सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक विवादित फैसले पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि “स्तन दबाना” और “लड़की की पायजामे की डोरी तोड़ना” बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश पर स्वत: संज्ञान लेते हुए इसे असंवेदनशील करार दिया और कड़ी आलोचना की।
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला तत्काल लिया गया निर्णय नहीं था, बल्कि चार महीने तक विचार-विमर्श के बाद सुनाया गया था। जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय देने वाले की पूरी तरह से असंवेदनशीलता को दर्शाता है। यह कोई तात्कालिक निर्णय नहीं था, बल्कि इसे चार महीने तक विचार के बाद दिया गया। इसका मतलब है कि इसमें सोच-विचार किया गया था।”
मामले की गंभीरता को देखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर वह शुरुआती चरण में स्थगन देने में हिचकिचाता है, लेकिन हाईकोर्ट के फैसले के पैरा 21, 24 और 26 में की गई टिप्पणियां “कानून के सिद्धांतों से परे” हैं और इनमें “अमानवीय दृष्टिकोण” झलकता है। इसलिए, सुप्रीम कोर्ट ने इन टिप्पणियों पर रोक लगा दी।
इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार से इस मामले पर जवाब मांगा है। पीठ ने कहा, “हम भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट में मौजूद पक्षकारों को नोटिस जारी करते हैं। अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल अदालत की सहायता करेंगे।”
दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की एक अन्य पीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस विवादित फैसले के खिलाफ दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि: इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला दो अभियुक्तों, पवन और आकाश, की याचिका पर आया, जिन्हें निचली अदालत ने बलात्कार के आरोप में तलब किया था।
आरोप है कि इन दोनों ने 11 वर्षीय बच्ची का स्तन दबाया, उसकी पायजामे की डोरी तोड़ी और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास किया।
न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने फैसले में कहा कि केवल स्तन दबाने की घटना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आती, बल्कि यह महिलाओं को निर्वस्त्र करने या जबरन नग्न करने के इरादे से किए गए आपराधिक हमले की श्रेणी में आता है। हाईकोर्ट ने कहा कि दोनों अभियुक्तों को हमले से संबंधित धाराओं के तहत तथा पोक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत मुकदमे का सामना करना चाहिए, जिसमें सजा अपेक्षाकृत कम होती है।
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