अहमदाबाद स्थित मशहूर आर्किटेक्ट डॉ बालकृष्ण विठ्ठलदास दोशी का निधन हो गया। वह 95 वर्ष के थे। उन्होंने आखिरी सांस मंगलवार सुबह 10.30 बजे ली। उन्हें भारतीय वास्तुकला (architecture) में महत्वपूर्ण व्यक्ति माना जाता है। इस क्षेत्र में उनका योगदान काफी बड़ा रहा है। वह भारत में आधुनिकतावादी वास्तुकला (modernist architecture) के अगुआ रहे हैं। उन्होंने ले कॉर्बूसियर और लुई कान के साथ काम किया था।
उनकी वास्तुकला देश की कुछ प्रतिष्ठित इमारतों में देखी जा सकती हैं। इनमें फ्लेम यूनिवर्सिटी, आईआईएम बैंगलोर, आईआईएम उदयपुर, एनआईएफटी दिल्ली, हुसैन-दोशी गुफा उर्फ अमदवाद नी गुफा, आईआईएम अहमदाबाद और इंदौर में अरण्य लो-कॉस्ट हाउसिंग डेवलपमेंट प्रमुख हैं। इंदौर के अरण्य ने आर्किटेक्चर के लिए आगा खान अवार्ड भी जीता।
उन्होंने 2018 में वास्तुकला में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक प्रित्ज़कर आर्किटेक्चर पुरस्कार जीता। यह गौरव पाने वाले वह पहले भारतीय आर्किटेक्ट थे। उन्हें पद्म भूषण और पद्म श्री पुरस्कार भी मिल चुके हैं। एक पेशेवर और शिक्षाविद के रूप में दोशी ने कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान जीते हैं।
27 जून, 2017 को सीके मेहता द्वारा दोशी को ब्रिटेन का सर्वोच्च वास्तु सम्मान, धीरूभाई ठाकर सव्यसाची सारस्वत पुरस्कार दिया गया। यह 2022 के लिए आर्किटेक्चर के लिए रॉयल गोल्ड मेडल था, जो महारानी की अनुमति से ब्रिटिश सरकार द्वारा आरआईबीए (RIBA) के माध्यम से दिया जाता है। उन्हें सस्टेनेबल आर्किटेक्चर के लिए ग्लोबल अवार्ड, धीरूभाई ठाकर सव्यसाची सारस्वत अवार्ड, पद्म भूषण ( 2020), पद्म श्री (1976), ऑफिस ऑफ द ऑर्डर ऑफ आर्ट्स एंड लेटर्स, कला के लिए फ्रांस के सर्वोच्च सम्मान से भी सम्मानित किया गया। उन्हें पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट की मानद (honorary) उपाधि भी दी गई थी।