गुजरात में स्कूल चलाने वालों गुजराती भाषा पढ़ानी होगी। यह बात गुजरात हाई कोर्ट की एक बेंच ने शुक्रवार को कही। इसके लिए राज्य को प्रभावकारी कानूनी उपाय करने का सुझाव भी दिया।
बेंच अहमदाबाद स्थित एक एनजीओ की जनहति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें सभी स्कूलों में गुजराती भाषा की पढ़ाई को अनिवार्य (mandatory) करने की मांग की गई है।
यह याचिका मातृभाषा अभियान नामक एनजीओ और इसके पांच ट्रस्टियों की ओर से दायर की गई है। जनहित याचिका में 13 अप्रैल 2018 के एक सरकारी संकल्प (resolution) के तहत राज्य के सभी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक के लिए गुजराती भाषा को अनिवार्य विषय के तौर पर लागू करने की मांग की गई है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकारी संकल्प के बावजूद कई स्कूल एक विषय के रूप में गुजराती भाषा की पेशकश नहीं करते हैं। कई अन्य स्कूलों में गुजराती को या तो एक वैकल्पिक भाषा के रूप में रखा गया है या कक्षा 1 से 8 तक नहीं पढ़ाया जाता है। याचिकाकर्ताओं ने अदालत से इस बारे में सरकार को यह निर्देश देने का भी आग्रह किया कि स्कूलों और कॉलेजों में गुजराती भाषा के संरक्षण, प्रचार और प्रचार-प्रसार को लेकर पॉलिसी बनाए।
जबकि गुजरात सरकार ने अदालत से सीबीएसई, आईसीएसई और आईबी जैसे अन्य बोर्डों को मुकदमेबाजी में पार्टियों के रूप में जोड़ने का अनुरोध किया। इसलिए कि वे अपने खुद का सिलेबस चलाते हैं। इस पर जस्टिस सोनिया गोकानी और मौना भट्ट की बेंच ने कहा कि राज्य खुद को असहाय नहीं मान सकता।
जस्टिस गोकानी ने टिप्पणी की, “यह किसी चीज को संरक्षित करने के लिए है, जिसे हम सभी जानते हैं। … सभी राज्य इसके लिए वैधानिक प्रावधान बना (स्थानीय भाषा को अनिवार्य) कर रहे हैं। इसलिए यदि आप चूक गए हैं, तो आप भी शुरू कर सकते हैं। एक पॉलिसी से… यदि उन्हें (स्कूलों को) राज्य से कोई लाभ मिल रहा है, तो यह बहुत स्पष्ट करने की आवश्यकता होगी कि एक बार नीति बन जाने के बाद उन्हें इसे लागू करना होगा। वरना क्या इसके नतीजे होंगे, यह आप (राज्य) को तय करना है।”
जस्टिस गोकानी ने कहा, “अदालत मार्गदर्शन कर सकती है, निर्णय ले सकती है, यदि आवश्यक हो तो सीधे भी।… वे (अन्य बोर्ड) अपना सिलेबस रख सकते हैं, लेकिन वे यह नहीं कह सकते कि ‘पॉलिसी हो सकती है, लेकिन हम अपना सिलेबस ही चलाएंगे। अगर उन्हें (स्कूलों को) गुजरात में काम करना है, तो उन्हें ऐसा करना होगा (गुजराती भाषा को एक अनिवार्य विषय के रूप में रखना होगा)। इसलिए कि राज्य ने इसे स्पष्ट कर दिया है… अगर आपको लगता है कि आप ऐसा नहीं कर सकते, तो फिर अदालत निर्देश देगी। ”
एक दिसंबर को दायर सरकार के हलफनामे (affidavit) के अनुसार, राज्य के लगभग 11,000 प्राइमरी स्कूलों में से 14 में गुजराती भाषा की पढ़ाई बिल्कुल भी नहीं है। वैसे याचिकाकर्ताओं के अनुसार, स्कूलों की वेबसाइटों से जुटाए उनके सिलेबस से मिली जानकारी के आधार पर 91 स्कूलों में गुजराती भाषा की पेशकश नहीं की जा रही है। जबकि 16 स्कूल इसे वैकल्पिक (optional) विषय के रूप में पेश करते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि “टियर-1 और टियर-2 शहरों में सीबीएसई, आईसीएसई और आईबी बोर्ड के स्कूलों की संख्या अधिक है। यह देखा गया है कि ये स्कूल गुजराती की अनदेखी करते हुए विदेशी भाषाओं को बढ़ावा देते हैं।
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