जम्मू-कश्मीर में जेड प्लस सिक्योरिटी के लेकर पीएमओ के फर्जी अधिकारी के तौर किरण पटेल की गिरफ्तारी के बाद अचानक गुजरात में मुख्यमंत्री कार्यालय में हलचल बढ़ गयी थी। कारण था किरण के साथ अमित पंड्या की संलिप्तता। अमित पंड्या ना केवल भाजपा से जुड़े थे ,बल्कि उनके पिता हितेश पंड्या मुख्यमंत्री कार्यालय में जनसम्पर्क अधिकारी के अधिकारी के तौर पर पदस्थ थे।
गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) में अतिरिक्त जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) हितेश पंड्या ने शुक्रवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। पंड्या ने देर शाम अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल को सौंप दिया।
हितेश के बेटे, अमित और जय सीतापारा किरण के साथ थे, जब उन्हें इस महीने की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार किया था। अमित और जय को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पूछताछ के लिए बुलाया है।
हितेश पंड्या ने कहा, ‘मैंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंप दिया है। मैं अपना लंबित कार्य 31 मार्च तक समाप्त कर दूंगा और कार्यालय से मुक्त हो जाऊंगा।
हितेश का गुजरात सीएमओ में सबसे लंबा कार्यकाल है और 2001 से वहां काम कर रहे हैं। प्रारंभ में, उन्हें सहायक पीआरओ के रूप में नियुक्त किया गया था और फिर अतिरिक्त पीआरओ के रूप में नियुक्त किया गया था।
73 वर्षीय हितेश की सीएमओ में साख का अंदाजा इसी लगाया जा सकता है कि पिछले ढाई दशक में गुजरात के सीएमओ में सीएम बदलते गए , अधिकारी बदले लेकिन पंड्या कायम रहे। आयुसीमा पार होने के बावजूद उन्हें कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त किया जाता रहा। भूपेंद्र पटेल ने पांच साल के लिए उनका कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू किया था।
पंड्या एक अधिकारी से ज्यादा विचारधारा को समर्पित रहे। यही समपर्ण उन्हें विश्वसनीय और नजदीक बनाता गया। मूल राजकोट के विधार्थी जीवन में हितेश पंड्या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े रहे। बाद में जनसंघ का झंडा थाम कर भाजपा में आये। और राजकोट नगर प्राथमिक शिक्षण समिति के अध्यक्ष बने। तब वह शंकर सिंह वाघेला कैंप में थे ,लेकिन जैसे ही वाघेला ने राजपा बना कर भाजपा से बगावत किया। पंड्या के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया और उन्हें पद मुक्त होना पड़ा।
लेकिन जब राजपा का कांग्रेस में विलय हुआ तो पंड्या समेत राजकोट के बहुत सारे नेता खुद को अलग कर भाजपा में वापसी कर लिया। भाजपा बौद्धिक प्रकोष्ठ में गुजरात संयोजक की जिम्मेदारी निभाने का पड्या को मौका मिला। सीएमओ में पंड्या का प्रवेश केशु भाई पटेल के जमाने में हुआ। तब उन्हें सहायक जनसम्पर्क अधिकारी बनाया गया था।
नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने पर पंड्या की साख बढ़ने लगी। कम बोलने वाले पंड्या ने एक अपना नेटवर्क विकसित किया जिसमे उन्हें ख़बरों के पीछे की कहानी पता होती थी। अपने ट्वीटर प्रोफाइल में हितेश पंड्या ने दावा किया है कि 1977 से 2000 गुजराती मीडिया में विभिन्न भूमिकाओं के निर्वहन का दावा किया है। साथ ही इंट्राग्राम प्रोफ़ाइल में संघ परिवार से जुड़ाव को उल्लेखित किया है। पंड्या की इंट्राग्राम प्रोफ़ाइल के मुताबिक वह अखिल भारतीय विधार्थी परिषद, जनसंघ , भाजपा , विश्व हिन्दू परिषद ,तथा भारतीय मजदूर संघ से जुड़े हैं।
पंड्या के लगातार मुख्यमंत्री बंगले में सेवा देना का बड़ा कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र का भरोसा है। उनकी इंस्ट्राग्राम पेज में पीएम मोदी से परिवार के मुलाकात की तमाम तस्वीरें है। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी , विजय रुपाणी ( जो बाद में गुजरात के मुख्यमंत्री )2003 में हिमांचल प्रदेश के चुनाव प्रचार में गए थे तब भी पंड्या उनके साथ थे।
नरेन्द्र मोदी के बाद आंनदीबेन पटेल , विजय रुपानी , भूपेंद्र पटेल सी एम आवास में आते गए। मुख्यमंत्रियों की नेम प्लेट बदलती गयी लेकिन पंड्या कायम रहे। किसी कॉन्ट्रैक्ट बेस कर्मचारी का इतना जलवा शायद ही किसी को नसीब होता था। उनका पूरा ट्वीटर अकाउंट किसी भाजपा नेता के एकाउंट की तरह कांग्रेस विरोधी और भाजपा समर्पित पोस्ट से भरा पड़ा है।
पंड्या ने अपनी विचारधारा और आरएसएस से जुड़ाव को कभी छिपाया नहीं। इसके लिए उन्होंने नेशनफर्स्ट जैसे संगठन का गठन किया था। पंड्या के पुत्र अमित पंड्या भी गुजरात भाजपा में उत्तर गुजरात सोशल मीडिया के प्रभारी की भूमिका निभा चुके है। पंड्या परिवार भाजपा और संघ के लिए समर्पित था।
इस्तीफ़ा देने के पहले पंड्या ने मीडिया ग्रुप में एक पोस्ट कर अपनी स्थिति साफ़ करते हुए कहा कि वह इस्तीफ़ा की पेशकश इसलिए की है ताकि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री पर सवाल ना उठे। अमित को गिरफ्तार नहीं किया गया है , उसे गवाह बनाया गया है।
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