विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की नवीनतम रिपोर्ट में केंद्र ने भारत में कोविड-19 से हुए नुकसान को कम करके भले आंका हो, लेकिन यह 2021 के दिसंबर की शुरुआत में ही ज्ञात हो गया था कि जब गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद खुद ऐसी संख्या अधिक मान ली थी। तब उसे कोविड से हुई मौतों के मुआवजे पर फटकार लगाई गई थी।
इस साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट को दिए गए गुजरात सरकार के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, उसे कोविड-19 के 1,02,230 मुआवजे के दावे के आवेदन मिले थे। उसने प्रति मृत्यु 50,000 रुपये के मुआवजे के भुगतान के लिए इनमें से 87,045 दावों को मंजूरी दी थी।
जबकि कई और आवेदन अभी भी जांच के दायरे में हैं। फरवरी 2022 तक कोविड से हुई 87,045 मौतों पर मुआवजे की मंजूरी दी गई थी, जो इस बात का सबूत है कि राज्य में खतरनाक वायरस से वास्तविक मौतें कम से कम आठ गुना अधिक हुई थीं। इसके विपरीत, गुजरात में 2020 में महामारी की चपेट में आने के बाद से आधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 10,579 ही बताई गई थी!
ऐसे में गुजरात सरकार द्वारा पहले से प्राप्त मुआवजे के आवेदनों की संख्या को देखते हुए, मरने वालों की संख्या 10 गुना अधिक थी! और, ये आंकड़े डब्ल्यूएचओ के नहीं, बल्कि राज्य के अपने हैं।
इतना ही नहीं, गुजरात सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट को दी गई जानकारी के अनुसार, इन 87,045 अनुमोदनों में से अब तक 82,605 दावेदारों को भुगतान किया जा चुका है।
जैसा कि दिसंबर 2021 में वाइब्स ऑफ इंडिया ने पहली बार बताया था, गुजरात सरकार ने कहा कि उसने संख्या को कम नहीं किया था, लेकिन कोविड-19 की मौत की आधिकारिक परिभाषा बदल दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर ही निर्देश जारी किए थे।
पूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का कहना है कि राज्य सरकार ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के दिशानिर्देशों के अनुसार मौतों की गिनती की। इसमें कहा गया था कि कोविड-19 के कारण हुई अन्य बीमारियों से हुई मौतों को वायरस के कारण मृत्यु नहीं माना जाना चाहिए।
दरअसल राज्य सरकार इन संख्याओं को कम करने की कोशिश कर रही थी, यह इस तथ्य से भी स्पष्ट है कि आईसीएमआर ने कहीं भी यह नहीं कहा था कि वायरस से हुए अन्य रोगों के मरीजों को कोविड की मौत नहीं माना जाना चाहिए।
दरअसल आईसीएमआर ने कहा था: “कोविड-19 में निमोनिया/ तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम (एआरडीएस)/ हृदय रोग/ इंट्रावास्कुलर जमावट और इसी तरह के कारण होने की सूचना है। ऐसी जटिलताओं से मृत्यु हो सकती है, जिसे मृत्यु के तत्काल कारण के रूप में दर्ज किया जा सकता है। इसलिए यह संभावना थी कि कोविड-19 ने ऐसी जटिलताएं पैदा की थीं” और इसलिए कोविड-19 को “पूर्ववर्ती कारण” के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले नवंबर में मौत के दावों की जांच के लिए एक सिस्टम बनाने की बात करने पर गुजरात सरकार की खिंचाई की थी, जबकि उसने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया था कि दावा पात्रता के लिए रोगी की मृत्यु के 30 दिनों के भीतर केवल आरटी-पीसीआर की पॉजीटिव रिपोर्ट होनी चाहिए। ऐसे सभी लोगों में स्पष्ट रूप से सहरुग्णता और सामान्य जनसंख्या वाले लोग शामिल हैं।