इतिहास के रोमांस के सरोबार है चित्तौड़गढ़। जहां एक कम कल्पनाशील आंख केवल चट्टान का एक टीला देख सकती है, वहीं कलात्मक दिमाग पत्थर पर उकेरा हुआ गौरवशाली अतीत का साक्षात्कार कर सकता है। एक ऐसा समय, जब मौत का रिश्ता अपमान से रहता था और खतरनाक तलवारें लगातार टकराती हुई गूंज पैदा करती थीं। एक शानदार किला शहर के ऊपर देखता है, जहां अनगिनत कहानियां बिखरी पड़ी हैं।
दरअसल, चित्तौड़ की कहानी मुख्य रूप से इसके 700 एकड़ के किले की कहानी है। 5वीं और 8वीं शताब्दी के बीच मौर्यों द्वारा निर्मित यह 734 में गहलोत के संस्थापक बप्पा रावल के हाथों पड़ गया। फिर रुक-रुक कर मुस्लिम हमलों के साथ राजपूतों और गुजरातियों द्वारा अगली आठ शताब्दियों तक कब्जे में रहा। अपने सुनहरे दिनों में 70,000 लोगों को रखने वाला किला आज एक स्मारक के बजाय 500 फुट ऊंची कॉलोनी है। यह हिंदू, जैन और मुस्लिम इमारतों से अटा पड़ा है, जो कभी-कभी एक में घुल-मिल जाता है। 13 वीं शताब्दी की शुरुआत से मुगल सम्राट अकबर की 1567 की विजय तक चित्तौड़ दरअसल मेवाड़ की सिसोदिया राजधानी थी, जिस बिंदु पर राणा उदय सिंह ने पहाड़ियों पर डेरा डाला था।
युद्ध स्मारक के रूप में इतिहास बाद में ग्लैमरस होने लगा। कुछ लोग उदयपुर से एक दिन की यात्रा पर चित्तौड़गढ़ चले जाते हैं। हालांकि इस दौरान आधा दिन सड़क पर बीत जाता है। ग्रामीण इलाकों में किसी रिसॉर्ट में टिकना और फिर किले, गांवों, वुडलैंड्स और मंदिरों का दौरा करना सबसे अच्छा है। शहर से आप खुद किले तक ड्राइव कर सकते हैं या मुख्य बाजार से किराए पर ऑटो ले सकते हैं।
इस रणनीतिक गढ़ में और इसके आसपास कई लड़ाइयां लड़ी गई हैं। शहर को तीन घेराबंदी का सामना करना पड़ा। आज किले की चढ़ाई वाली सड़क विभिन्न प्रवेश द्वारों से होकर गुजरती है। इनमें से कुछ को पहचानने लायक गुजराती तत्व भी हैं। यात्रा की शुरुआत राणा कुंभा के महल से होती है। यह किले का सबसे लुभावने हिस्सों में से एक है और राजपूत वास्तुकला का मॉडल है। हालांकि राणा कुंभा ने अपने लंबे शासन (1433-68) के दौरान परिसर की स्थापना नहीं की थी, लेकिन उन्होंने इसका जीर्णोद्धार किया और इसमें काफी कुछ जोड़ा। प्रवेश द्वार के ठीक अंदर आप देख सकते हैं कि वह कहां बैठते थे और वहीं सूर्योदय देखते थे। संगीतकारों की धुनों पर छतरी की नीचे बैठे-बैठे सूर्य की प्रार्थना करते थे।
यादें रानी कीः
कुंभा पैलेस के जनाना महल के भीतर, ऊपरी मंजिलों को आक्रमणकारियों ने निशाना बनाया था। यहां आज सुंदर छत वाले गुंबद को देखना बेहतर लगता है। इन चैंबरों की चारों ओर नौकरानियों के लिए के ढह गए क्वार्टरों की एक अंतहीन श्रृंखला है, जिसमें सीढ़ियां कहीं नहीं जाती हैं। बाहर, दीवारों पर गुलाबी और नीले रंग के हल्के निशान हैं और जब आसमान शुद्ध नीला होता है, तो आप कल्पना कर सकते हैं कि यह जगह कितनी खूबसूरत रही होगी।
यह देखने के लिए घूमें कि मीराबाई ने युवा सिसोदिया राजकुमार भोज राज की विधवा के रूप में अपना अधिकांश जीवन कहां बिताया। इस इमारत का थोड़ा-सा हिस्सा बचा हुआ है। कुल मिलाकर चित्तौड़ शहर का दृश्य, हरे-हरे दरवाजे वाले नीले घर वाकई देखने लायक हैं।
पेड़ों की छाया से ढंके दीवान-ए-आम (जनता के लिए बने हॉल) के अंत में राणा संघ का हाथी कक्ष है। किले की जैन आबादी में राणाओं के लिए काम करने वाले एकाउंटेंट और बैंकर शामिल थे, और उन्होंने वास्तुशिल्प के रूप में अपनी गहरी छाप छोड़ी। राणा कुंभा के महल से सड़क के उस पार 15वीं शताब्दी का जैन मंदिर- शांति नाथ है। इसे राणा के अकाउंटेंट ने बनवाया था। पास में 19वीं सदी का फतेह प्रकाश पैलेस है। इस म्यूजियम में हथियार, मूर्तियां, कलाकृतियां और कुछ लोक कला के टुकड़े हैं।
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