मध्य प्रदेश के उमरिया जिले के एक ट्रायल कोर्ट ने बांधवगढ़ नेशनल पार्क के पूर्व क्षेत्र निदेशक (field director) सीके पाटिल को मशहूर ‘झुरझुर्रा वाली’ बाघिन (tigress) की हत्या में दो सरकारी अधिकारियों को फंसाने के आरोप में तीन साल की कैद की सजा सुनाई है। इनमें से एक अब आईएएस अफसर हैं। पाटिल अब भोपाल के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (principal chief conservator of forests) हैं। इनके साथ एसडीओ डीसी घोरमारे, रेंजर राजेश त्रिपाठी और रेगी राव को भी छह महीने की जेल की सजा सुनाई गई है।
उन्होंने जिन अधिकारियों को फंसाने की कोशिश की उनमें उमरिया जिला पंचायत के तत्कालीन सीईओ अक्षय कुमार सिंह और मानपुर जिले के सीईओ डॉ केके पांडेय शामिल हैं। प्रमोशन के बाद अक्षय कुमार सिंह आईएएस अधिकारी हो गए हैं।
19 मई, 2010 को बांधवगढ़ के झुरझुर्रा क्षेत्र में तीन शावकों (cubs) की मां युवा बाघिन को एक वाटरहोल में मरी हुई पाया गया था। वन विभाग द्वारा मौत को छुपाने के शुरुआती प्रयास नाकाम साबित हुए। इसलिए कि इसे आरटीआई कार्यकर्ता शेहला मसूद (जिसकी 2011 में हत्या कर दी गई थी) ने इसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठा दिया था।
राज्य सरकार ने मामले की जांच पहले सीआईडी और फिर एसटीएफ को सौंपी थी। एक महीने की लंबी जांच के बाद एसटीएफ ने नार्को टेस्ट के लिए चार लोगों की सूची बनाई। इनमें मान सिंह और श्रीलाल यादव (दो रेंज अधिकारियों के ड्राइवर), पंकज विश्वकर्मा (अक्षय सिंह के ड्राइवर) और गार्ड धीरेंद्र चतुर्वेदी के नाम थे। परीक्षण के बाद के खतरों के आधार पर केवल यादव ने इससे इनकार कर दिया।
सबूत पक्ष के अनुसार, 2011-12 में बांधवगढ़ के निदेशक पाटिल थे। उनकी टीम ने मान सिंह के माध्यम से अक्षय और पांडे को फंसाया। आरोप है कि बांधवगढ़ प्रबंधन ने सिंह पर दबाव बनाकर कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा। परेशान होकर उनकी पत्नी उन्हें खोजने में मदद मांगने के लिए कलेक्टर के पास गईं। जब कलेक्टर ने इसकी जांच की तो पाया कि बांधवगढ़ के कुछ अधिकारी उन्हें कहीं छिपाकर रख हुए हैं। पत्नी ने जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें फैसला उनके पक्ष में आया।
सिंह और दोनों सीईओ का नार्को टेस्ट कराया गया, लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला। सिंह ने परेशान करने का आरोप लगाते हुए सिविल कोर्ट में मुकदमा कर दिया। शुक्रवार को सीके पाटिल को तीन साल कैद की सजा सुनाई गई। 5,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
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