वह 31 अक्टूबर 1984 की सुबह थी। इंदिरा गांधी ने पोती प्रियंका और पोता राहुल के स्कूल जाने से पहले उन्हें अलविदा कह दिया था। उस समय 12 वर्ष की रहीं प्रियंका को बाद में याद आया कि दादी ने तब उन्हें सामान्य से अधिक समय तक पकड़े रखा था। इंदिरा फिर राहुल के पास चली गई थीं। तब वह मुश्किल से 14 साल के थे। फिर भी दादी उन्हें उन विषयों पर भी विश्वास के साथ बात करने के लिए पर्याप्त परिपक्व मानती थीं, जिन पर वह अक्सर उनके माता-पिता यानी राजीव और सोनिया गांधी के साथ चर्चा करने से बचती थीं। यहां तक कि इंदिरा ने राहुल को "काम संभालने" और उनकी मृत्यु की स्थिति में नहीं रोने तक के लिए कहा था। यह पहली बार नहीं था जब इंदिरा ने राहुल से मौत को लेकर बात की थी। कुछ दिन पहले ही उन्होंने उनसे अंतिम संस्कार की व्यवस्था के बारे में बताया था। साथ ही कहा था कि उन्होंने अपना जीवन जी लिया है। गौरतलब है कि व्यक्तित्व की पारखी मानी जाने वाली इंदिरा बचपन से ही राहुल के धैर्य और दृढ़ संकल्प को महत्व देती थीं।
इंदिरा जी के मन में मृत्यु घर कर चुकी थी। उस महीने की शुरुआत में उन्होंने लिखा था कि अगर उनकी मौत हिंसक तरीके से होती है, तो हिंसा हत्यारे के विचार में होगी, न कि उनकी मौत में। "क्योंकि कोई भी नफरत इतनी गहरी नहीं हो सकती कि वह अपने देश और लोगों के लिए मेरे प्यार पर पर्दा डाल सके। कोई भी ताकत इतनी मजबूत नहीं है कि वह मुझे अपने उद्देश्य से और इस देश को आगे ले जाने के प्रयास से मुझे भटका सके।"
उस भयानक सुबह, इंदिरा जी को पीटर उस्तीनोव को इंटरव्यू देना था, जिसके साथ उन्हें अपनी आधिकारिक व्यस्तताओं की शुरुआत करनी थी। कैमरे उस समय लग चुके थे, जब इंदिरा जी चमकदार भगवा साड़ी में सफदरजंग रोड स्थित अपने आवास और अकबर रोड स्थित कार्यालय के बीच वाले गेट को पार कर रही थीं। 9:12 बजे थे। जैसे ही उन्होंने गेट पार किया, सामने खड़े पगड़ी वाले सुरक्षा गार्ड का अभिवादन स्वीकार किया। जवाब में वह मुस्कुराईं, तो देखा कि वह उन पर बंदूक तान रहा है। इंदिरा जी के साथ छाता लिए हुए कांस्टेबल नारायण सिंह मदद के लिए चिल्लाए। लेकिन इससे पहले कि भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के अन्य गार्ड मौके पर पहुंच पाते, हत्यारों- बेअंत सिंह और सतवंत सिंह- ने उन्हें 36 गोलियां मार दी थीं।
ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इंदिरा जी को बुलेटप्रूफ जैकेट पहनने और अपने सिख सुरक्षा गार्डों को हटाने की सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इंकार कर दिया था। उन्होंने घर पर भारी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनना अनावश्यक महसूस किया और सुरक्षा गार्डों के बीच “भेदभाव” करने के विचार से नफरत करती थी। दरअसल, कुछ हफ्ते पहले इंदिरा जी ने बेअंत सिंह की ओर इशारा करते हुए गर्व से कहा था: “जब मेरे आसपास उनके जैसे सिख हों, तो मुझे किसी चीज से डरने की जरूरत नहीं है।”
उनकी हत्या के बाद कई लोगों ने सोचा था कि इंदिरा जी को सिख सुरक्षा गार्ड रखने का मामला क्यों भेजा गया था। आखिरकार, कोई वीवीआईपी अपनी ही सुरक्षा से संबंधित व्यवस्थाओं में कभी शामिल नहीं होता है।
उनके सचिव के रूप में काम कर चुके पीसी अलेक्जेंडर के अनुसार, इंदिरा जी को हमेशा अपने परिवार को नुकसान पहुंचने का डर सताता रहता था। वह याद करते हैं, “जून 1984 के बाद से वह एक भयानक सोच के साथ जी रही थी। वह बार-बार कहतीं कि उनके बच्चों के अपहरण की साजिश रची गई है। इस पर मैंने जो कुछ भी कहा, वह उनके डर को दूर नहीं कर सका।”
जब नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य अरुण नेहरू अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान पहुंचे, तो उन्होंने सोनिया को राहुल और प्रियंका के जीवन पर मंडराते खतरे को लेकर बुरी तरह डरी हुई अवस्था में देखा। सोनिया उन्हें बताती रहीं कि इंदिरा जी को हमेशा बांग्लादेशी नेता मुजीब-उर-रहमान की हत्या की आशंका थी, जिनके परिवार की तीन पीढ़ियों को, बेटी हसीना को छोड़कर, मिटा दिया गया था। जब अरुण नेहरू इंदिरा, राजीव और सोनिया के सफदरजंग रोड स्थित आवास पर पहुंचे, तो यह देखकर दंग रह गए कि राहुल और प्रियंका की सुरक्षा में एक भी गार्ड नहीं था, जिन्हें स्कूल से वापस लाया गया था। इसके बाद अरुण नेहरू उन्हें अभिनेता अमिताभ बच्चन की मां तेजी बच्चन के गुलमोहर पार्क स्थित आवास पर ले गए।
तीन मूर्ति हाउस में जैसे ही इंदिरा जी का शव पहुंचा, उनके पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन के लिए बाहर इंतजार कर रही भीड़ “खून का बदला खून” के नारे लगा रही थी। दिल्ली, जिसने 200 साल पहले नादिर शाह के आक्रमण के दौरान नरसंहार देखा था, हर जगह खून-खराबा देखा। तीन दिनों के भीतर 2,500 से अधिक लोग मार डाले गए, उनमें से कई तो जिंदा जला दिए गए।
इंदिरा हत्याकांड में उनके करीबी आरके धवन का नाम सवालों के घेरे में आ गया था। सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमपी ठक्कर के नेतृत्व वाले जांच आयोग ने “केंद्र सरकार से पूर्व प्रधानमंत्री के तत्कालीन विशेष सहायक रहे आरके धवन की अपराध में शामिल होने की भूमिका की गहन जांच की सिफारिश” की थी। हालांकि, राजीव गांधी और कांग्रेस ने ठक्कर की रिपोर्ट को अभिलेखागार में रख देने का फैसला किया और धवन को क्लीन चिट दे दी गई।
धवन 1962 में इंदिरा जी के स्टाफ में शामिल हुए थे। कई लोग आए और चले गए। इनमें पीएन हक्सर, पीएन धर और आरएन काव जैसे भी थे, लेकिन धवन अंत तक उनके साथ रहे। अपनी ओर से धवन, जिनकी अगस्त 2018 में मृत्यु हो गई, ने इस जघन्य कांड में शामिल होने के आरोप का जोरदार खंडन किया। जोर देकर कहा कि उनकी शर्ट इंदिरा के खून से रंगी गई थी।
इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ साल बाद धवन ने 31 अक्टूबर, 1984 की घटनाओं का पूरा क्रम सुनाया था। चूंकि इंदिरा जी पिछली रात भुवनेश्वर की यात्रा से लौटी थीं, धवन ने सुझाव दिया था कि सुबह का दरबार रद्द कर देना चाहिए और उन्हें आराम करना चाहिए। लेकिन इंदिरा जी ने उस्तीनोव के साथ तय इंटरव्यू पर जोर दिया था, क्योंकि उन्होंने उड़ीसा (अब ओडिशा) के अपने दौरे के दौरान फिल्म का एक हिस्सा पहले ही रिकॉर्ड कर लिया था। जब धवन 31 अक्टूबर को सुबह 8 बजे सफदरजंग रोड पहुंचे, तो इंदिरा गांधी ने एक अच्छे हेयर ड्रेसर की मांग की थी और उनके परिचारक नाथू राम को कहीं से एक मिल भी गया था।
जब धवन उनके पास पहुंचे तो इंदिरा गांधी अपने बालों को उसकी मदद से संवार रही थीं। कहना ही होगा कि वह व्यक्तिगत सौंदर्य को लेकर बहुत गंभीर रहती थीं। इतना कि अगर कोई बाल अपनी जगह से हटा दिखता तो धवन अक्सर उन्हें अपने बालों पर हाथ रखकर इशारा करते थे।
इंदिरा जी ने उस शाम राजकुमारी ऐनी के लिए अपने आवास पर डिनर की योजना बनाई थी और धवन को अतिथि सूची के बारे में कुछ विशेष जानकारी दी थी। धवन ने याद करते हुए कहा, “मेरे पास अभी भी वह पेज है, जिस पर मैंने उनके आखिरी ऑर्डर लिए थे।”
9 बजे तक वह कैमरों के लिए तैयार हो चुकी थीं। सफदरजंग रोड को अकबर रोड से जोड़ने वाले गेट की ओर चलने लगी थीं। हमेशा की तरह धवन उनसे कुछ कदम पीछे थे। वह इतनी तेज चलने वाली थी कि कभी-कभी उनके साथ तालमेल बिठाना मुश्किल हो जाता था। तभी ट्रे में कप-प्लेट के साथ बगल से एक वेटर गुजरा। वह रुक गईं। वेटर से कप दिखाने को कहा और पूछा कि वह उन्हें कहां ले जा रहा है। वेटर ने कहा कि उस्तीनोव ने इंटरव्यू के दौरान उनके सामने चाय का पूरा सेट रखने के लिए कहा था। उन्होंने तुरंत चाय के उस सेट को खारिज कर दिया और उसे वापस जाने और फिर विशेष सेट लाने का निर्देश दिया।
धवन ने बताया कि जैसे ही वह गेट पर पहुंचीं कि इंदिरा जी ने गार्ड के लिए “नमस्ते” में हाथ जोड़े। धवन ने कहा कि तभी उन्होंने बेअंत को पिस्तौल उठाकर गोली मारते देखा। इंदिरा जी घूमती हुई जमीन पर गिर पड़ीं। इसके बाद सतवंत ने गिरे हुए शरीर पर स्टेन गन से फायरिंग शुरू कर दी। जब सतवंत ने गोली चलाई तो वह खड़ी भी नहीं थीं। ऐसी थी क्रूरता।
सोनिया ने अपने बाल धोए ही थे कि गोली चलने की आवाज सुनाई। ऐसा लग रहा था जैसे कहीं पास ही दीवाली के पटाखे छूट रहे हों, लेकिन वे कुछ अलग थे। तब उन्हें एहसास हुआ और वह उस तरफ भागीं, जहां इंदिरा जी लेटी थीं। वह चिल्ला रही थीं, “मम्मी, मम्मी”। रो रही थीं। इंदिरा जी को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं थी, इसलिए सोनिया ने उन्हें एंबेसडर में बिठाया। अभी भी गाउन पहने हुए सोनिया ने इंदिरा जी के सिर को अपनी गोद में लिया। कार 3 किलोमीटर दूर एम्स की ओर सरपट दौड़ पड़ी, जहां डॉक्टरों ने बिना रुके उन्हें खून चढ़ाने के लिए घंटों मेहनत की। बाद में इंदिरा गांधी को अस्पताल के डॉक्टरों ने आधिकारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया था। वैसे यह बहुत संभव है कि सोनिया की गोद में ही उनका निधन हो गया हो।