भारत में नेताओं और निर्वाचित प्रतिनिधियों को आम तौर पर सराहा और सम्मानित किया जाता है। हालांकि कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं, जब धमकियों, हमले, पत्थरबाजी, जूता, स्याही, तलवार चमकाने, राइफल के बट से हमले और फायरिंग से लेकर उनकी जान लेने के क्रूर प्रयासों तक हुए हैं।
बड़े स्तर पर देखें तो ऐसे लोगों के कई उदाहरण हैं, जब उन्हें गुस्से का सामना करना पड़ा या ऐसी ही अलग तरह से प्रतिक्रियाएं झेलनी पड़ी हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू तब प्रधानमंत्री थे, जब दिल्ली में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। एक बार जब वह चांदनी चौक से गुजर रहे थे, तब मामूली सुरक्षा के साथ चल रहे प्रधानमंत्री ने एक भीड़ को देखा, जो एक दर्जी पर हमला कर रही थी। कहा जाता है कि नेहरू उस व्यक्ति को बचाने के लिए कूद पड़े थे। भांजी नयनतारा सहगल ने बताया था कि कैसे नेहरू ने पुलिस से लाठी छीन कर भांजनी शुरू कर दी थी। कई लोगों ने इसे नेहरू के व्यक्तिगत साहस के संकेत के रूप में देखा।
नेहरू को जान से मारने की धमकी भी मिली थी। मई 1953 में जब वह बंबई की यात्रा कर रहे थे, तब कथित तौर पर कल्याण के पास बम मिला था। बाद में जांच से पता चला कि ऐसा नेहरू को नुकसान पहुंचाने के बजाय सनसनी पैदा करने के मकसद से किया गया था। 30 सितंबर, 1961 को भी उस रेल मार्ग के रेलवे ट्रैक पर बम मिला था, जिससे होकर नेहरू को गुजरना था। प्रधानमंत्री नेहरू अपने जीवन के लिए किसी भी खतरे को खारिज कर देते थे।
नेहरू की बेटी इंदिरा भी उतनी ही साहसी थीं। अपनी किताब “माई ट्रुथ” में इंदिरा ने याद किया है कि कैसे सितंबर 1947 में, जब देहरादून से दिल्ली के लिए उनकी ट्रेन शाहदरा में रुकी थी, दो दंगा पीड़ितों का एक आदमी पीछा कर रहा था। कथित तौर पर इंदिरा ने संजय और राजीव को आया के साथ मारपीट में हस्तक्षेप करने के लिए कहा था। इससे किसी की जान बच गई थी।
लगभग बीस साल बाद, जब इंदिरा प्रधानमंत्री थीं, भुवनेश्वर के पास एक चुनावी रैली के दौरान लोगों ने उन पर पथराव किया। एक पत्थर उसकी नाक में लग गया। उन्होंने अपने दोस्त डोरोथी नॉर्मन को इस बारे में मजाक के तौर पर लिखा, “जब से मैंने प्लास्टिक सर्जरी के बारे में सुना, तब से मैं अपनी नाक को कुछ ठीक कराने को लेकर सोचा करती थी…फिर मैंने सोचा कि यह तो बगैर हो-हल्ला मचाए सामान्य तरीके से भी किया जा सकता है। जैसे कि मामूली दुर्घटना हो जाए, तो मुझे इसे ठीक कराने का मौका मिल जाएगा।”
अपने जीवन के अंत में इंदिरा को ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने और अपने सिख सुरक्षा गार्डों को हटाने की सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने घर पर भारी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने को गैरजरूरी मानती थी। साथ ही अपने सुरक्षा गार्डों के बीच “भेदभाव” करने के विचार से ही वह नफरत करती थीं। दरअसल, कुछ हफ्ते पहले इंदिरा ने गर्व से बेअंत सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा था: “जब मेरे आसपास इनके जैसे सिख हों, तो मुझे किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है।”
उनकी हत्या के बाद कई लोगों ने सोचा था कि सिख सुरक्षा गार्ड रखने का मामला इंदिरा के सामने रखा ही क्यों गया था। वैसे भी कोई वीवीआईपी अपनी सुरक्षा से संबंधित व्यवस्थाओं में कभी शामिल नहीं होता है।
1991 में ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने लोगों से असहयोग करने वाले किसी भी अधिकारी को पीटने की अपील की थी। बीजू का भयानक डर था, ऐसे में एक बेरोजगार युवक ने कलिंग सांढ को तब थप्पड़ मार दिया, जब मुख्यमंत्री सचिवालय जा रहे थे। युवक उन्हें कानून को हाथ में लेने की उनकी ही अपील याद दिला रहा था। बीजू ने युवक को बालों से पकड़कर तीन करारे थप्पड़ जड़ दिए। मुख्यमंत्री ने बाद में उन्हें उनके कहे अनुसार “चलने” के लिए 300 रुपये का नकद इनाम दिया। उस समय पूरे ओडिशा में थप्पड़ मारने की घटनाओं की बाढ़ आ गई। इसके बाद बीजू ने अपने पहली वाली अपील को संशोधित किया और जनता से “गलत” अधिकारियों की पिटाई करने से पहले मुख्यमंत्री की अनुमति के लिए उन्हें एक टेलीग्राम भेजने के लिए कहा। यहां तक कि जब सरकारी बाबुओं ने विरोध किया और हड़ताल पर चले गए, तो बीजू और अपनी पर आ गए और सोचा कि क्या भ्रष्ट अधिकारियों को गिलोटिन किया जाना चाहिए।
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी खुद को साहसी व्यक्ति मानते थे। कहा जाता है कि एक बार अलगाववादी अकाली नेता सिमरनजीत सिंह मान अपनी लंबी तलवार जमा किए बिना उनसे मिलने जाना चाहते थे, जिसे पूर्व आईपीएस अधिकारी हमेशा लेकर चलते थे। चंद्रशेखर ने अपनी सुरक्षा वालों से तलवार लेकर आने की अनुमति दे देने को कहा। दरवाजा थोड़ा खुला रखने का निर्णय लिया गया, ताकि सुरक्षाकर्मी मान पर नजर रख सकें, लेकिन चंद्रशेखर उन्हें संभाल लेने को लेकर आश्वस्त थे।
तब मान ने यह कहते हुए अपनी तलवार आधी खींच ली थी, “यह तलवार मेरी पुश्तैनी है और बहुत धारदार है।” चंद्रशेखर ने उत्तर दिया, “इसे वापस म्यान में रख दें। बलिया में हमारे पुश्तैनी घर में इससे भी बड़ी तलवार है, जो इससे भी अधिक धारदार है।”
इंदिरा जी के बेटे संजय उत्तर प्रदेश का दौरा करते हुए बाल-बाल बच गए थे। कांग्रेस ने तब आरोप लगाया था कि अमेठी में प्रधानमंत्री इंदिरा के बेटे पर “सुनियोजित हत्या का प्रयास” किया गया। विपक्ष ने संजय पर ‘सहानुभूति’ पैदा करने की कोशिश करने का आरोप लगाया था।
राजीव गांधी को इतिहास में ऐसे व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिनका अपनी सुरक्षा को महत्व देने के लिए मजाक उड़ाया गया था। यह उनके सबसे बुरे आलोचकों और राजनीतिक विरोधियों के लिए भी चौंकाने वाला था, जब 21 मई 1991 को श्रीपेरम्बदूर में युवा और तेजतर्रार पूर्व प्रधानमंत्री की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
मई 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अमेरिका की यात्रा पर थे। तब भारतीय मूल के एक व्यक्ति ने 3 दिनों तक लिए एक पेड़ पर छिपे होने की बात कही थी। एफबीआई ने साजिश को नाकाम करने का दावा किया था। राजीव को हमले की ऐसी ही दो और कोशिशों का सामना करना पड़ा था। करमजीत सिंह नामक शख्स ने राजघाट पर देसी पिस्तौल से उन पर तब गोलियां चला दी थीं, जब राजीव 2 अक्टूबर 1986 को राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देने गए थे। 30 जुलाई 1987 को टीवी फुटेज में दिखाया गया था कि श्रीलंकाई नौसेना के जवान डब्ल्यूवी रोहाना डी सिल्वा ने कोलंबो में अपनी राइफल के बट से प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मारने की कोशिश की। निजी तौर पर विपक्ष के एक वर्ग ने इन घटनाओं को ‘सरकारी हथकंडा’ करार दिया था।
2009 में अहमदाबाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर जूता फेंका गया था। हालांकि सहृदय डॉक्टर ने चुपचाप अपने सुरक्षा कर्मियों को अपराधी को रिहा कर देने का निर्देश दिया। पी चिदंबरम तब केंद्रीय गृह मंत्री थे, जब 24 अकबर रोड पर उन पर जूता फेंका गया था। चिदंबरम परेशान होने के बजाय हंसते हुए नजर आए थे।