राजस्थान के राजघराने थे राजपूत। शैली (style) और खूबसूरती (aesthetics) दोनों ही मामले में राजस्थानी व्यंजनों पर उनका महत्वपूर्ण प्रभाव था। राज्य को ऐतिहासिक रूप से राजपुताना कहा जाता है, क्योंकि राजपूतों ने कई शताब्दियों तक इस पर शासन किया।
राजपूतों ने क्षेत्र के व्यंजनों और खाने के रीति-रिवाजों, विशेष रूप से इसके मांसाहारी (non-vegetarian) आहार (diet) में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राजघरानों की असाधारण जीवन शैली और आहार का आपस में गहरा संबंध था। चूंकि शिकार एक पसंदीदा शाही शगल (pastime) था, इसलिए मांसाहारी व्यंजनों के लिए अक्सर शिकार किया जाता था। शिकार आम तौर पर हिरन, जंगली खरगोश, खरगोश, तीतर (pheasant), बटेर (quail) और बत्तख (duck) आदि के किए जाते। खानसामा या शाही रसोइयों (royal cooks) ने काफी कुछ नया किया। व्यंजनों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक उत्साह के साथ बढ़ाया जाता था।
16वीं और 17वीं शताब्दी के दौरान राजपूतों ने राजनीतिक रूप से मुगलों का समर्थन किया। इसलिए बाद के सांस्कृतिक प्रभावों ने राजपूत कला और वास्तुकला (architecture) को बहुत प्रभावित किया। ऐसा ही प्रभाव उस तरफ भी पड़ा।
जहां तक बात राजपूत भोजन की है, तो उस पर कुछ ही मुगलई व्यंजनों का प्रभाव था। माना जाता है कि ऐसा मुख्य रूप से मुगलई व्यंजनों के लिए जरूरी सामग्री की कमी के कारण हुआ था।
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