिन यह दुखद है कि वो अपने गांव मतदान के लिए लौटने की क्षमता नहीं रखते.

मतदान से गैरहाजिर इन लाखों पुरुष मतदाताओं से किस पार्टी को फायदा होता है?

बहुत पुरानी बात नहीं है जब भाजपा के पास महिला मतदाताओं की तुलना में पुरुष मतदाताओं का अधिक समर्थन था. 2014 के चुनाव में दिखा था कि भाजपा के पास पुरुष मतदाता 19% अधिक थे और महिला मतदाता 9% अधिक थीं. इससे यह लगता है पूर्वी उत्तर-प्रदेश में गैरहाजिर मतदाताओं से नुकसान भाजपा की जीत की संभावनाओं को हो सकता है.

हालांकि, यह 2022 में नाटकीय तौर से बदला हो सकता है. अब भाजपा का वोट आधार महिला वोटरों में पुरुषों की तुलना में अधिक हो गया हो सकता है. भाजपा ने अपनी जनकल्याण योजनाओं से महिला वोटरों को लुभाने की पूरी कोशिश की है. शायद सबसे अधिक सफल योजना गैस सिलेंडर बांटने वाली और हाल ही में फ्री राशन बांटने वाली रही.

इसी के साथ पुरुष मतदाताओं में भाजपा की लोकप्रियता कम भी हो सकते हैं. ख़ासकर प्रवासी मजदूरों में जिन्होंने कोरोना के समय बेहद मुश्किल समय देखा है. अगर ऐसा हुआ तो, उत्तर-प्रदेश में गैरहाजिर पुरुष मतदाताओं के होने से भाजपा को फायदा होगा अगर महिला वोटर अधिक रहीं हो, जो कि साफ तौर पर ऐसा हुआ है.

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