- 50 पैसा प्रति लीटर के खर्च से 2ooo लीटर पानी प्रति दिन हो रहा है शुद्ध
- व्यावसायिक उत्पादन होने पर लागत घटकर हो सकती महज 2 पैसा प्रति लीटर
पृथ्वी की सतह का 71% हिस्सा पानी से घिरा हुआ है। फिर भी आज दुनिया के कई देश पानी की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक भविष्य में पानी की बड़ी कमी की भविष्यवाणी कर रहे हैं। कारण साफ़ है पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा पीने योग्य नहीं है , वह समुद्री जल है जो खारा है और ज्यादातर अनुपयोगी होता है। लेकिन समस्या ही अविष्कार का मूल होती है , इसे ध्येय वाक्य मानकर सूरत के पांच युवाओं ने राज्य सरकार के सहयोग से एक ऐसी पध्दति विकसित की है जिसके माध्यम से ना केवल समुद्री जल को पीने योग्य मीठे जल में परिवर्तित किया जा सकता है बल्कि सेंधा नमक भी हांसिल कर उसका व्यावसायिक उपयोग किया जा सकता है।
गुजरात जैसे समुद्री राज्य में पेयजल एक बड़ी समस्या है
गुजरात जैसे समुद्री राज्य में पेयजल एक बड़ी समस्या है। राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है. ‘नल से जल योजना’ के माध्यम से भीतरी इलाकों में भी घर-घर पानी पहुंचाने का निर्बाध कार्य किया जा रहा है। सरकार के इस विशाल कार्य में और तेजी लाने और पानी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ समुद्र के पानी का उपयोग कर समुद्र के पानी को पीने का पानी बनाने के लिए सूरत के पांच युवा उद्यमियों ने ‘सोलेंस एनर्जी’ की शुरुआत की। सूरत के युवाओं ने सौर ऊर्जा संचालित डिवाइस के माध्यम से समुद्री खारे जल को पीने योग्य बनाने का भारत का पहला आविष्कार किया है।
व्यावसायिक उत्पादन होने पर लागत घटकर हो सकती महज 2 पैसा प्रति लीटर हो सकता है।
इस स्टार्टअप के युवा यश तरवाड़ी, भूषण परवते, नीलेश शाह, चिंतन शाह और जानवी राणा ने सात साल की मेहनत के बाद खारे पानी का मीठा हल निकाला है। उन्होंने सूरत जिले के ओलपाड में विशेष उपकरणों की मदद से समुद्री जल को पीने योग्य बनाने के लिए एक संयंत्र स्थापित किया है, जिसमें केवल 50 से 55 पैसे प्रति लीटर की लागत से 2000 लीटर समुद्री जल को प्रतिदिन शुद्ध किया जा सकता है। साथ ही 35 ग्राम सेंधा नमक (नमक) भी प्रति लीटर मिलता है। व्यावसायिक उत्पादन होने पर लागत घटकर हो सकती महज 2 पैसा प्रति लीटर हो सकता है।
केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग और राज्य सरकार की स्टार्ट-अप गुजरात योजना के तहत, उद्योग आयुक्तालय-गांधीनगर ने इस संयंत्र के विकास के लिए 20 लाख रुपये की सहायता प्रदान की है। उन्होंने इस डिवाइस का पेटेंट भी करा लिया है। सरकार ने बौद्धिक संपदा अधिकारों के तहत पेटेंट के लिए 5,000 रुपये भी प्रदान किए हैं।
डिवाइस की रिसर्च के दौरान युवा 12 बार फेल हुए 13 वीं बार मिली सफलता
खास बात यह है कि इस डिवाइस की रिसर्च के दौरान युवा 12 बार फेल हो चुके थे, लेकिन बिना हारे उन्होंने मेहनत करना जारी रखा और 13वां प्रयास रंग लाया और सफल साबित हुआ। असफलताओं की एक श्रृंखला के बाद, ये युवा अंततः अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल हुए हैं। यंत्र के खारे पानी से बना पानी मिनरल से भरपूर होने के साथ-साथ जलजनित रोगों में भी राहत देता है।
स्टार्ट-अप टीम के सदस्य यश तरवाड़ी ने इस परियोजना के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पृथ्वी की सतह का 71% हिस्सा पानी से घिरा हुआ है। फिर भी आज दुनिया के कई देश पानी की भीषण समस्या से जूझ रहे हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक भविष्य में पानी की बड़ी कमी की भविष्यवाणी कर रहे हैं।
समाचार पत्रों और समाचार चैनलों में पानी की समस्या के बारे में समाचार पढ़ने के बाद, एक स्टार्ट-अप शुरू करने का विचार आया जिसे दूषित पानी को शुद्ध करके पुनर्नवीनीकरण किया जा सकता है।
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