सोशल मीडिया कंपनी मेटा (Meta) के अधिकारियों ने सुरक्षा कारणों से भारत में हेट स्पीच के पूरे ब्योरे जारी नहीं किए थे। उन्होंने मानवाधिकार संगठनों (rights groups) को अपने हाथ बंधे होने के बारे में बता दिया था। उनके मुताबिक, सुरक्षा को लेकर पैदा हुई चिंताओं ने भारत में उसकी सेवाओं पर अभद्र भाषा (hate speech on its services in India) को लेकर की गई जांच का पूरा विवरण जारी करने से रोक दिया। यह जानकारी वॉल स्ट्रीट जर्नल (Wall Street Journal) ने दी है। उसने इस सिलसिले में मेटा के अधिकारियों की उस समय की ऑडियो रिकार्डिंग सुनी है।
दरअसल फेसबुक की मूल कंपनी मेटा ने जुलाई में मानवाधिकारों के प्रभावों से संबंधित रिपोर्ट (human-rights impact assessment on India) जारी की थी। यह रिपोर्ट भारत और अन्य देशों में फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे मंचों से संबंधित संभावित मानवाधिकार जोखिमों पर मेटा द्वारा 2019 में शुरू किए गए एक स्वतंत्र मानवाधिकार प्रभाव मूल्यांकन (एचआरआईए) पर आधारित है। इसमें उसने बताया कि वहां जांच के दौरान उसे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर इस्तेमाल अभद्र भाषा (हेट स्पीच) के सबूत जुटाने में बाधाओं का सामना करना पड़ा। भारत पर चार पन्ने की यह संक्षिप्त (summary) रिपोर्ट कंपनी की पहली वैश्विक मानवाधिकार रिपोर्ट का हिस्सा थी। इसमें भारत में किए गए मूल्यांकन के केवल सामान्य विवरण शामिल थे, जिसने मानवाधिकार के कुछ पैरोकारों को निराश (which disappointed some rights advocates) किया।
रिकॉर्डिंग के अनुसार, मेटा के वरिष्ठ मानवाधिकार सलाहकार इयान लेविन ने जुलाई के अंत में अधिकार समूहों के साथ निजी ऑनलाइन ब्रीफिंग के दौरान कहा था, “यह वह रिपोर्ट नहीं है जिसे मेटा में मानवाधिकार टीम प्रकाशित करना चाहती थी। हम और अधिक सामने लाना चाहते थे।” उन्होंने कहा, “कंपनी के उच्चतम स्तर पर आंतरिक और बाहरी सलाह के आधार पर निर्णय लिया गया था कि सुरक्षा कारणों से ऐसा करना संभव नहीं (A decision was made at the highest levels of the company based upon both internal and external advice that it was not possible to do so for security reasons) था।”
कंपनी ने रिपोर्ट जारी होने के समय कहा था कि वह पूरे भारत के अध्ययन पर आधारित ब्योरे प्रकाशित नहीं (it wouldn’t publish the full India assessment)करेगी। उसने यह भी कहा कि मानवाधिकार मुद्दों पर रिपोर्टिंग करने वाली कंपनियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के दिशानिर्देश असल में ब्योरे जारी करने के खिलाफ सावधानी बरतते हैं, जो हितधारकों को जोखिम में डाल सकते (United Nations guidelines for companies reporting on human-rights issues caution against releasing details that could imperil stakeholders) हैं।
सुनी गई रिकॉर्डिंग के अनुसार, अधिकार समूहों के प्रतिनिधियों ने मेटा के अधिकारियों के साथ बैठक में तर्क दिया कि कंपनी अपने प्रयासों में पारदर्शी नहीं हो रही थी। ऐसा लगता है कि वह इस मसले को गंभीरता से नहीं लेती है।
रिकार्डिंग में खुद को भारतीय मुस्लिम शोधकर्ता बताने वाला एक शख्स कहता है, “मेटा पूर्ण मूल्यांकन जारी नहीं कर रहा है। यह मेरे और उनके चेहरे पर चेहरे पर तमाचे जैसा है, जिन्होंने इस प्लेटफार्म पर इतने बड़े पैमाने पर हेट स्पीच को बर्दाश्त किया है।”
मेटा के मानवाधिकार निदेशक लेविन और मिरांडा सिसंस ने कहा कि वे उन शिकायतों को समझते हैं और चाहते हैं कि वे रिकॉर्डिंग के अनुसार अधिक विवरण जारी करने में सक्षम हों।
अधिकारियों ने ब्रीफिंग के दौरान कहा कि यह प्रयास मानव अधिकारों की चिंताओं को दूर करने के लिए मेटा में एक महत्वपूर्ण पहला कदम है। उन्होंने कहा कि सारांश (summary) डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन राइट्स से डिजिटल कंपनियों के लिए मानवाधिकार प्रभाव आकलन पर मार्गदर्शन से परामर्श करने के बाद लिखा गया था।
बता दें कि मेटा को वर्षों से मानवाधिकार समूहों की आलोचना का सामना करना पड़ा है। उसके अधिकारियों द्वारा भारत में उसके प्लेटफार्मों पर इस्तेमाल होने वाले हेट-स्पीट के बारे में जांच की गई है, जहां 300 मिलियन से अधिक लोग फेसबुक का उपयोग करते हैं और 400 मिलियन से अधिक उसकी व्हाट्सएप मैसेजिंग सेवा पर हैं। मेटा ने कहा है कि वह भारत में सभी भाषाओं में हेट स्पीट खोजने के लिए प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण निवेश करती (it invests significantly in technology to find hate speech across languages in India) है। 2020 में मेटा की सुरक्षा टीम ने निष्कर्ष निकाला कि भारत में एक हिंदू राष्ट्रवादी संगठन ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा का समर्थन (In 2020, Meta’s safety team concluded that a Hindu nationalist organization in India supported violence against minorities ) किया। और, वह शायद ऐसा संगठन है जिसे फेसबुक से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, जैसा कि उस वर्ष जर्नल ने रिपोर्ट किया था। फेसबुक ने आंतरिक सुरक्षा-टीम की चेतावनियों के बावजूद उस संगठन को नहीं हटाया। इसलिए कि ऐसा करने से भारत में उसकी व्यावसायिक संभावनाओं और कर्मचारियों दोनों के लिए खतरा हो सकता है।
जुलाई में जारी संक्षिप्त रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में मानवाधिकारों के जोखिमों में अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और शत्रुता, भेदभाव या हिंसा को उकसाने वाली घृणा की तीसरी पार्टी की वकालत (among the human-rights risks in India were restrictions of freedom of expression and information and third-party advocacy of hatred that incites hostility, discrimination or violence) शामिल है। रिपोर्ट में पाया गया कि अन्य जोखिमों में निजता के अधिकारों का उल्लंघन और व्यक्तियों की सुरक्षा शामिल है।
सूरत: ऑटो चालक का 20 वर्षीय चार्टर्ड अकाउंटेंट बेटा अमीरी की राह पर