एक सिविल कोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के एक जवान की मृत्यु के बाद के लाभों को उसकी मां और उस विधवा के बीच समान रूप से बांटने का आदेश दिया है, जिसने जवान की मृत्यु के कुछ वर्षों बाद दोबारा शादी कर ली थी।
विवाद उस समय शुरू हुआ जब विधवा, जिसने पुनर्विवाह किया था, ने अपने ससुराल वालों को मृतक जवान के सेवानिवृत्ति लाभों में सफल होने के दावे पर आपत्ति जताई। बाद में माता-पिता ने इस आधार पर विधवा के दावे पर आपत्ति जताई कि उसने पुनर्विवाह कर लिया है।
मामले के विवरण के अनुसार, 24 दिसंबर, 2003 को अमरावती में एक सड़क दुर्घटना में रांची में तैनात सीआईएसएफ के कांस्टेबल राजेश पलासपागर की मृत्यु हो गई थी। दुर्घटना के समय वह छुट्टी पर थे। विभाग ने बार-बार उनके उत्तराधिकार के बारे में परिवार से पूछताछ की, लेकिन परिवार ने कोई जवाब नहीं दिया। 2011 में पलासपागर के माता-पिता,अहमदाबाद के निवासी, विमलाबाई और शेशराव ने शहर के सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दावा किया कि वे अपने बेटे के कानूनी उत्तराधिकारी हैं। इस तरह उसकी मृत्यु के बाद के लाभों के हकदार वे ही हैं, जो 2.08 लाख रुपये की राशि थी। कांस्टेबल ने 12 साल की सेवा पूरी कर ली थी।
माता-पिता के दावे पर पलासपागर की विधवा वर्षा ने आपत्ति की, जो उस समय तक पुनर्विवाह कर चुकी थी और महाराष्ट्र में अपने दूसरे पति के साथ रह रही थी।
वर्षा ने अदालत से अनुरोध किया कि उसे विधवा के रूप में मृत्यु के बाद के लाभों का हकदार ठहराया जाए। पलासपागर के माता-पिता ने तर्क दिया कि चूंकि वर्षा ने पुनर्विवाह किया है, इसलिए वह उनके बेटे की कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकती। वह उसकी संपत्ति का उत्तराधिकारी नहीं है। सिटी सिविल जज बेना चौहान ने कहा कि जवान की मां और विधवा समान रूप से लाभों की हकदार हैं क्योंकि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 की धारा 8 के अनुसार मां और विधवा एक मृत पुरुष की वारिस हैं।
कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उत्तराधिकार में विधवा की स्थिति महत्वपूर्ण होती है। इस मामले में 24 दिसंबर, 2003 को जवान की मृत्यु हो गई। उसी दिन उसका उत्तराधिकार बन गया था। उसने सितंबर 2007 में दोबारा शादी की।
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