पोस्ट-पैंडेमिक दौर में अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या बढ़ाने में अहम भूमिका निभाने वाले भारत के लिए अब एक चिंताजनक स्थिति उभर रही है। अमेरिकी विदेश विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 2024 के पहले नौ महीनों में भारतीय छात्रों को जारी किए गए F-1 वीज़ा की संख्या में पिछले साल की तुलना में 38% की गिरावट दर्ज की गई है।
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा ब्यूरो ऑफ कांसुलर अफेयर्स की मासिक गैर-आप्रवासी वीज़ा रिपोर्ट का विश्लेषण बताता है कि भारतीय छात्रों के लिए F-1 वीज़ा का स्तर पोस्ट-पैंडेमिक दौर के बाद अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। जनवरी से सितंबर 2024 के बीच केवल 64,008 F-1 वीज़ा जारी किए गए, जो 2023 में इसी अवधि के दौरान 1,03,495 वीज़ा से काफी कम है। तुलनात्मक रूप से, 2021 में 65,235 और 2022 में 93,181 वीज़ा जारी किए गए थे, जबकि 2020 के महामारी प्रभावित वर्ष में यह संख्या केवल 6,646 थी।
वैश्विक प्रवृत्तियां: भारत बनाम चीन
यह गिरावट केवल भारतीय छात्रों तक सीमित नहीं है, लेकिन यह अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक स्पष्ट है। चीनी छात्रों के लिए, जो अब अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दूसरा सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय समूह हैं, वीज़ा में 8% की गिरावट दर्ज की गई। 2023 में 80,603 वीज़ा के मुकाबले 2024 में 73,781 वीज़ा जारी किए गए। हालांकि, यह संख्या अभी भी 2022 के 52,034 वीज़ा से अधिक है।
प्रभाव
भारतीय छात्रों को जारी F-1 वीज़ा में गिरावट दो महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बाद सामने आई है:
- नए वीज़ा का रिकॉर्ड: वित्तीय वर्ष 2022-2023 में, भारत ने पहली बार नए अमेरिकी छात्र वीज़ा जारी करने में चीन को पीछे छोड़ दिया।
- सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय छात्र समूह: 2023-24 में भारतीय छात्र अमेरिकी विश्वविद्यालयों में सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय समूह बन गए, ओपन डोर्स 2024 रिपोर्ट के अनुसार।
गिरावट के संभावित कारण
हालांकि गिरावट के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं, विशेषज्ञ और अधिकारी कई कारकों की ओर संकेत करते हैं:
- वीज़ा स्लॉट्स का उपयोग न होना: रिपोर्ट के अनुसार, इस साल के पीक वीज़ा आवेदन सीज़न (मई-जुलाई) में भारतीय छात्रों के लिए आवंटित 20,000 वीज़ा अपॉइंटमेंट स्लॉट्स का उपयोग नहीं किया गया। यह पोस्ट-पैंडेमिक उछाल के बाद मांग में स्थिरीकरण का संकेत हो सकता है।
- वीज़ा प्रक्रिया में चुनौतियां: वीज़ा साक्षात्कार के लिए लंबा इंतजार और सख्त मूल्यांकन भारतीय आवेदकों के लिए बाधा बन रहे हैं। ReachIvy.com की सीईओ विभा कागजी ने कहा कि अमेरिका अभी भी शीर्ष गंतव्य बना हुआ है, लेकिन छात्र अब कनाडा, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विकल्पों की ओर भी देख रहे हैं।
- गुणवत्ता पर जोर: IDP एजुकेशन के साउथ एशिया के रीजनल डायरेक्टर पीयूष कुमार ने कहा कि अमेरिकी आव्रजन नीतियां उच्च-गुणवत्ता और प्रामाणिक छात्रों को आकर्षित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं, जिससे कम प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिला लेने वाले छात्रों पर असर पड़ सकता है।
अमेरिका के प्रयास
लंबे इंतजार को स्वीकारते हुए, अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि भारत में प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधन समर्पित किए जा रहे हैं। प्रवक्ता ने कहा, “प्रतीक्षा समय का मतलब यह नहीं है कि वीज़ा जारी नहीं किए जा रहे हैं। यह केवल अमेरिकी वीज़ा के लिए अत्यधिक मांग को दर्शाता है।” उन्होंने कहा कि तकनीक और अन्य नवाचारों का उपयोग करके प्रक्रिया को सरल बनाया जा रहा है।
इसके अलावा, अमेरिकी अधिकारी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि अप्रैल से जुलाई के पीक महीनों के लिए वीज़ा साक्षात्कार स्लॉट्स को जनवरी से पहले उपलब्ध कराया जाए। इसका उद्देश्य छात्रों को समय पर निर्णय लेने में मदद करना और स्लॉट्स की अनुपलब्धता के कारण उनका उत्साह कम होने से बचाना है।
आगे की राह
भारतीय छात्रों के लिए F-1 वीज़ा में गिरावट ने अंतरराष्ट्रीय छात्र गतिशीलता में बदलाव को लेकर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका अभी भी छात्रों के लिए एक आकर्षक गंतव्य बना रहेगा, लेकिन अन्य देशों की प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण अमेरिका को अपनी नीतियों में सुधार की जरूरत होगी।
यह प्रवृत्ति मांग में बदलाव और नीतिगत बदलावों के प्रभावों का विश्लेषण करने की आवश्यकता को उजागर करती है, क्योंकि वैश्विक शिक्षा क्षेत्र एक पोस्ट-पैंडेमिक वास्तविकता की ओर बढ़ रहा है।
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