राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के मुखपत्र पांचजन्य ने इन्फोसिस कंपनी पर देशद्रोहियों के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया है। इस आरोप का कारण बना है आयकर विभाग के नए पोर्टल में हुईं गड़बड़ियां। रिटर्न फाइल करने वाले इस नए पोर्टल के लिए इन्फोसिस को 2018 में ठेका मिला था, जो जून में लॉन्च हुआ। लेकिन दो महीने से अधिक समय के बाद भी पोर्टल में आई खराबी दूर नहीं हो पाई हैं। संघ के इस मुखपत्र ने इसके लिए विपक्षी दल की भागीदारी के अलावा चीन और आईएसआई के प्रभाव के बारे में भी सवाल उठाए हैं।
पांचजन्य एक साप्ताहिक पत्रिका है। इन्फोसिस को घेरने वाला आलेख इसके 5 सितंबर वाले अंक में है। इसमें सवाल किया गया है कि क्या इन्फोसिस निर्यात की जाने वाली सेवाओं में भी इतनी ही लापरवाह है? लेख में इन्फोसिस के विक्रेता होने के बारे में भी बात की गई है, जिसने जीएसटी पोर्टल और एमसीए-21 पोर्टल भी बनाया था, और दोनों में ही गड़बड़ियां हुईं।
रिपोर्ट में कहा गया है, “ऐसे आरोप हैं कि इन्फोसिस प्रबंधन जानबूझकर भारतीय अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।” बिना इस बात का उल्लेख किए कि आरोप किसने लगाया, उसने इसका समर्थन किया है। चंद्र प्रकाश द्वारा लिखे गए लेख में सवाल किया गया है कि इन्फोसिस इतनी कम बोली लगाकर भी हमेशा महत्वपूर्ण सरकारी परियोजनाओं को कैसे ले लेती है? उसके मुताबिक, चाहे जीएसटी हो या आयकर पोर्टल, इन दोनों में हुई गड़बड़ी ने अर्थव्यवस्था में करदाताओं के विश्वास को तोड़ने का काम किया है। हालांकि केंद्र सरकार के अनुसार, इन्फोसिस को एक खुली निविदा के बाद ठेका दिया गया था।
बहरहाल, इस लेख में कहा गया है कि “कहीं ऐसा तो नहीं कि कोई देशविरोधी शक्ति इन्फोसिस के माध्यम से भारत के आर्थिक हितों को चोट पहुंचाने में जुटी है? हमारे पास यह कहने के कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, लेकिन कंपनी के इतिहास और परिस्थितियों को देखते हुए इस आरोप में कुछ तथ्य दिखाई दे रहे हैं।”
लेख में आगे कहा गया है कि इन्फोसिस पर कई बार “नक्सलियों, वामपंथियों और टुकड़े-टुकड़े गिरोहों” की मदद करने के आरोप लगते रहे हैं। देश में चल रही कई विघटनकारी गतिविधियों को इन्फोसिस का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सहयोग मिलने की बात सामने आ चुकी है। इसमें यह भी कहा गया है कि माना जाता है कि इन्फोसिस दुष्प्रचार वाली वेबसाइटों और फैक्ट चेकर्स को फंड देती है। लेख में आरोप लगाया गया है कि जातिवादी घृणा फैलाने में जुटे कुछ संगठन भी इन्फोसिस की चैरिटी के लाभार्थी हैं, जबकि कहने को यह कंपनी सॉफ्टवेयर बनाने का काम करती है। क्या इन्फोसिस के प्रमोटर्स से यह प्रश्न नहीं पूछा जाना चाहिए कि देशविरोधी और अराजकतावादी संगठनों को उसकी फंडिंग के पीछे क्या कारण हैं? (आप यहां इंफोसिस फाउंडेशन द्वारा अनुदान पाने वालों की सूची देख सकते हैं)।
लेख में दावा किया गया है कि साजिश पर संदेह करने का कारण राजनीतिक भी है, फिर भी विपक्षी नेता इस पर चुप हैं। इसमें कहा गया है, “लोग पूछ रहे हैं कि क्या कुछ निजी कंपनियां कांग्रेस के इशारे पर अव्यवस्था पैदा करने की कोशिश कर रही हैं?”
इसके अलावा, आलेख कहता है कि इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के वर्तमान सरकार के प्रति विरोध किसी से छिपा नहीं है। नंदन नीलेकणि तो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव भी लड़ा है। इतना ही नहीं, इन्फोसिस अपने महत्वपूर्ण पदों पर विशेष रूप से एक विचारधारा लोगों को बैठाती है। ऐसी कंपनी यदि भारत सरकार के महत्वपूर्ण ठेके लेगी तो क्या उसमें चीन और आईएसआई के प्रभाव की आशंका नहीं रहेगी?
संघ के मुखपत्र ने आयकर विभाग के पोर्टल की गड़बड़ियों के लिए भ्रष्ट सरकारी नौकरशाही को भी दोषी ठहराया है। इसके मुताबिक, इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के हस्तक्षेप के बाद इसने ठीक से काम करना शुरू कर दिया। अब कंपनी पर वित्तीय जुर्माना लगाया जा सकता है और इसे भविष्य के लिए काली सूची में डाला जा सकता है।
आलेख में जॉर्ज सोरोस का नाम भी आता है। कहा गया है कि इन्फोसिस का यह पूरा गड़बड़झाला एक और बड़े षड़यंत्र का संकेत है। इसमें कहा गया है, “कुछ वर्ष पहले ही अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन और गूगल डॉट ओआरजी ने मिलकर भारत में ‘सांग’ फंड बनाया था। इसने आधार प्रोजेक्ट से जुड़ी एक कंपनी को खरीदकर कुछ दिन बाद बंद कर दिया था। आरोप है कि यह पूरा सौदा इस भारतीय कंपनी के पास पड़े आधार डेटा की चोरी के लिए किया गया था।”
बता दें कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अगस्त में इन्फोसिस के सीईओ सलिल पारेख से मुलाकात की थी और उन्हें नए आयकर फाइलिंग पोर्टल में गड़बड़ियों पर सरकार की ‘गहरी निराशा और चिंता’ से अवगत कराया था। इसके साथ ही उन्हें इन सभी गड़बड़ियों को हल करने के लिए 15 सितंबर तक का समय दिया गया था।