आयकर विभाग भारत में इसकी शुरूआत के 161 वां वर्ष मना रहा है। आयकर विभाग देश के प्रत्यक्ष कर कानूनों का संचालन करता है, जो भारत सरकार के कुल कर राजस्व में 52% से अधिक होता है।
इस अवसर पर केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के सदस्य और 1984 बैच के आईआरएस अधिकारी कृष्ण मोहन प्रसाद ने शनिवार टैक्स को लेकर मुकदमेबाजी की समस्या को आसान बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “टैक्स संबंधी मुकदमेबाजी की परेशानी को कम करने के लिए 2019 में की गई हालिया पहल महत्वपूर्ण है। इसमें अपीलीय न्यायाधिकरण के समक्ष अपील की मौद्रिक सीमा को पहले के 20 लाख रुपये से बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया है। उच्च न्यायालयों के मामले में सीमा को तो दोगुना करके एक करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट के मामले में अपील दायर करने की संशोधित सीमा एक करोड़ से बढ़ाकर दो करोड़ रुपये कर दी गई है।”
दरअसल भारत एक मुकदमाप्रेमी समाज है। यही कारण है जब कोविड ने अर्थव्यवस्था को धीमा कर दिया, तब भी अदालतों में मामले दर्ज होने बंद नहीं हुए। मुकदमेबाजी एक पीड़ादायक काम है। इसको देखते हुए सरकार कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए कराधान से संबंधित पीड़ा वाले पहलुओं को दूर करने और टैक्स संबंधी मुकदमों की संख्या में कटौती करना चाह रही है, ताकि राजस्व में बढ़ोतरी हो सके.
1986 बैच के आईआरएस अधिकारी और प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त (पीआरसीसीआईटी) रवींद्र कुमार ने कहा, “छोटी लड़ाइ क्यूं लड़ें? हम बड़ी मछलियों पर ध्यान देना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि लोग छोटी राशि के लिए कानूनी झंझट में न पड़ें, इसलिए हमने कर विवाद या टैक्स चोरी के मामलों में मौद्रिक सीमा के लिए एक सीमा तय कर दी है। यह हमें बड़े मुद्दे को हल करने की भी अनुमति देता है।”
अदालतों और न्यायाधिकरणों में सिर्फ प्रत्यक्ष कर मुकदमेबाजी में छह ट्रिलियन रुपये की भारी राशि फंसी हुई है। पहली अपील के तहत 5.6 लाख करोड़ रुपया अटका हुआ है। जब करदाता ने भुगतान नहीं किया है या 1,000 के मामूली भुगतान में भी देरी की है, तब कुछ मामलों में जारी किए गए हैं।
स्कूलों में पढ़ाएं टैक्स संबंधी शिक्षा
“स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में टैक्स संबंधी शिक्षा को शामिल करना चाहिए। इससे टैक्स को लेकर देश में साक्षरता की दर बेहतर होगी। साथ ही टैक्स चोरी में कमी भी आएगी। प्रसाद ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचे, रोजगार आदि जैसी विकासात्मक गतिविधियों पर उच्च स्तर का खर्च सुनिश्चित करने के लिए यह आवश्यक है कि लोग टैक्स का भुगतान करें। इससे टैक्स और जीडीपी के अनुपात में काफी वृद्धि होगी।
टैक्स भुगतान को लेकर सोच में एक आदर्श बदलाव जरूरी भी है। प्रसाद के मुताबिक, “अब इस सोच को बढ़ाने की आवश्यकता है टैक्स का भुगतान भी पवित्र और धर्मार्थ है, क्योंकि टैक्स का उपयोग शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, गरीबों की मदद, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा देने में किया जाता है।”
भारत का टैक्स-जीडीपी अनुपात 10% तो फ्रांस का 45% है
प्रत्यक्ष कर सरकारी राजस्व का मुख्य आधार है। टैक्स-जीडीपी अनुपात और आर्थिक विकास में एक मजबूत संबंध होता है। इसे इस तरह आसानी से समझा जा सकता है कि यदि आप अधिक कमाते हैं, तो आप अधिक टैक्स का भुगतान करते हैं। आपका आर्थिक विकास सरकार को सीधे उच्च कर संग्रह की ओर ले जाता है। प्रसाद बताते हैं कि “जीडीपी के अनुपात के रूप में भारत की तुलना में उच्च आय वाले देशों में टैक्स अधिक है। भारत के लिए उच्च स्तर की आर्थिक समृद्धि और उच्च प्रति व्यक्ति आय प्राप्त करने के लिए आयकर को सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम 25% तक बढ़ाया जाना चाहिए। भारत में टैक्स-जीडीपी का अनुपात केवल 10% के आसपास रहता है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन फ्रांस जैसे विकसित देशों में यह 30% से ऊपर है। जबकि फ्रांस में तो यह 45% से ऊपर है।”