दो लेन वाली सड़क। साबरमती आश्रम से उन्हें अलग करने वाला एकमात्र भाग, जहां उनके पूर्वजों ने 1917 से 1930 तक महात्मा गांधी के साथ काम किया था। राष्ट्रपिता के समान ही मितव्ययी जीवन भी व्यतीत किया था। लेकिन, आज सड़क के उस पार रहने वाले आश्रमवासी इधर कुआं और उधर खाई वाली स्थिति में फंस गए हैं।
इन वंशजों को अपनी पहचान या मुआवजे के बीच चयन करना होगा। आश्रम के पुनर्विकास की प्रक्रिया में लगी गुजरात सरकार का दावा है कि उसने वादा किया था कि ऐतिहासिक आश्रम की सादगी, गंभीरता और शांति से समझौता नहीं किया जाएगा। लेकिन यह उन आश्रमवासियों के लिए कोई दिलासा नहीं है, जिनकी जड़ें खोदी जा रही हैं।
60 वर्षीय मंजुलाबेन चावड़ा, जो ऐसे ही एक घर में रहती हैं और खादी उत्पाद बेचती हैं, कहती हैं कि उन्होंने मुआवजा स्वीकार कर लिया है। लेकिन वह यह सोचकर चिंतित हैं कि क्या वह जिस भी नई जगह पर जाएंगी, वहां सामान बेच पाएंगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी आश्रम आने वाले पर्यटक आमतौर पर संग्रहालय परिसर के ठीक सामने उनकी दुकान से सामान लेते हैं।
वह कहती हैं, "क्या हम अब भी आश्रमवासी कहलाएंगे? मेरे पति के दादा दांडी-मार्च का हिस्सा थे। क्या हम अपनी पहचान बनाए रखने के लायक नहीं हैं, जिस पर हमें इतना गर्व है?" यह कहते हुए उनका गला रुंध जाता है। आंखों में दर्द का समंदर दिखने लगता है।
मंजुलाबेन का कहना है कि मुआवजा भी मूल रूप से 71 लाख रुपये के वादे से कम कर दिया गया था। सवाल से साथ उन्होंने कहा, “उन्होंने हमें एक महीने में घर खाली करने के लिए कहा है। हमने अभी तक तय नहीं किया है कि कहां जाना है। हम जानना चाहते हैं कि क्या हम अभी भी अपनी दुकानें यहां रख सकते हैं और व्यापार कर सकते हैं?”
एक अन्य आश्रमवासी, जो पहचान नहीं बताना चाहती थी, ने कहा कि समन्वयक जो उन्हें हटाने के बारे में कहने के लिए आते हैं, वे सरकारी हैं और कभी-कभी धमकाते भी हैं। वह पांच लोगों के परिवार के साथ 5 गुणा 3 फीट के कमरे में रहती हैं और किराए में 50-100 रुपये का भुगतान करती हैं। उन्होंने कहा, “उन लोगों ने हमें कुछ भी नहीं बताया। यह भी नहीं कि कहां ले जाया जाएगा। क्या हमें आश्रम आने-जाने की अनुमति होगी या हमें अभी भी आश्रम परिवार का हिस्सा माना जाएगा?”
एक बार फिर मंजुलाबेन पर आते हैं। उनके मकान के एक हिस्से के रास्ते में महात्मा गांधी का भित्ति चित्र है। सरल होते हुए भी, भित्ति चित्र बहुत ध्यान आकर्षित करता है। कई आगंतुक इसके साथ खड़े होकर तस्वीरें खिंचवाते हैं। दीवार और भित्ति चित्र उस साधारण जीवन की याद दिलाते हैं, जिसके जरिये हम में से अधिकांश गांधी जी के जीने की शैली की कल्पना कर सकते हैं।
यहां रहने वालों यानी रहवासियों की बातों से पुनर्विकास परियोजना की जल्दबाजी या जरूरत पर सवाल खड़ा हो जाता है।
अधिकारियों से प्रतिशोध के डर से नाम न छापने की शर्त पर एक रहवासी ने कहा, “जो कोई भी आश्रम पहुंचता है, वह यहां के माहौल में डूबने के लिए आता है, कभी-कभी तस्वीरें खींचता है या फिर कुछ दिनों तक यहां रह भी जाता है। ऐसे जैसे यह स्थान अपने आप में गांधीजी के अस्तित्व का अभिन्न अंग हो। ऐसे में फिर उसका पुनर्विकास क्यों? ये लोग भी इतिहास का उतना ही हिस्सा हैं जितना कि संग्रहालय है। ”
पुनर्विकास की आवश्यकता
गौरतलब है कि गुजरात सरकार ने इस साल 5 मार्च को औपचारिक रूप से 1,200 करोड़ रुपये की साबरमती आश्रम पुनर्विकास परियोजना को हरी झंडी दिखाई थी। औपचारिक अधिसूचना के अनुसार, परियोजना का उद्देश्य साबरमती आश्रम के आसपास के क्षेत्रों को मिलाना और इसे “विश्व स्तरीय स्मारक” में बदलना है। साबरमती नदी के तट पर स्थित आश्रम अपने वर्तमान स्वरूप में, पुस्तकों, पांडुलिपियों और महात्मा गांधी के पत्राचार की फोटोकॉपी, उनकी पत्नी कस्तूरबा और अन्य आश्रम सहयोगियों की तस्वीरें, आदमकद तैल चित्रों और उनके लेखन और डेस्क एवं चरखा जैसे वास्तविक अवशेषों को प्रदर्शित करता है। बता दें कि आश्रम के अंदर गांधी संग्रहालय को प्रसिद्ध वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा 1963 में गांधी की हत्या के वर्षों बाद विकसित किया गया था।
आश्रम के सामने गांधी की तीसरी से चौथी पीढ़ी के वंशजों की बस्ती है। जिस भूमि पर बंदोबस्त है, वह छह आश्रम ट्रस्टों – गुजरात हरिजन सेवक संघ, साबरमती हरिजन आश्रम ट्रस्ट, साबरमती आश्रम गौशाला ट्रस्ट, गुजरात खादी ग्रामोद्योग मंडल, खादी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति और साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट (एसएपीएमटी) के स्वामित्व में है।
260 से अधिक किरायेदार परिवार हैं, जिनमें ज्यादातर दलित हैं, जिनके पूर्वजों ने सीधे गांधी के साथ काम किया था। घर के आकार के आधार पर परिवार 100-150 रुपये के बीच किराया दे रहे हैं।
अभी तक साबरमती आश्रम, एसएपीएमटी द्वारा प्रबंधित 5 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। जब नई पुनर्विकास परियोजना सामने आएगी, तो स्मारक 55 एकड़ भूमि पर फैल जाएगा- बस्ती और आश्रम के साथ दो संरचनाओं को विभाजित करने वाली सड़क का विलय होगा।
सरकार ने 60 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा आवंटित किया है। मुआवजा देने से इंकार करने वालों के लिए सरकार ने नए ढांचे के आसपास के क्षेत्र में नई इमारत का प्रस्ताव रखा है।
गांधी आश्रम पुनर्विकास परियोजना की देखरेख करने वाली कार्यकारी समिति के सदस्य आईके पटेल ने कहा, “अभी वे किरायेदार हैं। अगर वे नए भवन में जाना पसंद करते हैं, तो उनके पास घर का पूरा मालिकाना हक होगा। ”
एक गांधीवादी और गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलपति सुदर्शन अयंगर ने कहा कि जिस तरह से ट्रस्टियों और निवासियों को प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा रहा था, वह बहुत ही “आकर्षक” और “आधिकारिक” था। अयंगर ने कहा, “इस पर विचार संभव है, लेकिन बड़े फैसले लेने के बाद ही। हमें अभी भी एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) नहीं मिली है। ”
आईके पटेल ने कहा कि डीपीआर जारी होने में कुछ समय लगेगा। उन्होंने कहा, “योजना जारी है और चीजों को अंतिम रूप देने में कुछ समय लगेगा।”
गांधीवादी कार्यकर्ता नीताबेन महादेव (63) ने कहा, “जब समग्रता में देखा जाए, तो 60 लाख रुपये पर्याप्त नहीं हैं। टैक्स देना पड़ेगा, फिर मुआवजे को पहले ही 71 लाख रुपये से घटाकर 60 लाख रुपये कर दिया गया है। घर जब ट्रस्ट के हैं, और यहां रहने वाले लोग किराए पर हैं, तो कम से कम उन लोगों को तो दे दो, जिन्होंने मुआवजे का विकल्प नहीं चुना है- इससे साफ होगा कि वे किस जगह जाएंगे।”
एक कार्यकर्ता भावना रामरखियानी ने कहा, कोई भी पुनर्विकास परियोजना, पिछले पैटर्न को देखते हुए, मूल रूप में बहिष्कृत है। उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए काकारिया और रविवारी को लें। उन्होंने सार्वजनिक स्थानों को लोगों के लिए महंगा कर दिया है। मुझे डर है कि नए प्रस्तावित साबरमती आश्रम के साथ भी ऐसा ही हो सकता है।”
पुनर्वास पर रामरखियानी ने कहा, “रिवरफ्रंट का सबसे हालिया उदाहरण लेते हुए देखें तो प्राधिकरण द्वारा किया गया पुनर्वास काफी हद तक संतोषजनक था, लेकिन केवल आश्रय के संदर्भ में। रिवरफ्रंट पर रहने वाले लोगों की दुकान/कार्यालय उसके पास ही थे। वे ज्यादा कमाई नहीं कर रहे थे। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति 6,000 रुपये प्रति माह कमाता है और उन्हें उनके मूल घर से कुछ किलोमीटर दूर स्थानांतरित कर दिया गया है, तो वे अपने दैनिक खर्चों में आने-जाने की लागत को कैसे शामिल करेंगे?”