कोरोनावायरस बीते डेढ़ साल से भी अधिक समय से हमारे दैनिक जीवन पर कहर बरपा रहा है और इसने दुनिया भर में 4.5 मिलियन से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। एक के बाद एक देश को प्रभावित करते हुए यह तेजी से फैल चुका है, बीते समय में इसे आवश्यक गंभीरता के साथ नहीं लिया गया, इस महामारी की अनदेखी में न केवल आम आदमी बल्कि राज्यों के प्रमुख जिम्मेदारों ने भी इसे एक सामान्य फ्लू के रूप में समझा और डब्ल्यूएचओ द्वारा घोषित किए जाने व स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा अनुशंसित निवारक उपायों के बाद भी इसे खारिज कर दिया गया। इसकी शुरुआत मार्च 2020 में एक महामारी के रूप में शुरू हुई थी।
महामारी को नियंत्रित करने के लिए, स्वास्थ्य देखभाल करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों ने एक वैक्सीन की खोज शुरू की और एक साल के भीतर चीन से लेकर रूस, यूएसए और यूके तक विभिन्न देशों में करीब एक दर्जन टीके पेश किए गए और उनका निर्माण किया गया। हालाँकि अभी तक विश्व स्तर पर टीकाकरण प्रक्रिया विभिन्न कारणों से धीमी प्रतीत होती है, जिसके प्रमुख कारणों में सबसे महत्वपूर्ण सामान्य आबादी की ओर से हिचकिचाहट है।
जैसा कि महामारी के चरम पर हुआ था कि, लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, इसे सामान्य फ्लू कहा, मास्क भी नहीं पहना और पूरी महामारी को एक अंतरराष्ट्रीय साजिश करार दिया। टीकों के तैयार होने के बाद आबादी का एक वर्ग अभी भी इसे नहीं ले रहा है, और टीकाकरण के प्रति अनिच्छुक है। यह झिझक ज्यादातर धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं, दुष्प्रभावों के बारे में चिंताओं और वैक्सीन की विश्वसनीयता, उत्पत्ति और प्रभावकारिता के बारे में सोशल मीडिया पर अफवाहों से प्रेरित है। टीके के संबंध में विभिन्न षड्यंत्र सिद्धांत न केवल विकासशील देशों में, जहां साक्षरता दर कम है, बल्कि विकसित देशों में भी ऐसा प्रचलन पाया गया है।
टीकाकरण को लेकर यह अफवाहें हैं कि, टीका मानव डीएनए को बदल देगा, टीका बांझपन का कारण बनेगा, वायरस इतनी तेजी से उत्परिवर्तित होता है कि टीका काम नहीं करेगा, टीका होने के दो साल बाद व्यक्ति मर जाएगा आदि तमाम भ्रांतियां शामिल हैं। इन अफवाहों में यह भी तर्क दिया गया है कि, आपको टीका लेने के बाद भी कोविड -19 हो सकता है, इसलिए टीका लेना व्यर्थ है।
चूंकि पूरी तरह से टीका लगाए गए लोग भी वायरस से संक्रमित हो रहे हैं और बीमार पड़ रहे हैं, इसलिए लोगों को टीका लगवाने के लिए राजी करना बहुत मुश्किल हो रहा है क्योंकि वे किसी न किसी का उदाहरण देते हैं जो टीकाकरण के बावजूद बीमारी का शिकार हो गया। हालांकि, यह प्रलेखित किया गया है कि टीकाकरण वाले लोग हल्के लक्षणों का अनुभव करते हैं और उनके ठीक होने की संभावना गैर-टीकाकरण वाले लोगों की तुलना में अधिक होती है, और जिन लोगों को टीका लगाया गया है, उनकी तुलना में अधिक गैर-टीकाकरण वाले लोग मरते हैं, फिर भी झिझक बड़े पैमाने पर बनी हुई है और लोग इसे लेने के लिए तैयार नहीं होते हैं।
लोगों द्वारा मनगढ़ंत साजिश के सिद्धांत और टीकाकरण अनिच्छा, धीमी गति के टीकाकरण के प्रमुख कारण हैं और स्वास्थ्य पेशेवरों और सरकारों के संकट को बढ़ा रहे हैं जो पहले से ही वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जूझ रहे हैं और बीमार पड़ने वालों को पर्याप्त देखभाल प्रदान करने में लगे हैं। सरकारें लोगों को टीका लगवाने की सुविधा के लिए खरीद, वितरण और व्यवस्था करने की चुनौती से निपटने के लिए, जो विशेष रूप से विकासशील देशों के लिए एक बहुत बड़ा काम है, के प्रयासों में जुटी हुई हैं।
टीकाकरण के प्रति अनिच्छा जैसे प्रमुख मुद्दों का सामना करने वाले देशों को लोगों के मन में शंकाओं को दूर करने और उन्हें टीकाकरण के लिए प्रेरित करने के लिए प्रभावी जन मीडिया अभियान चलाने की आवश्यकता है। पादरियों, समुदाय के नेताओं, गैर सरकारी संगठनों द्वारा जागरूकता फैलाने और टीके के बारे में फैली अफवाहों की रोकथाम व बीमारी की रोकथाम के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास अच्छी रणनीति हो सकती है। क्योंकि वे लोगों के राय निर्माता हैं और उनके शब्दों का वजन होता है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि टीकाकरण केंद्र तक लोगों की आसानी से पहुंच हो और इसके लिए देश के कोने-कोने में टीकाकरण केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता है। यह समझ में आता है कि दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में टीकाकरण केंद्र स्थापित करना, विशेष रूप से जहां स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद नहीं हैं, खराब बुनियादी ढांचे और परिवहन नेटवर्क को देखते हुए एक आसान काम नहीं है, और बिजली की आपूर्ति अनियमित होने पर गर्म मौसम में कोल्ड चेन को बनाए रखने में कठिनाई होती है। लेकिन यह सामूहिक टीकाकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, और इस जोखिम का मुकाबला करने के लिए भी कारगर उपाय है जो अक्सर टीकाकरण मामले में दूरदराज क्षेत्रों में होने के करण छूट जाते हैं। इन्हें समुदाय और मोबाइल टीकाकरण इकाइयों द्वारा पूरक किया जा सकता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि लोगों को ठीक से टीकाकरण किया जा रहा है।
उन देशों में जहां लोगों में टीकाकरण के प्रति अनिच्छा का स्तर अधिक है, टीकाकरण से इनकार करने वाले कर्मचारियों के वेतन को रोकने जैसे नतीजों और दंड के साथ एक निश्चित समय सीमा के भीतर टीकाकरण अनिवार्य करना एक अच्छी रणनीति हो सकती है। टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए, कर्मचारियों और छात्रों को अपने काम और शैक्षणिक संस्थानों में भाग लेने के लिए टीकाकरण का प्रमाण प्रदान करने के लिए कहा जा सकता है जैसा कि यात्रा के लिए किया जा रहा है।
हालांकि, किसी भी कड़े और दंडात्मक उपाय को लागू करने से पहले, वैक्सीन को आवश्यक संख्या में उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण है, क्योंकि टीकों की अनुपलब्धता का नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।
यह स्पष्ट है कि, इस वायरस को मात देने के लिए टीकाकरण ही एकमात्र उपाय है और सरकारों को ऐसा करने में कोई कसर नहीं छोड़नी होगी।