सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सभी याचिकाएं ख़ारिज कर दी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्थिक फैसले को पलटा नहीं जा सकता। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार और आरबीआई के बीच छह महीने तक बातचीत हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले को 4:1 से सही माना
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले लेने में ऊचित प्रक्रिया का पालन किया गया। पांच जजों में से चार ने सरकार के फैसले को सही माना जबकि एक ने उनसे अलग राय व्यक्त की। जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना बेंच में शामिल थे।
यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल किया गया था या नहीं
बहुमत के फैसले को पढ़ते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा कि विमुद्रीकरण का उद्देश्यों (कालाबाज़ारी, आतंक के वित्तपोषण को समाप्त करना, आदि) के साथ एक उचित संबंध था, जिसे प्राप्त करने की बात की गई थी। उन्होंने कहा कि यह प्रासंगिक नहीं है कि उद्देश्य हासिल किया गया था या नहीं। इसमें कहा गया है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया को केवल इसलिए गलत नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि प्रस्ताव केंद्र सरकार से आया था। उन्होंने कहा, “आर्थिक नीति के मामलों में बहुत संयम बरतना होगा। न्यायालय अपने विवेक से कार्यपालिका के विवेक का स्थान नहीं ले सकता।”
केवल एक गजट अधिसूचना जारी करके केंद्र द्वारा नहीं किया जा सकता है।
हालांकि न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने असहमति जताते हुए कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों की पूरी श्रृंखला का विमुद्रीकरण एक गंभीर मामला है और यह केवल एक गजट अधिसूचना जारी करके केंद्र द्वारा नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार के कहने पर नोटों की सभी श्रृंखलाओं का विमुद्रीकरण बैंक द्वारा करना कहीं अधिक गंभीर मुद्दा है। इसलिए इसे कानून के जरिए किया जाना चाहिए। भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) के तहत ‘कोई भी श्रृंखला’ का अर्थ ‘सभी श्रृंखला’ नहीं हो सकता है। धारा 26(2) केवल मुद्रा नोटों की एक विशेष श्रृंखला के लिए हो सकती है और किसी मूल्यवर्ग के मुद्रा नोटों की पूरी श्रृंखला के लिए नहीं है।”
नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था
सरकार (government) द्वारा नवंबर 2016 में 500 रुपये और 1,000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया गया था। न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर (Justice S Abdul Nazeer) की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं, केंद्र और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की विस्तृत दलीलें सुनने के बाद 7 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Supreme Court ने सरकार से रिकॉर्ड मांगा था
बेंच में जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम (Justices A S Bopanna and V Ramasubramanian) भी शामिल हैं, जिन्होंने सरकार और RBI को 8 नवंबर 2016 की नोटबंदी अधिसूचना के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया से संबंधित रिकॉर्ड पेश करने के लिए कहा था।
बता दें कि जस्टिस नज़ीर 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं। याचिकाकर्ताओं ने अपनी दलीलों में तर्क दिया था कि आरबीआई अधिनियम 1934 की धारा 26 (2) में नोटबंदी की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।
अधिनियम की धारा 26(2) में कहा गया है कि RBI की केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर केंद्र सरकार (Central Government) भारत के राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकती है कि इस तारीख से किसी भी बैंक नोटों की कोई भी श्रृंखला बैंक के निम्न कार्यालय या एजेंसी को छोड़कर अन्य जगह मान्य नहीं होगा।
सरकार ने केंद्रीय बैंक को सलाह दी- पी चिदंबरम
एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम (Senior Advocate P Chidambaram) ने तर्क दिया कि अधिनियम के अनुसार सिफारिश आरबीआई की ओर की जानी चाहिए थी। लेकिन इस मामले में सरकार ने केंद्रीय बैंक को सलाह दी थी, जिसके बाद उसने सिफारिश की। उन्होंने कहा कि जब पहले की सरकारों ने 1946 और 1978 में नोटबंदी की थी, तो उन्होंने संसद द्वारा बनाए गए कानून के जरिए ऐसा किया था।