भारतीय अर्थव्यवस्था प्रमुख रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) सेक्टर से चलती है। यह सेक्टर सकल घरेलू उत्पाद और रोजगार सृजन दोनों मोर्चे पर अर्थव्यवस्था में 30 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। लेकिन यह सेक्टर 2019 में आई मंदी और अब महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित होने के कारण दबाव में है और चरमरा रहा है। कंसोर्टियम ऑफ इंडियन एसोसिएशंस (सीआईए) और उसके 40 सहयोगी संघों द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में कुछ गंभीर निष्कर्ष सामने आए हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, 73 प्रतिशत उद्यमों ने वर्ष 2020-21 में लाभ दर्ज नहीं किया है, 59 प्रतिशत ने अपने कर्मचारियों को निकाला है और 88 प्रतिशत का कहना है कि उन्होंने अब तक सरकार द्वारा शुरू किए गए किसी भी प्रोत्साहन पैकेज का लाभ नहीं लिया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (एफएसआर) में छोटे व्यवसायों के समक्ष अहम व्यावसायिक व्यवधानों की चेतावनी दी गई है। देश के सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में से एक गुजरात की स्थिति भी गंभीर है। बैंकिंग उद्योग के आंकड़ों के अनुसार, इस सेक्टर में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां यानी फंसे कर्ज बढ़ रहे हैं।
आरबीआई की रिपोर्ट कहती है, ‘कम और मध्यम जोखिम वाले एमएसएमई कर्जदार (साल-दर-साल) उच्च जोखिम वाली श्रेणी में जा रहे हैं। महामारी के बाद व्यापार में और भी दिक्कतें आई हैं।’
एमएसएमई क्षेत्र के कारोबार और फाइनेंस पर दबाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। आरबीआई की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत में एमएसएमई क्षेत्र के लिए जनवरी, 2019 से अगस्त, 2020 के बीच कुल 71,431 करोड़ रुपये के ऋण का पुनर्गठन किया गया है (ऋण चुकाने की शर्तों में ढील दी गई है, और नकद सहायता प्रदान की गई है, ब्याज दरों में कमी आई है आदि)। रिपोर्ट में कहा गया है कि मई, 2020 में सरकार की ओर से ‘आत्मनिर्भर’ पैकेज के हिस्से के रूप में घोषित इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना से एमएसएमई का क्रेडिट बढ़ा है।
गुजरात में कुल एनपीए का चौथाई एमएसएमई से है
इस बीच, गुजरात में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। गुजरात में एमएस के लिए गैर-निष्पादित संपत्ति (या एनपीए) बढ़ रही है और यह मार्च, 2021 के आखिर में अपने उच्चतम स्तर पर थी। इसके अलावा, राज्य की बैंकिंग प्रणाली में कुल एनपीए को देखें, तो एक चौथाई छोटे और मध्यम उद्यमों से जुड़ा है।
राज्य स्तरीय बैंकिंग समिति (एसएलबीसी) की रिपोर्ट के अनुसार, इस क्षेत्र में कुल एनपीए मार्च, 2021 में बढ़कर 10,905 करोड़ रुपये हो गया, जो मार्च, 2016 में 5,758 करोड़ रुपये था। कुल कर्ज के प्रतिशत के रूप में एनपीए 2016 में 6.93 था और अब 2021 में बढ़कर 8.07 हो गया है।
इसके अलावा, एसएलबीसी के डाटा से यह भी संकेत मिलता है कि मार्च, 2021 के अंत में गुजरात में बैंकिंग के कुल एनपीए के प्रतिशत के रूप में एमएसएमई सेक्टर का एनपीए पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है। मार्च, 2016 के अंत में यह 22.5 प्रतिशत था, कुछ वर्षों तक 20 प्रतिशत से नीचे रहने के बाद बढ़ने लगा। मार्च, 2017 में 18.9 प्रतिशत के निचले स्तर से के बाद से कुल एमएसएमई एनपीए मार्च, 2021 तक बढ़कर 27.6 प्रतिशत हो गया।
पैसा नहीं, नीतिगत समर्थन चाहिए
उद्योग जगत के दिग्गजों का मानना है कि एमएसएमई सेक्टर केवल वित्तीय सहयोग को लेकर परेशान नहीं है। साणंद इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष अजीत शाह ने कहा, ‘पिछले कुछ वर्षों में, खासकर महामारी के दौरान फंडिंग एक प्रमुख मुद्दा था। हालांकि, मेरा मानना है कि इस क्षेत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रशासन और नीति के मामले में पर्याप्त सरकारी समर्थन नहीं मिलना है। कुछ विदेशी निवेशकों को तरजीह दी जाती है और स्थानीय उद्यमियों को लालफीताशाही से गुजरना पड़ता है। हमें कारोबार के विकास, औद्योगिक क्षेत्र में भूखंड प्राप्त करने, बिजली शुल्क, प्रोडक्ट मार्केटिंग और इनोवेशन के मामले में नीतिगत समर्थन की आवश्यकता है।’
वह कहते हैं कि छोटे उद्योगों को हमेशा फंडिंग पाने, ग्राहकों से तरजीही खरीद और अन्य मुद्दों के मामले में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा क्योंकि बड़े कॉर्पोरेट या बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तुलना में उनका प्रभाव और उनकी वित्तीय ताकत कम होती है।
महामारी के दौरान रिकवरी धीमी थी क्योंकि उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा था। गुजरात केमिकल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. जैमिन वासा ने कहा, ‘जब अनलॉक शुरू हुआ तब मांग कम थी। श्रमिकों के पलायन के कारण श्रमिकों की कमी हो गई। मांग में कमी के साथ-साथ क्रूड ऑयल डेरिवेटिव, स्टील, सीमेंट उत्पादों आदि जैसे प्रमुख कच्चे माल की कीमतें बढ़ने लगीं। इन सभी ने कार्यशील पूंजी की जरूरत को बढ़ाया और अभी यह एक बड़ी चुनौती है।’
दूसरी ओर, अजीत शाह का मानना है कि उधार की सीमा बढ़ाने मिली वित्तीय सहायता से राहत तो मिली लेकिन इससे बोझ भी बढ़ा है। शाह ने कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान अधिकांश छोटे और मध्यम व्यवसाय मांग की कमी या उत्पादन के लिए श्रमिक नहीं होने के कारण संचालित नहीं हो पा रहे थे। नुकसान बहुत बड़ा था, फंडिंग सपोर्ट ने नुकसान को कवर किया लेकिन ज्यादातर उद्योग मांग में कमी के कारण लाभ उठाने में सक्षम नहीं थे।’
हालांकि, दोनों का मानना है कि अगर कोविड-19 के मामले नियंत्रण में रहे तो अगले कुछ महीनों में स्थिति में सुधार होने की संभावना है। डॉ वासा ने कहा, ‘मेरा मानना है कि अगले छह महीनों में स्थिति में सुधार होगा यदि महामारी नियंत्रित हो जाती है। हालांकि, महामारी से पहले के स्तर को पाने में समय लगेगा।’
इस प्रकार, संक्षेप में कहा जाए, तो व्यापारी और छोटे पैमाने के उद्यमी आगे कुछ ठोस नीतिगत बदलाव और एक विकास-उन्मुख दृष्टिकोण की उम्मीद कर रहे हैं, जिसमें स्वदेशी क्षेत्र अच्छी तरह से अपने पैरों पर खड़ा हो सके और आर्थिक रूप से मजबूत हो सके। इससे सामाजिक मोर्चे पर भी उनके लिए सकारात्मक परिदृश्य बनेगा और चारों ओर सकारात्मकता की उम्मीद बढ़ेगी। फिलहाल उनके मन में कर्ज के मामले में डिफॉल्ट करने और उससे जुड़े दुष्प्रभावों की चिंता है। हाल के समय में यह सामाजिक कलंक जैसा बन गया है और इसे रोकने की जरूरत है, क्योंकि इसमें निजी कर्ज की भी बड़ी हिस्सेदारी है और इस मामले में अस्थिरता बहुत ज्यादा है।