सुप्रीम कोर्ट ने मादक पदार्थ जब्त (drug seizure) करने के 1996 के एक मामले में सुनवाई पूरी करने की समय-सीमा निर्धारित करने वाले गुजरात हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट की याचिका सोमवार को खारिज कर दी। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने ‘‘निरर्थक’’ याचिका दायर करने के लिए भट्ट पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया।
सुप्रीम कोर्ट ने भट्ट को जुर्माना गुजरात राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (State Legal Services Authority) के पास जमा करने का निर्देश दिया। बेंच ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता को इस अदालत के पास आने के बजाय जल्द सुनवाई के लिए निचली अदालत के साथ सहयोग करना चाहिए था। विस्तार प्रदान करने (grant of extension) का मामला निचली अदालत के लिए है। याचिका पूरी तरह से निरर्थक है। इसलिए 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है।’’
भट्ट की ओर से पेश हुए सीनियर वकील देवदत्त कामत ने कहा कि कई गवाहों का अभी तक परीक्षण नहीं किया गया है। ऐसे में हाई कोर्ट का निर्देश निचली अदालत को मामले में उचित तरह से विचार करके फैसला करने से रोकेगा। गुजरात की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि आपराधिक मामले में पक्षकारों को मामले के जल्दी निपटारे के लिए कोशिश करनी चाहिए।
बता दें कि भट्ट को 2015 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। वह 1996 में बनासकांठा जिले में पुलिस अधीक्षक थे। जिला पुलिस ने राजस्थान के एक वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को 1996 में यह दावा करते हुए गिरफ्तार किया था कि उन्होंने पालनपुर शहर के एक होटल के कमरे से मादक पदार्थ जब्त किया, जहां वह ठहरे हुए थे। वैसे राजस्थान पुलिस ने बाद में कहा कि बनासकांठा पुलिस ने राजपुरोहित को फंसाया था, ताकि राजस्थान के पाली स्थित एक विवादित संपत्ति को ट्रांसफर करने के लिए उसे मजबूर किया जा सके।
पूर्व पुलिस इंसपेक्टर आईबी व्यास ने 1999 में मामले की गहराई से जांच की मांग करते हुए गुजरात हाई कोर्ट का रुख किया था।
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