रिटायर होने से ऐन पहले के दिनों में हर किसी को ऐसी अद्भुत खबर नहीं मिल सकती। लेकिन, गुजरात कैडर के 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना एक भाग्यशाली व्यक्ति हैं। कुछ लोग इसे राजनीतिक सेवाओं के लिए एक पुरस्कार कहते हैं, जबकि अन्य इसे नियति कहते हैं और कुछ अन्य इसे “पूरी तरह से योग्यता” पर आधारित कहते हैं। लोग जो भी कहें, लेकिन राकेश अस्थाना इस पर टिप्पणी नहीं करेंगे।
राहुल गांधी ने तब उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का चहेता कहा था, जब अस्थाना अपने तत्कालीन बॉस यानी सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के साथ गंभीर रूप से दो-दो हाथ कर रहे थे। अब राहुल गांधी को सही साबित करते हुए राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना दिया गया है। भारत में इसे सबसे शीर्ष पुलिस पोस्टिंग माना जाता है। अस्थाना ने बालाजी श्रीवास्तव की जगह ली है। बता दें कि अधिकतर राज्यों के विपरीत दिल्ली पुलिस राज्य सरकार द्वारा संचालित या शासित नहीं है। दिल्ली पुलिस भारत सरकार के गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आती है। दिल्ली पुलिस की स्वीकृत संख्या 90,000 से अधिक कर्मियों की है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े महानगरीय पुलिस बलों में से एक बनाती है। तो क्यों मिला राकेश अस्थाना को यह पद? अस्थाना अगले चार दिनों में रिटायर होने वाले थे। बहरहाल, एक बहुप्रतीक्षित निर्णय में उन्हें जहां एक वर्ष का विस्तार मिला, वहीं दिल्ली पुलिस आयुक्त के रूप में एक शानदार नियुक्ति के साथ पुरस्कृत भी किया गया। अस्थाना वर्तमान में सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक हैं। मंगलवार की रात उन्होंने वहां अपना पूरा काम समेट लिया है। बुधवार की सुबह वह दिल्ली सीपी के रूप में कार्यभार संभाल लेंगे। अस्थाना ही क्यों? अस्थाना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पसंदीदा माना जाता है। अस्थाना के तत्कालीन बॉस आलोक वर्मा को चर्चित अस्थाना-वर्मा विवाद के बाद सीबीआई से जबरन छुट्टी पर भेजे जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उन्हें यह विशेषण दिया था। तब आधी रात को एक नाटकीय तख्तापलट के बाद अस्थाना को भी छुट्टी पर भेज दिया गया था। इसके तुरंत बाद सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को "निष्पक्षता के हित में" और संस्था की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए बर्खास्त कर दिया गया था। ऐसा अस्थाना के पक्ष में किया गया था। कहना ही होगा कि अस्थाना को दिल्ली पुलिस के कमिश्नर का पद प्रधानमंत्री मोदी के करीबी होने के कारण ही मिला है। कैसे बने मोदी के चहेते अस्थाना पर सबसे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने ध्यान दिया। वह जब उपप्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में केंद्र सरकार में थे, तब वह आडवाणी की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालते थे। बिहार से ताल्लुक रखने वाले अस्थाना को कांग्रेस के सत्ता में रहने के दौरान भी कांग्रेस विरोधी के रूप में जाना जाता था। हालांकि एक समय में उन्हें कांग्रेस के दिवंगत नेता अहमद पटेल के करीबी के तौर पर भी माना जाता था। अपने गृह राज्य बिहार में युवा अस्थाना की प्रतिष्ठा में चार चांद तब लगे थे, जब उन्होंने चारा घोटाले में लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार किया था। कांग्रेस के शासन काल में अस्थाना जानबूझ कर लो प्रोफाइल बने रहे। अन्य अधिकारियों के विपरीत अस्थाना ने शराब या अन्य अपराध में कमाने-खाने की प्रवृत्ति से खुद को अलग रखा, जो कि शराबबंदी गुजरात में एक आम बात है। इसके बजाय उन्होंने उद्योगपतियों के साथ नेटवर्किंग पर ध्यान केंद्रित किया। गुजरात में रिलायंस समूह और संदेसरा बंधुओं के साथ अस्थाना की निकटता प्रसिद्ध थी। आडवाणी ने 2002 में अस्थाना को मोदी से मिलवाया। गुजरात दंगों के बाद वे काफी करीब आ गए, क्योंकि अस्थाना ने कथित तौर पर मोदी को नरसंहार के विपक्षी आरोपों का सामना करने में मदद की। यह वह दौर था, जब अस्थाना का कद बढ़ता चला गया। वह गुजरात के पहले आईपीएस अधिकारी थे, जिन्होंने उन पर विशेष वीडियो बनाए थे। जल्द ही वह सोशल मीडिया पर भी लोकप्रिय हस्ती बन गए। नौकरी में आने के बाद से अस्थाना ने यह बताने में कंजूसी नहीं कि उनके आदर्श वल्लभभाई पटेल थे, न कि नेहरू। इसने उन्हें गुजरात में और भी अधिक प्यार किया। 2002 में गुजरात सरकार की कैसे मदद की केंद्र में तत्कालीन सत्तारूढ़ यूपीए सरकार के दबाव के बाद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2002 में मामले की जांच के लिए अस्थाना की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल नियुक्त किया। 9 जुलाई तक गोधरा रेलवे स्टेशन पर अचानक हुई लड़ाई की बात कहने वाली जांच ने ट्रैक बदल दिया गया। इसके बजाय एक स्थानीय मुस्लिम व्यापारी को हमला करने वाले गुट के सरगना के रूप में नामित किया गया और बताया गया कि यह गुजरात में हिंदुओं के खिलाफ साजिश थी। साबरमती एक्सप्रेस में लगी आग कोई दुर्घटना या स्वतःस्फूर्त दंगों का परिणाम नहीं थी, बल्कि अयोध्या से आने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों को मारने की एक पूर्व नियोजित साजिश थी। अस्थाना और उनकी जांच टीम द्वारा सितंबर 2002 में दायर आरोपपत्र ने इस सिद्धांत को आगे बढ़ाया कि ट्रेन में आग की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी। फरवरी 2003 तक कुछ मुसलमानों पर आतंकवाद रोकथाम अधिनियम के तहत आरोप वापस आ गए। लेकिन इस घटना ने उन्हें सीएम मोदी और अमित शाह के और करीब ला दिया। फिर? 2008 में अस्थाना ने अहमदाबाद सीरियल बम विस्फोट मामले की जांच का नेतृत्व किया। तब गुजरात शहर में 22 जगहों पर बम फटे थे, जिसमें 56 लोगों की मौत हो गई थी। इंडियन मुजाहिदीन की ओर से एक ईमेल के जरिये इस सीरियल बम धमाके की कथित तौर पर जिम्मेदारी लेने का दावा किया गया था। 22 दिन के अंदर अस्थाना ने न सिर्फ मामले का पर्दाफाश कर दिया, बल्कि आरोपी को गिरफ्तार भी कर लिया। इससे वह हीरो बन गए। गुजरात के बाद सीएम मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अस्थाना भी दिल्ली चले गए। राकेश अस्थाना ने कई मामलों, खासकर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को सुलझाने में मौजूदा सरकार की काफी मदद की है। उन्होंने राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों की जांच करने वाले एक विशेष जांच दल का नेतृत्व किया, जिसमें विपक्ष के कई सदस्यों को फंसाया गया। इनमें अगस्ता वेस्टलैंड रक्षा घोटाला, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, कारोबारी और लोन डिफॉल्टर विजय माल्या की जांच और राजस्थान एम्बुलेंस घोटाला शामिल हैं। ऐसे में उनका सरकार के लिए चहेता बनना वाजिब ही है। असल में कौन हैं राकेश अस्थाना दोस्तों के लिए वह राकेश हैं। वह दोस्तों के प्रति बहुत वफादार होने के लिए जाने जाते हैं। वाइब्स ऑफ इंडिया से बातचीत में उनके दो बेहद करीबी दोस्तों ने उन्हें बहिर्मुखी, मददगार और मिलनसार बताया। राकेश अस्थाना का जन्म 9 जुलाई 1961 को झारखंड के रांची में हुआ, जो पहले बिहार का हिस्सा था। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) जाने से पहले उन्होंने पलामू जिले में स्थित प्रसिद्ध नेतरहाट स्कूल और सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा में पढ़ाई की। भारतीय पुलिस सेवा (IPS) क्लियर करने से पहले उन्होंने रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में पढ़ाया भी। वह 1984 में आईपीएस अधिकारी बने और गुजरात कैडर में शामिल हुए। चर्चा में कब आए? अस्थाना को तबके उनके गृह राज्य बिहार में प्रतिनियुक्त किया गया था। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधीक्षक के रूप में उन्होंने चारा घोटाले में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद से पूछताछ की थी। उस समय लालू प्रसाद अपनी राजनीतिक ताकत के चरम पर थे और कई अधिकारियों के लिए पहुंच से परे थे। लेकिन अस्थाना आगे निकल गए। उन्होंने पूछताछ के बाद जो चार्जशीट दायर की, वह 1997 में पहली बार लालू को गिरफ्तार किए जाने का आधार बना था। राष्ट्रीय स्तर पर कैसे आए चर्चा में वह अपने करियर के पहले ही मामले को लेकर सुर्खियों में आ गए थे। हालांकि नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद अप्रैल 2018 में अपलोड किया गया उनका एक "मोटिवेशनल वीडियो" वायरल हो गया। इसमें वह हाथों में पुलिसिया डंडा घुमाते और लंबे-लंब डग भरते दिखे थे। वल्लभभाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस और स्वामी विवेकानंद से अस्थाना की तुलना करने वाला यह वीडियो सुपरहिट हो गया। अस्थाना रातोंरात दबंग, सिंघम और सुपरकॉप बन गए। सीबीआई में पोस्टिंग से पहले अस्थाना को 2017 में सीबीआई के विशेष निदेशक के पद पर पदोन्नत किया गया था। तब वकील प्रशांत भूषण के एनजीओ कॉमन कॉज ने चयन समिति के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उसने दावा किया था कि अस्थाना देश की शीर्ष जांच एजेंसी का हिस्सा बन लायक नहीं थे। संदेसरा के साथ अस्थाना की मित्रता कांटा बन गई। मनी लॉन्ड्रिंग के लिए जांच की जा रही कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक के कार्यालयों से जब्त की गई "2011 की डायरी" में उनका नाम था। आरोपों के मुताबिक, इसके रिकॉर्ड से पता चलता है कि उन्हें 3.83 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ था। इस कंपनी का मालिकाना हक उनके दोस्त संदेसरा बंधुओं के पास था। अस्थाना पर यह भी आरोप लगाया गया था कि उन्होंने दुबई की निजी यात्रा के लिए संदेसरा बंधुओं के विमान का इस्तेमाल किया था, हालांकि यह आज तक एक निराधार तथ्य है। डायरी 2017 में केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दायर की गई एफआईआर का आधार थी, हालांकि इसमें अस्थाना का नाम नहीं था। इसके बाद? पीएम नरेंद्र मोदी अपने अंदर स्पष्ट थे। तत्कालीन सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा न चाहते हुए भी अस्थाना सीबीआई में विशेष निदेशक बनाए गए। पसंदीदा होने का दावा साबित हुआ। सीबीआई विवाद अस्थाना भ्रष्टाचार के एक मामले में सीबीआई के विशेष निदेशक आलोक वर्मा के साथ रिश्वतखोरी के विवाद में फंस गए थे। दोनों ने एक दूसरे पर रिश्वतखोरी का आरोप लगाया। बाद में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश पर सरकार ने उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कह दिया। आलोक वर्मा इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए। उधर अस्थाना ने दिल्ली हाई कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट ने वर्मा को छुट्टी पर भेजने के फैसले को रद्द कर दिया और वर्मा को दो ममहीने बाद सीबीआई निदेशक के रूप में बहाल कर दिया गया। इस निर्देश के साथ कि जब तक चयन समिति भ्रष्टाचार के आरोपों पर उनके भाग्य का फैसला नहीं करती, तब तक वह कोई बड़ा फैसला नहीं लेंगे। फिर बहुत ही अपेक्षित पैटर्न में सीबीआई जांच पूरी की गई। कहना ही होगा कि इसमें राकेश अस्थाना को क्लीन चिट दे दी गई, जिसे सीबीआई की विशेष अदालत ने आराम से स्वीकार कर लिया। गौर करें गौरतलब है कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी (आप) का शासन है। लेकिन दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार यानी नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार के अधीन है। आने वाला समय यकीनन राहुल गांधी, आप और मोदी की अगुआई वाली भाजपा सरकार का विरोध करने वालों के लिए अच्छा नहीं होगा।