अहमदाबाद: एनआरजी से संबंधित संपत्तियों की धोखाधड़ी से बेचने की जांच करने के लिए राज्य सरकार ने ‘पावर ऑफ अटॉर्नी’ के दुरुपयोग को रोकने की पहल की है। राजस्व विभाग ने इस महीने नई प्रक्रियाओं को लेकर दो महत्वपूर्ण सर्कुलर जारी किए। इस तरह अब कोई एनआरजी या राज्य के बाहर रहने वाले अपनी संपत्ति को बेचने के लिए जिस प्रतिनिधियों को अधिकार सौंपते हैं, उन्हें बिक्री के समय जीवित होने की घोषणा करते हुए अतिरिक्त दस्तावेज भेजना होगा। प्रतिनिधि कोई अपना सगा या तीसरा भी हो सकता है। नियम कहते हैं कि नोटरीकृत (notarized) घोषणा को सीलबंद लिफाफे में भेजा जाना चाहिए और केवल सब-रजिस्ट्रार के सामने खोला जाना चाहिए।
राजस्व विभाग (revenue department) की अधिसूचना के मुताबिक, एनआरआई को सेल डीड के समय ही घोषणा पत्र दाखिल करना होगा। एक सीनियर रेवेन्यू अधिकारी ने कहा, ”घोषणा को सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकृत (registered) होना चाहिए।” अहमदाबाद और गुजरात के अन्य शहरों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां खरीदारों ने पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिये एनआरआई से संबंधित संपत्तियां खरीद लीं, और बाद में दूसरे लोगों ने संपत्ति में अपनी हिस्सेदारी का दावा कर दिया।
स्टांप अधीक्षक (superintendent of stamps) जेनु देवन ने इस संबंध में 9 और 10 जनवरी को दो सर्कुलर जारी किए हैं। 9 जनवरी के सर्कुलर में गुजरात पंजीकरण (संशोधन) विनियम (Gujarat Registration (Amendment) Regulation) 2023 को लागू किया गया है। इसने प्रासंगिक नियम (relevant rule) को बदल दिया गया है, जिसमें “पावर ऑफ अटॉर्नी द्वारा घोषणा” की जाती थी कि “प्रिंसिपल (संपत्ति का मालिक) जीवित है।” यानी संपत्ति के मालिक के जीवित होने की जानकारी पावर ऑफ अटॉर्नी से ही दे दी जाती थी। इसकी जगह “प्रिंसिपल द्वारा घोषणा” की जाएगी कि वह जीवित है। रेवेन्यू अधिकारी कहते हैं, “इसका मतलब है कि एनआरआई मालिक के जीवित होने की घोषणा करने वाले पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के बजाय मालिक को एक अलग घोषणापत्र दायर करनी होगी। इसे एक सीलबंद लिफाफे में सब-रजिस्ट्रार को पोस्ट करना होगा।”
उन्होंने कहा, “पावर ऑफ अटॉर्नी जारी करने वाले एनआरआई विक्रेता को 50 रुपये के स्टांप पेपर पर अलग घोषणापत्र में बताना होगा कि वह जीवित है; कि उन्होंने जारी किए गए मुख्तारनामे (power of attorney) को न तो वापस लिया है और न ही रद्द किया है; और यह कि संबंधित संपत्ति के संबंध में भारत में किसी भी अदालत या ट्रिब्यूनल में कोई मुकदमा या विवाद पेंडिंग नहीं है। एनआरआई विक्रेता को यह भी प्रमाणित करना होगा कि यदि लेन-देन फर्जी पाया जाता है तो यह उनकी जिम्मेदारी होगी। ‘
Also Read: चुनाव से पहले अंदर और बाद में बाहर, डेयरी घोटाले का आरोपी फिर भाजपा में?