इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया (IFFI) के ज्यूरी के तीन सदस्यों ने कहा है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ वाले मामले में वे इजरायल के निर्देशक नादव लैपिड के साथ खड़े हैं। बता दें कि सोमवार को समापन समारोह में ज्यूरी के प्रमुख लैपिड ने विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म की निंदा करते हुए इसे “प्रोपेगेंडा” और “भद्दी फिल्म” कहा था। लैपिड ने कहा कि वह और अन्य ज्यूरी सदस्य इस बात से “हैरान और परेशान” थे कि फिल्म को इवेंट के अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता खंड में शामिल किया गया था। फिल्म 1990 के दशक में कश्मीर से पंडितों के पलायन की पड़ताल करती है।
बयान के घंटों बाद पैनल के एकमात्र भारतीय सदस्य निर्देशक सुदीप्तो सेन ने दावा किया था कि लैपिड अपनी निजी राय दे रहे थे और उनकी आलोचना पैनल के विचारों को प्रतिबिंबित (reflect) नहीं करती थी। हालांकि, पैनल के बाकी तीन सदस्य- अमेरिकी निर्माता जिन्को गोटोह, फ्रांसीसी फिल्म संपादक पास्कल चावांस और फ्रांसीसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता जेवियर एंगुलो बार्टुरन- सेन से असहमत थे। उन्होंने कहा कि लैपिड ने ज्यूरी की ओर से बयान दिया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बयान राजनीतिक नहीं था।
शनिवार को एक बयान में तीनों ने कहा, “हम एक कलात्मक बयान दे रहे थे, और यह देखकर हमें बहुत दुख होता है कि मंच का इस्तेमाल राजनीति और बाद में लैपिड पर व्यक्तिगत हमलों के लिए किया जा रहा है।” बयान में कहा गया, “हम एक कलात्मक बयान दे रहे थे, और यह देखकर हमें बहुत दुख होता है कि मंच का इस्तेमाल राजनीति और बाद में नदव पर व्यक्तिगत हमलों के लिए किया जा रहा है।”
लैपिड के बयान से मचा था बवालः
विवाद में दखल देते हुए भारत में इजराइल के राजदूत नोर गिलोन ने कहा था कि लैपिड के बयान का नई दिल्ली में तेल अवीव की राजनयिक टीम पर प्रभाव पड़ सकता है। गिलोन ने इजरायली फिल्म निर्माता को एक खुले पत्र में कहा था, “आप यह सोचकर इजरायल वापस जाएंगे कि आप साहसी हैं। लेकिन हम इजराइल के प्रतिनिधि के तौर पर यहीं रहेंगे। आपको अपनी ‘बहादुरी’ के बाद हमारे DM (direct message) बॉक्स देखना चाहिए और जानना चाहिए कि टीम पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है।
इस बीच, राणा अय्यूब और सुप्रिया श्रीनेत सहित कुछ विपक्षी नेताओं और पत्रकारों ने फिल्म की आलोचना का समर्थन किया है। हालांकि, कश्मीर फाइल्स के निदेशक ने कहा कि अगर लैपिड और फिल्म की आलोचना का समर्थन करने वाले “बुद्धिजीवी और शहरी नक्सली” यह साबित कर सकें कि इसमें दिखाई गई घटनाएं झूठी हैं तो वह डायरेक्शन का काम छोड़ देंगे।
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