बांग्लादेश में इतिहास ने खुद को दोहराया है. एक बार फिर देश में तख्तापलट हुआ है और इस बार भी सेना की असंतुष्ट बागी टुकड़ी ही सूत्रधार रही. परिवार भी वही शेख मुजीबुर्रहमान का है. 49 साल पहले डेढ़ घंटे की बगावत ने पूरी दुनिया को सहमा दिया था और इस बार भी 15 साल से सत्ता संभाल रहीं शेख हसीना पर कुछ ही घंटे भारी पड़े. साल 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान की हत्या हुई. परिवार के 8 लोग भी मारे गए.
शेख मुजीब ने जिस देश को आजादी दिलाई और ‘बंग-बंधु’ की उपाधि पाई, उसी देश की भीड़ या कह सकते हैं बागी सेना ने उनकी जान ले ली और आज उनकी बेटी की जान की दुश्मन भी बागी सेना ही बन गई.
सोमवार को 45 मिनट के दरम्यान ही शेख हसीना से सत्ता छिन गई और देश छोड़कर भागना पड़ा. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की दोनों बेटियों शेख हसीना और शेख रेहाना को भारत आकर खुद को सुरक्षित करना पड़ा है. 49 साल पहले डेढ़ घंटे की बगावत में ना सिर्फ तख्तापलट हुआ था, बल्कि विद्रोहियों ने देश में महीनों की अस्थिरता पैदा कर दी थी. घटना के वक्त शेख मुजीब की दोनों बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना जर्मनी थीं और उन्हें जान बचाने के लिए 6 साल तक भारत में शरण लेनी पड़ी थी.
बांग्लादेश में दो प्रमुख पार्टियां हैं. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) और बांग्लादेश अवामी लीग. बांग्लादेश गठन (साल 1971) के बाद BNP की कमान जियाउर रहमान के हाथों में थी और अवामी लीग के अध्यक्ष शेख मुजीबुर्रहमान थे. बांग्लादेश को आजादी मिलने के बाद शेख मुजीब पहले प्रधानमंत्री बने और तीन साल तक सरकार संभाली. शेख मुजीब को बांग्लादेश का संस्थापक माना जाता है. लेकिन, 15 अगस्त 1975 की सुबह ढाका में धान मंडी स्थित प्रधानमंत्री के आवास पर अचानक हमला हो गया.
ये हमला तख्तापलट के लिए सेना की ही बागी टुकड़ी ने किया था. शेख मुजीब और उनके परिवार के 8 सदस्यों का कत्लेआम कर दिया गया. गनीमत रही कि शेख मुजीब की दोनों बेटियां मौके पर नहीं थीं. वाणिज्य मंत्री खोंडेकर मुस्ताक अहमद ने तुरंत सरकार का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया और 15 अगस्त 1975 से 6 नवंबर 1975 तक खुद अंतरिम सरकार के प्रमुख रहे.
बंग-बंधु के तौर पर याद किए जाते हैं शेख मुजीब
शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान को भारत हमेशा से बंग-बंधु के तौर पर याद करता आया है, जिसका मतलब होता है, बंगाल का सच्चा मित्र. भारत दुनिया का पहला ऐसा देश था, जिसने बांग्लादेश को एक राष्ट्र के तौर मान्यता दी थी और पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश का रूप देने के लिए पाकिस्तान से युद्ध भी लड़ा था. इस युद्ध को भारत ने सिर्फ 13 दिनों में जीत लिया था.
1975 की वो रात… सेना ने शेख मुजीब और उनके परिवार को मार डाला
बात वर्ष 1975 की है. उस समय शेख मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के प्रधानमंत्री थे और सेना में उनके खिलाफ काफी असंतोष था. जिसका नतीजा ये हुआ कि 15 अगस्त 1975 की रात सेना की कुछ टुकड़ियों ने ढाका में उनके खिलाफ ऑपरेशन चलाया और ये सब डेढ़ घंटे में पूरा हो गया. शेख मुजीबुर्रहमान के ढाका में तीन घर थे और उस रात सेना ने उनके तीनों घरों पर धावा बोला था. सबसे पहले शेख मुजीबुर्रहमान के रिश्तेदार अब्दुर रब सेरानिबात के घर पर हमला किया गया. वो शेख मुजीब की सरकार में मंत्री भी थे. सेना ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी थी. उसके बाद सेना की दूसरी टुकड़ी ने रात में ही शेख मुजीब के घर पर हमला किया.
इस बीच, उनके निजी सचिव ने पुलिस को कई बार फोन किया लेकिन कोई मदद नहीं मिली. इस दौरान सेना आवास में घुस गई और सबसे पहले बेटे शेख कमाल को गोली मारी गई, जो सीढ़ियों पर खड़े थे. उसके बाद शेख कमाल की पत्नी, उनके छोटे बेटे शेख जमाल, उनकी पत्नी और बाद में शेख मुजीब को भी मार दिया गया. हमले के वक्त शेख मुजीबुर्रहमान के छोटे बेटे नासीर ने सेना से गुहार लगाई और बताया कि वो राजनीति में नहीं हैं. इसके बावजूद उन्हें भी मार दिया गया था.
6 साल तक दिल्ली में रहीं शेख हसीना और उनकी बहन
शेख मुजीब के सबसे छोटे बेटे रसल उस समय सिर्फ 10 साल के थे, लेकिन सेना ने उन्हें भी गोलियों से भून कर मार डाला. घर में जब ये सब हो रहा था तब सेना की एक और टुकड़ी फजलुल हक मोनी के घर पहुंची. जो शेख मुजीब उर रहमान के भतीजे थे. सेना ने उन्हें और उनके परिवार को भी बड़ी बेरहमी से मार दिया. मारे गए लोगों में फजलुल हक मोनी की पत्नी भी थीं, जो उस समय गर्भवती थीं. लेकिन उन्हें भी सेना नहीं छोड़ा. इस तरह उस रात शेख मुजीब और उनके परिवार के दूसरे लोगों की हत्या कर दी गई. हालांकि इस हमले में उनकी बेटी शेख हसीना और छोटी बेटी शेख रेहाना की जान बच गईं. क्योंकि 1975 में जब बांग्लादेश में तख्तापलट हुआ, तब दोनों बहनें जर्मनी में थीं.
उस समय शेख हसीना 28 साल की थीं. वे अपने पति के साथ थीं. शेख हसीना के पति परमाणु वैज्ञानिक थे और जर्मनी में रहते थे. बाद में दोनों बहनें भारत पहुंचीं और तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें दिल्ली में शरण दी. वे साल 1975 से 1981 यानी 6 वर्षों तक दिल्ली में रहीं. उस समय दिल्ली में उनका पता 56, रिंग रोड, लाजपतनगर-3 था. बाद में वो दिल्ली के पंडारा पार्क इलाके में एक घर में शिफ्ट हो गई थीं. लाजपतनगर में जहां वो रहीं हैं, अब उस जगह पर एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स बन गया है. इससे पहले ये जगह बांग्लादेश की एम्बेसी को दी गई थी. जो वर्ष 2003 तक रही.
15 साल तक सत्ता में रहीं शेख हसीना
साल 1981 में शेख हसीना बांग्लादेश पहुंचीं. उसके बाद उन्होंने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली के लिए आवाज उठाना शुरू किया. साल 1991 के चुनाव में शेख हसीना की पार्टी आवामी लीग को हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा और साल 1996 के चुनाव में पार्टी को जीत मिली. शेख हसीना बांग्लादेश की पहली प्रधानमंत्री बनीं. उन्होंने लगातार 15 साल तक सत्ता संभाली और अब तक पांच बार प्रधानमंत्री बनीं.
1975 में बांग्लादेशी सेना ने क्यों बगावत की थी?
1975 में बांग्लादेशी सेना के बगावत करने के कई फैक्टर थे. इनमें राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक समस्याएं और सत्तावादी शासन शामिल था. दरअसल, 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता के बाद बांग्लादेश को एक नए राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की प्रक्रिया में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. मुक्ति संग्राम के बाद देश में बड़े स्तर पर आर्थिक समस्याएं आईं. बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान ने देश की आजादी के बाद सरकार का नेतृत्व किया. उनकी सरकार ने एक लोकतांत्रिक संविधान को अपनाया, लेकिन बाद में सत्तावादी रुख अपनाया. स्वतंत्रता के बाद बांग्लादेश को गंभीर आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ा. गरीबी, बेरोजगारी और खाद्य संकट ने आम लोगों की स्थिति को और खराब कर दिया. इन समस्याओं से निपटने में सरकार की असमर्थता के कारण जनता में असंतोष बढ़ता गया.
शेख मुजीबुर्रहमान ने 1975 में ‘बकशाल’ (Bangladesh Krishak Sramik Awami League) की स्थापना की, जो एक पार्टी सिस्टम था. इस सिस्टम ने राजनीतिक विपक्ष और स्वतंत्रता को खत्म कर दिया, जिससे जनता और सेना के एक वर्ग में असंतोष बढ़ गया. जवानों को लगा कि उनकी भूमिका और बलिदान को उचित सम्मान नहीं मिला रहा है. सेना के कुछ गुटों ने महसूस किया कि शेख मुजीब की सरकार भ्रष्ट और अक्षम है. राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा का माहौल बढ़ गया. सरकार की नीतियों और निर्णयों से असंतुष्ट समूहों ने विद्रोह का रास्ता अपनाया. 15 अगस्त 1975 को सेना के कुछ गुटों ने बगावत की और शेख मुजीब को उनके परिवार समेत मार दिया. इस बगावत के बाद देश में राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई. कई वर्षों तक सेना ने सत्ता पर नियंत्रण रखा.
खालिदा जिया के पति के बगावत की पूरी कहानी क्या है?
दरअसल, 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल जियाउर रहमान ने प्रमुख भूमिका निभाई थी और वे एक वीर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जाने जाते थे. स्वतंत्रता के बाद वे बांग्लादेश की सेना में एक उच्च पद पर थे. 1975 में जब देश में प्रधानमंत्री के खिलाफ बगावत खुलकर सामने आई, उस समय जियाउर रहमान प्रमुख सैन्य अधिकारी थे. हालांकि वे सीधे इस बगावत में शामिल नहीं थे. शेख मुजीब की हत्या में शामिल कुछ मेजर बंगभवन से सेना के ज्यादातर मामले नियंत्रित कर रहे थे. तख्तापलट के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल शफिउल्लाह को हटा दिया गया और जियाउर रहमान को सेना का नेतृत्व सौंपा गया. लेकिन बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बनी रही. नवंबर 1975 में जियाउर रहमान ने एक और तख्तापलट के जरिए सत्ता पर कब्जा कर लिया और देश के राष्ट्रपति बन गए.
राष्ट्रपति बनने के बाद जियाउर रहमान ने बांग्लादेश में राजनीतिक स्थिरता लाने की कोशिश की. उन्होंने नए राजनीतिक दलों को अनुमति दी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की स्थापना की. उनके शासन में बांग्लादेश ने आर्थिक सुधारों की दिशा में कदम उठाए. साल 1981 में सैन्य बगावत के दौरान चिटगांव में जियाअर रहमान की हत्या कर दी गई. उनकी मौत के बाद पत्नी खालिदा जिया ने BNP का नेतृत्व संभाला. उनका पूरा नाम बेगम खालिदा जिया है. बाद में वो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं. वे 1991 से 1996 और 2001 से 2006 तक प्रधानमंत्री रहीं. खालिदा जिया पर कई भ्रष्टाचार के मामले दर्ज किए गए हैं. 2018 में उन्हें एक भ्रष्टाचार मामले में दोषी ठहराया गया और जेल की सजा सुनाई गई. वे इस समय घर पर ही नजरबंद चल रही थीं. सोमवार को तख्तापलट के बार राष्ट्रपति ने उनकी रिहाई का आदेश दिया. वर्तमान में खालिदा जिया की स्वास्थ्य स्थिति गंभीर है और वे कई बार चिकित्सा उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हो चुकी हैं.
शेख हसीना और रेहाना को क्यों छोड़ना पड़ा देश?
बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ एक पखवाड़े पहले छात्रों ने आंदोलन शुरू किया. ये आंदोलन कॉलेज-यूनिवर्सिटी से सड़कों तक पहुंचा और फिर देशव्यापी प्रदर्शन में तब्दील हो गया. नतीजन, शेख हसीना की सरकार गिर गई. ये सब कुछ 24 घंटे के दरम्यान हुआ. रविवार को आंदोलन में पुलिस और प्रदर्शनकारियों में टकराव हुआ. हिंसा में कम से कम 94 लोग मारे गए. भीड़ के हमले में 13 पुलिसकर्मियों की भी मौत हो गई. देश में 15 दिन के भीतर करीब 300 लोग मारे गए हैं. सरकार ने इन प्रदर्शनों को सख्ती से खत्म करने की कोशिश की. गोलियां चलीं. सेना सड़कों पर उतरी, लेकिन आंदोलन नहीं थमा. सोमवार को स्टूडेंट विंग ने ढाका में मार्च निकाला. सेना के एक गुट के बगावत किए जाने से शेख हसीना की मुश्किलें बढ़ गईं और अराजकता का माहौल बन गया. बाद में सेना के अफसरों ने शेख हसीना को प्रधानमंत्री आवास छोड़ने के लिए 45 मिनट का वक्त दिया.
दोपहर 2:30 बजे प्रधानमंत्री आवास से ही सेना के हेलिकॉप्टर में बैठकर शेख हसीना को देश छोड़ना पड़ा. उनके साथ बहन शेख रेहाना भी थीं. सोमवार शाम राष्ट्रपति ने देश को संबोधित किया और बताया कि शेख हसीना ने आज उन्हें प्रधानमंत्री पद से अपना इस्तीफा सौंप दिया है और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है. राष्ट्रपति ने कहा, संसद को भंग करके जल्द से जल्द अंतरिम सरकार बनाने का निर्णय लिया गया है. सेना भी मौजूदा अराजक स्थिति को सामान्य करने के लिए कदम उठाएगी. अंतरिम सरकार जल्द से जल्द आम चुनाव कराएगी.
जश्न के साथ सड़कों पर उतर आई उत्तेजित भीड़
शेख हसीना के इस्तीफे की खबर के बाद उत्तेजित भीड़ जश्न मनाने के लिए सड़कों पर उतर आई है। चटगांव मेट्रोपॉलिटन पुलिस (CMP) ने बताया कि चांदगांव, पटेंगा, ईपीजेड, कोटवाली , अकबर शाह और पहाड़ली में पुलिस थानों पर हमला किया गया है। थानों में तोड़फोड़ के बाद आग लगा दी गई। हमलावरों ने दामपारा में चटगांव मेट्रोपॉलिटन पुलिस लाइंस के मुख्य द्वार को भी तोड़ने की कोशिश की।
पुलिस पर बरसाए ईंट-पत्थर
वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने हमलावरों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और रबर की गोलियां चलाईं। इसके बाद सैकड़ों की संख्या में लोग दम्पारा पुलिस लाइंस के मुख्य द्वार के सामने जमा हो गए और हमला कर जबरन अंदर घुसने की कोशिश करने लगे। उत्तेजित भीड़ ने पुलिस आयुक्त कार्यालय पर ईंट-पत्थर बरसाने शुरू कर दिए।
सेंट्रल जेल पर भी उपद्रवियों ने किया हमला
एक अन्य घटना में लालदिघी इलाके में चटगांव सेंट्रल जेल पर भी हमला किया गया है। उपद्रवियों को तितर-बितर करने के लिए जेल प्रहरियों ने अंदर से फायरिंग की। शाम करीब 5 बजे हलीशहर के चोटोपुल इलाके में चटगांव जिला पुलिस लाइंस को भी निशाना बनाया गया।
अवामी लीग के पार्षद और सांसदों पर हमला
सीसीसी वार्ड नंबर 10 के पार्षद निचार उद्दीन मंजू के घर पर हमला किया गया है। पार्षद अपने घर की छत पर गए और हमलावरों से माफी मांगी। इसके बाद हमलावरों ने उनके आवास में तोड़फोड़ की और चले गए। शहर अवामी लीग के उपाध्यक्ष अल्ताफ हुसैन बच्चू के कार्यालय में भी तोड़फोड़ की गई और न्यूमार्केट चौराहे से दारुल फजल मार्केट में एक पार्टी कार्यालय को भी आग लगा दी गई। इसके बाद उपद्रवियों ने रावजन के सांसद एबीएम फजले करीम चौधरी के पथरघाटा स्थित आवास पर आग लगा दी।
‘बांग्लादेश में अब शांति की अपील’
उन्होंने कहा कि बैठक में सर्वसम्मति से बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया को रिहा करने का भी निर्णय लिया गया. राष्ट्रपति शहाबुद्दीन ने विरोध प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए गए सभी छात्रों को रिहा करने का भी आदेश दिया. उन्होंने कहा कि भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के पीड़ितों के परिवारों को मुआवजा दिया जाएगा और घायलों के इलाज के लिए सभी जरूरी मदद की जाएगी. उन्होंने राजनीतिक दलों से देश में कानून-व्यवस्था की स्थिति को सामान्य बनाने और लूटपाट जैसी गतिविधियों को रोकने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, मैं सशस्त्र बलों को लोगों के जीवन और संपत्तियों और राज्य संपत्तियों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश दे रहा हूं. मैं सभी से सांप्रदायिक सद्भाव, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और सरकारी संपत्ति की रक्षा के लिए आगे आने का आह्वान करता हूं. हत्या और हिंसा में शामिल लोगों को निष्पक्ष जांच के माध्यम से न्याय के कटघरे में लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि मंगलवार से देश के सभी कार्यालय और अदालतें खुल जाएंगी.
हिंदुओं के पलायन में तेजी आएगी?
शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद सबसे ज्यादा आशंका इसी बात की जताई जा रही है कि बांग्लादेश में अब हिंदुओं पर सत्ता और उनसे जुड़े लोगों का अत्याचार बढ़ेगा. भारत में भी इस बात की सुगबुगाहट हो रही है. बंगाल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने तो बड़े स्तर पर हिंदुओं के पलायन की बात कही है.
इन दावों का जो आधार है, वो वहां की बांग्लादेश नेशनल पीपुल्स पार्टी और जमात-ए-इस्लामी की पुरानी कार्यशैली है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश की सत्ता बदलने के बाद इसमें तेजी आएगी?
इसे समझने के लिए यह 2 फैक्ट्स पढ़िए-
- हिंदुओं का पलायन बांग्लादेश में पहले से ही जारी है. सेंटर ऑफ डेमोक्रेसी, प्लुरिज्म एंड ह्यूमन राइट्स (सीडीपीएचआर) ने 3 साल पहले ढाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अब्दुल बरकत के हवाले से एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसके मुताबिक पिछले 4 दशक में बांग्लादेश से 2.3 लाख से ज्यादा लोग हर साल पलायन कर रहे हैं. इन 4 दशक में करीब 2 दशक से ज्यादा समय तक शेख हसीना की ही सरकार रही.
- बांग्लादेश में सांगठनिक रूप से बड़े स्तर पर आखिर बार 1971 में ही हिंदुओं का पलायन हुआ था. इसके बाद से हिंदुओं पर अटैक तो हुए, लेकिन छिटपुट घटना के तौर पर. अभिषेक रंजन के मुताबिक हिंदुओं पर हमले की संभावनाएं इस बार भी है, लेकिन जिस तरह से पलायन की आशंकाएं जताई जा रही है, ऐसा कुछ नहीं होगा.
- बांग्लादेश की बहुत सारी तस्वीरें अभी उलझी हुई है. कुछ महीने में ये तस्वीरें साफ हो जाएगी. तब तक कुछ भी ज्यादा अनुमान लगाना अतिश्योक्ति होगा.
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