दाहोद के पहाड़ी गर्म क्षेत्र में पहली बार स्ट्रॉबेरी की खेती की गई है। सामाजिक संगठन सद्गुरु फाउंडेशन और गरबाड़ा तालुका महिला विकास मंडल के सहयोग से, पंडाडी गांव के किसान 500 स्ट्रॉबेरी के पौधे उगाने और अपनी आय बढ़ाने में सक्षम हैं।भारत में कुछ वर्षों पूर्व तक स्ट्रॉबेरी की खेती केवल पहाड़ी क्षेत्रों जैसे उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर घाटी, महाराष्ट्र, कालिम्पोंग इत्यादि जगहों तक ही सीमित थी|
वर्तमान में नई उन्नत प्रजातियों के विकास से इसको उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है| इसके कारण यह मैदानी भागों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार आदि राज्यों में अपनी अच्छी पहचान बना चुकी है|
स्ट्रॉबेरी केवल ठंडे क्षेत्रों में उगाई जाती है। जिले में स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में सोचते हुए, सद्गुरु फाउंडेशन के सदस्यों ने गरबाडा तालुका के पंडाडी गांव के किसान रमेशभाई बामनिया के खेत में प्रयोग के तहत पूना से लगभग 500 स्ट्रॉबेरी के पौधे मंगवाए थे।
जिसे कम जमीन में लगाया जाता था और सिंचाई के लिए ड्रिप और मल्चिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था।
हालांकि, इस स्ट्रॉबेरी का आकार बाजार में मिलने वाले स्ट्रॉबेरी से काफी बड़ा होता है और इसका स्वाद भी काफी अलग होता है. किसान ने 20 किलो स्ट्रॉबेरी भी 350 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा।
दाहोद जिले में स्ट्रॉबेरी का प्रयोग पहली बार सफल रहा है। इस खेती से पृथ्वी पुत्रों की आय में भी उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
उपयुक्त जलवायु
स्ट्रॉबेरी शीतोष्ण जलवायु की फसल है, परंतु उन्नत किस्मों के विकास से इसको अब समशीतोष्ण एवं उष्णकटिबंधीय जलवायु में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है
| यह कम प्रकाश अवधि (शॉर्ट डे) वाला पौधा है| इसमें पुष्पन प्रारंभ होने के लिए लगभग 10 दिनों तक 8 घंटे से कम प्रकाश अवधि की जरूरत होती है|
पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए दिन का अधिकतम तापमान 22 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान 7 से 13 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना गया है|
इसके फूलों व नाजुक फलों को पाले से बचाने के लिए निम्न सुरंग तकनीक (लो टनल टैक्नीक) का प्रयोग किया जा सकता है|