दिग्गज अभिनेता ऋषि कपूर की आखिरी हिंदी फिल्म ‘शर्मा जी नमकीन’ कई मायनों में बेजोड़ है।
सोचिए, उस फिल्म का भविष्य क्या होगा, जिसकी शूटिंग के दौरान ही मुख्य अभिनेता का न सिर्फ निधन हो जाए, बल्कि फिल्म भी आधी ही बनी हो। यकीनन डिब्बाबंद। लेकिन, यह सब होने के बावजूद फिल्म ने सवेरा देखा। यह एक कॉमेडी फिल्म है, जिसमें ऋषि कपूर की प्रमुख भूमिका थी।
कैंसर के कारण 30 अप्रैल, 2020 को जब ऋषि कपूर का निधन हुआ, तब तक ‘शर्माजी नमकीन’ आधी ही बनी थी। निर्माताओं ने फिल्म को डिब्बाबंद करने के बजाय आगे बढ़ने का फैसला किया। ऋषि कपूर के पिता और भारतीय सिनेमा के ग्रेट शोमैन राजकपूर कहते थे- शो मस्ट गो ऑन। ‘शर्माजी नमकीन’ के निर्माताओं ने भी ऐसा ही किया और परेश रावल को फिल्म से जोड़ लिया। ऐसे में शर्मा जी हो गए- दो। इस तरह नाम में भले नमकीन जुड़ा हो, लेकिन असर में मिठास घुल गई।
‘शर्माजी नमकीन’ को निर्देशक हितेश भाटिया (जिन्हें कहानी के विचार का श्रेय भी दिया जाता है) ने सुप्रतीक सेन के साथ लिखा है। कहानी कुछ यूं है कि कपूर/रावल दोनों शर्मा बने हैं। उन्हें नौकरी से हटा दिया गया है। वे पहले से ही बोरियत को दूर करने के तरीकों से बाहर हो चुके हैं। पाक कला में शर्मा जी प्रतिभा उन्हें एक दंगाई किटी पार्टी समूह के लिए बढ़िया कैटरर-इन-चीफ बनाती है। किटी पार्टी सदस्यों में वीणा (जूही चावला) भी है, जो शर्माजी के दिल की धड़कन को थोड़ा तेज कर देती है।
इन सबके बीच है स्थितिजन्य हास्य और एक बुजुर्ग की मार्मिकता,जो अपनी शर्तों पर खुद को फिर से स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। यह फिल्म दरअसल किसी भी रिटायर व्यक्ति की कहानी जैसी लगती है।
अब कुछ तकनीकी पहलू
इसका निर्देशन हितेश भाटिया ने किया है। यह हितेश की पहली फिल्म है, लेकिन निर्देशन को देख कर यह कहीं नहीं लगता कि फिल्म किसी नवोदित निर्देशक ने बनाई है। छायांकन पीयूष पुटी द्वारा किया गया है। जबकि निर्माण फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी के इक्सेल बैनर तले हुआ है।
फिल्म को हितेश ने सुप्रतीक सेन के साथ मिलकर लिखा है। इसमें कई ऐसे संवाद हैं जो आपको मधुर हास्य की अनुभूति कराएंगे। फिल्म की मजबूत कड़ी संगीत है, जो स्नेहा खानवलकर का है।
फिल्म के कलाकार
ऋषि कपूर और परेश रावल के अभिनय की बराबरी करनी की कोशिश अन्य कलाकारों ने पुरजोर तरीके से की है। लेकिन सफलता मिली है सिर्फ दो दिग्गज कलाकारों को। ये हैं- सतीश कौशिक और शीबा चड्डा। इन दोनों के संवाद और अभिनय फिल्म की मजबूत कड़ियों में से एक है। जूही चावला का किरदार लिखा तो अच्छा गया है, लेकिन अभिनय में कहीं न कहीं थोड़ी कसक रह गई है।
फिल्म कैसी है ?
कहानी जहां कहीं-कहीं प्रीडिक्टटेबल हो जाती है, वहीं प्रभाव में भी ढीली पड़ती लगती है। फिर भी, एक किरदार को दो अभिनेताओं द्वारा निभाए जाने के प्रयोग को एक बार देखना तो बनता है। परेश रावल ने ऋषि कपूर की कमी खलने नहीं दी है।