एक समय में जब वजन कांटे की बात आती थी तो अमरेली जिले के सावरकुंडला शहर का नाम सबसे पहले याद आता था. परंतु अब स्थितियाँ बदल चुकी है. सावरकुंडला का कांटा उद्योग कोरोना के लॉकडाउन के चलते पूरी तरह ढह गया है. करीब 20 से 25 हजार कारीगरों को रोजगार देने वाले कांटा उद्योग अब मानो पूरी तरह से ध्वस्त होने की कगार पर पहुँच चुका है.
सावरकुंडला में करीब 400 वजन कांटे के कारखाने हैं और वजन कांटे के निर्माण क्षेत्र में विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं. चीन में कोरोना के बढ़ने के साथ ही लोहे व कच्चे माल के पहुँचने में कई परेशानियाँ होने लगी है. अब कुछ कच्चा माल आता है, लेकिन स्थितियाँ पहले की तरह नहीं हैं.
एक दिन में 20 से 25 वजन कांटे बनाने वाले कारीगर अब मुश्किल से 10 कांटे बना पाते हैं और परिवार का गुजारा करते हैं. जो कारीगर कोरोना से पहले प्रतिदिन 400 रुपये से 500 रुपये तक कमाते थे, वे अब 200 रुपये प्रतिदिन भी बड़ी मुश्किल से कमा पाते हैं.
सावरकुंडला इलेक्ट्रॉनिक वजन कांटो का उत्पादन करता है जिसके लिए इलेक्ट्रॉनिक स्पेयर पार्ट्स चीन से मँगवाए जाते है. चूंकि उन इलेक्ट्रॉनिक स्पेयर पार्ट्स की कीमत भारत में अधिक है, इसलिए इलेक्ट्रॉनिक वजन कांटो के कारीगर भी लॉकडाउन के बाद 25 के बजाय बडी मुश्किल से 8 कांटे बना पाते हैं. तौल-तराजू के उत्पादन से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार को उद्योग को बनाए रखने के लिए कदम उठाने चाहिए. फैक्ट्री मालिक कनुभाई डोडिया ने कहा कि सरकार अगर 25 हजार लोगों को रोजगार देने वाले उद्योग को बचाना चाहती है तो उसे पॉलिसी के द्वारा मदद देनी होगी और मजदूरों का सहयोग करना होगा. कोविड की गाइड लाइन के हिसाब से छूट देने के साथ ही फैक्ट्रियां हमेशा की तरह शुरू हो गई हैं. लेकिन इस उद्योग को भारी नुकसान हुआ है.
उनका कहना है कि लॉकडाउन से पहले लोहे की कीमत 40 रुपये प्रति किलो थी. वर्तमान में लोहे की कीमत 80 रुपये हो गई है. इसके अलावा परिवहन भी महंगा हो गया हैं. कनुभाई ने यह भी कहा कि सावरकुंडला में बने तौल तराजू ही बंगाल, बिहार, तमिलनाडु, राजस्थान आदि राज्यों में जाते हैं, लेकिन वहां कोरोना का संक्रमण अधिक होने के कारण बाहरी राज्यों में वजन के कांटे कम भेजे जा रहे हैं.
सावरकुंडला कांटा एसोसिएशन के अध्यक्ष जयंतीभाई मकवाना ने बताया कि सावरकुंडला में कांटा उद्योग पिछले एक साल से मर रहा है. हमें कीमतों में स्वतंत्र रूप से वृद्धि करनी पड़ी है क्योंकि कच्चे माल महंगे हैं. हमारे पिछले भुगतान व्यापारियों से देय हैं. कच्चे माल में कीमतें लगातार बढ़ रही हैं. हम चीन से आने वाले कच्चे माल का खर्च नहीं उठा पाते.
केतन बगडा, अमरेली