भाजपा ने बुधवार को सुनील बंसल ( Sunil Bansal ) को राष्ट्रीय महामंत्री ( National General Secretaryनियुक्त किया, जिन्होंने उत्तर प्रदेश ( Uattar Pradesh ) में 2014 से पार्टी की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । बंसल को पश्चिम बंगाल , ओडिशा और तेलंगाना ( (West Bengal, Odisha and Telangana )का प्रभारी( In charge)बनाया गया है। 2024 को ध्यान में रखते हुए पार्टी विपक्ष शासित (Opposition Ruled ) इन तीनों राज्य पर विशेष ध्यान दे रही है।
यह घटनाक्रम एनडीए ( NDA) के प्रमुख सहयोगी जद (यू) ( JD- U) के अलग होने के एक दिन बाद आया है, जिससे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बिहार ( BIHAR) में भाजपा ( BJP )की चुनावी गणना गड़बड़ा गई है। भाजपा महासचिव अरुण सिंह (BJP General Secretary Arun Singh)के मुताबिक, यूपी में महासचिव (संगठन) बंसल की जगह धर्मपाल लेंगे, ( Dharampal will replace Bansal as General Secretary (Organisation) in UP ) जो झारखंड ( JHARKHAND )में पार्टी के सचिव (संगठन) रहे हैं। संयोग से, धर्मपाल और बंसल दोनों ही एबीवीपी ( ABVP )से जुड़े रहे हैं। पश्चिमी यूपी के बिजनौर ( Bijnaur )जिले से ताल्लुक रखने वाले धर्मपाल 1990 में एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में संघ के छात्र मोर्चा में शामिल हुए थे। वह यूपी और उत्तराखंड ( UP and Uttarakhand) के लिए एबीवीपी के संयुक्त क्षेत्रीय संगठन सचिव थे।
पार्टी ने कहा कि करमवीर ( Karamveer) को भाजपा की झारखंड इकाई का महासचिव नियुक्त किया गया है। वह पहले यूपी में भाजपा के संयुक्त महासचिव (संगठन) थे। पश्चिम बंगाल में बंसल ने राज्य के प्रभारी भाजपा महासचिव के रूप में कैलाश विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya )की जगह ली है। विजयवर्गीय ने तेलंगाना में तरुण चुग और ओडिशा में डी पुरंदेश्वरी की जगह ली है।
राजस्थान में जन्मे 52 वर्षीय बंसल छात्र जीवन से ही आरएसएस से जुड़े हैं। यूपी के लिए 2014 के लोकसभा चुनाव की रणनीति तैयार करते समय उन्हें गृह मंत्री अमित शाह ( Home Minister Amit Shah )ने चुना था। इससे पहले बंसल आरएसएस के प्रचारक थे। इस तरक्की के साथ शाह के करीबी माने जाने वाले बंसल के भाजपा में एक महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र बनने की उम्मीद है।
बता दें कि किसी भी भाजपा इकाई में महासचिव (संगठन) या संगठन महामंत्री की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि ये नेता पार्टी में आरएसएस द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। पार्टी के महासचिव (संगठन) को संघ और किसी भी राज्य की सरकार के बीच संयोजक की महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है, जहां भाजपा सत्ता में होती है। यह सब पार्टी और सरकार के कोर ग्रुप का हिस्सा होते हुए भी करना होता है।
भाजपा के सूत्रों ने कहा कि बंसल को उन राज्यों में नियुक्त करना, जहां पार्टी 2024 में अपनी संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही है, शीर्ष नेतृत्व के उन पर विश्वास की “स्वीकृति” है। इसी तरह उन्होंने खुद कहा, यह उनके लिए एक “बड़ी चुनौती” है।
जद (यू) के बाहर होने के बाद बिहार में संभावित नुकसान की भरपाई के लिए- एनडीए ने 2019 में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी- भाजपा को यह सुनिश्चित करना होगा कि बंगाल, ओडिशा, झारखंड और तेलंगाना से सीटें अधिक आएं। भाजपा के एक पूर्व महासचिव ने कहा, “बंसल को कम से कम दो राज्यों में काम करना होगा, क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए इन राज्यों से अधिक सीटें हासिल करना बहुत महत्वपूर्ण है।”
सूत्रों ने कहा कि हालांकि बंसल राष्ट्रीय स्तर पर आने के लिए यूपी छोड़ने के इच्छुक थे, लेकिन उनकी छाया राज्य भाजपा संगठन में बनी रहेगी, क्योंकि उन्होंने वहां “पहले से ही गहरे नेटवर्क और कनेक्शन” बना रखे हैं।
यूपी से बंसल को स्थानांतरित करने का निर्णय इस साल के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद अपेक्षित ही था। इसलिए भी कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार और बंसल के बीच तालमेल काफी समय से ठीक नहीं बताया जा रहा था।
भाजपा नेताओं के एक वर्ग ने तर्क दिया कि बंसल के जाने से आदित्यनाथ को अपने प्रभाव को मजबूत करने के लिए और अधिक अवसर मिलेगा। हालांकि एक नेता ने बताया कि केंद्रीय नेतृत्व ने आदित्यनाथ के करीबी माने जाने वाले स्वतंत्र देव सिंह की जगह केशव प्रसाद मौर्य को राज्य विधान परिषद में नेता सदन बना कर यूपी के सीएम पर “अंकुश” लगा दिया है। सिंह और मौर्य दोनों डिप्टी सीएम हैं, लेकिन एक प्रमुख ओबीसी नेता मौर्य आदित्यनाथ के साथ अपने मतभेदों के लिए जाने जाते हैं।
बंसल की पदोन्नति को पार्टी संगठन पर शाह की निरंतर पकड़ के संकेत के रूप में भी देखा जा रहा है। ऊपर उद्धृत नेता ने कहा, “यह सही है कि संगठन उन लोगों पर भरोसा करता है, जिन्हें शाह ने महत्वपूर्ण राज्यों में काम संभालने के लिए चुना है।” भाजपा के एक नेता ने कहा कि पार्टी नेतृत्व उन्हें 2024 में भाजपा के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले तीन राज्यों का प्रभार दे रहा है, जो दर्शाता है कि पार्टी के पास चुनावी रणनीतियों के लिए अनुभवी और वरिष्ठ लोग अधिक नहीं हैं।
रही बात विजयवर्गीय की, तो उन्हें पश्चिम बंगाल में भाजपा का संगठन खड़ा करने का श्रेय दिया जाता है। वहां वे 2015 से भाजपा के प्रभारी रहे और लोकसभा में 18 सीटें और विधानसभा चुनावों में 70 से अधिक सीटें दिलाईं। लेकिन उन्होंने पश्चिम बंगाल का दौरा तब से बंद कर दिया है, जबसे सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने उनके खिलाफ मामले दर्ज करा दिए हैं।
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