छात्र नेताओं ने अमी उपाध्याय के डॉ बाबासाहेब अंबेडकर विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति (in charge vice-chancellor) के रूप में चयन की जांच की मांग की है। उपाध्याय राज्य के इकलौते कुलपति नहीं हैं, जिनकी साख पर सवाल उठाए गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, बड़े सरकारी विश्वविद्यालयों में पांच अन्य कुलपति हैं, जिनकी साख पर पहले भी सवाल उठ चुके हैं। लेकिन राज्य सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है।
सूत्रों ने कहा कि ऐसे कुलपतियों में गुजरात विश्वविद्यालय के हिमांशु पांड्या, एमएस विश्वविद्यालय के वीके श्रीवास्तव, भारतीय शिक्षक शिक्षा संस्थान (आईआईटीई) के हर्षद पटेल, बाल विश्वविद्यालय (Children’s University) के कुलपति के रूप में कार्यकाल पूरा करने वाले हर्षद शाह, और जूनागढ़ में भक्त कवि नरसिंह मेहता विश्वविद्यालय (BKNMU) के चेतन त्रिवेदी शामिल हैं। चेतन त्रिवेदी का कार्यकाल हाल ही में पूरा होने के बावजूद उन्हें उसी विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलपति (acting VC) नियुक्त कर दिया गया है।
सूत्रों ने बताया कि इन कुलपतियों पर भी एमी उपाध्याय की तरह ही आरोप लगे हैं। कई लोगों पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा निर्धारित न्यूनतम आवश्यक योग्यता (minimum required qualification) नहीं रखने का आरोप लगाया गया है।
कांग्रेस की छात्र शाखा नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) ने हाल ही में उपाध्याय की नियुक्ति के संबंध में मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था। सदस्यों ने आरोप लगाया कि उपाध्याय, जो प्रोफेसर भी नहीं हैं, उन्हें प्रभारी कुलपति नियुक्त किया गया है।
एनएसयूआई के एक सदस्य ने आरोप लगाया, “इस पद के उम्मीदवार के पास प्रोफेसर के रूप में 10 साल का अनुभव होना चाहिए और पीएचडी गाइड होना चाहिए। उपाध्याय प्रोफेसर के लिए योग्य नहीं हैं, फिर भी उन्हें प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया है। ऊपर से प्रभारी वीसी के रूप में भी चुन लिया गया है।”
मार्च 2022 में एक महत्वपूर्ण आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सरदार पटेल विश्वविद्यालय के कुलपति शिरीष कुलकर्णी की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। इसलिए कि उनके पास महत्वपूर्ण पद संभालने के लिए पर्याप्त शिक्षण अनुभव नहीं था।
कुलपति को हटाने का आदेश देते हुए जस्टिस एमआर शाह और बीवी नागरत्ना की बेंच ने गुजरात सरकार को एसपी विश्वविद्यालय कानून और राज्य के कानून को जारी रखने के लिए फटकार लगाई थी, जो यूजीसी के नियमों के खिलाफ हैं।
सूत्रों ने माना कि इन कुलपतियों के पास शैक्षणिक योग्यता (academic qualifications) और अनुभव नहीं है। उनके खिलाफ राज्य शिक्षा विभाग और मुख्यमंत्री के सामने भी शिकायतें दर्ज की गई हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि इन कुलपतियों की नियुक्तियां राजनीतिक हैं, यही वजह है कि राज्य सरकार आरोपों की अनदेखी कर रही है।