संसद में राहुल गांधी ने दिया एकलव्य का उदाहरण: सामाजिक न्याय और बलिदान का प्रतीक - Vibes Of India

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संसद में राहुल गांधी ने दिया एकलव्य का उदाहरण: सामाजिक न्याय और बलिदान का प्रतीक

| Updated: December 18, 2024 13:03

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में शनिवार, 15 दिसंबर को महाभारत के एक प्रतिष्ठित पात्र एकलव्य का जिक्र करते हुए अपने सामाजिक न्याय के संदेश को और मजबूती दी। राहुल ने एकलव्य की कहानी के जरिए देश के युवाओं, छोटे कारोबारियों और किसानों की समस्याओं को सरकार की नीतियों से जोड़ा।

उन्होंने द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य से उनका अंगूठा मांगने की घटना को याद करते हुए सरकार पर निशाना साधा। राहुल ने कहा, “जैसे द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा कटवाया, वैसे ही आप भारत के युवाओं का अंगूठा काट रहे हैं।” उन्होंने आरोप लगाया कि बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां किसानों और छोटे व्यापारियों का “अंगूठा काट रही हैं,” जबकि अग्निवीर योजना और सरकारी नौकरियों में लेटरल एंट्री जैसी योजनाएं युवाओं के रोजगार की संभावनाओं को खत्म कर रही हैं।

लेकिन राहुल गांधी की इस तुलना से परे, एकलव्य की कहानी महत्वाकांक्षा, बलिदान और न्याय के सवालों से जुड़ी एक मार्मिक गाथा है। एकलव्य के जीवन और उनकी द्रोणाचार्य के साथ हुई घटना के बाद के प्रसंग हमें धर्म (कर्तव्य) और नैतिकता के गहरे प्रश्नों पर विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।

कौन थे एकलव्य?

एकलव्य, एक साहसी निषाद बालक थे, जो द्रोणाचार्य से शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। हालांकि, द्रोणाचार्य ने उन्हें अपना शिष्य बनाने से इनकार कर दिया। इसके बाद, एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उन्हें अपना गुरु मान लिया और स्वयं ही धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगे। उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें महान धनुर्धर बना दिया।

एक दिन, द्रोणाचार्य अपने शिष्यों के साथ शिकार पर निकले। उन्होंने देखा कि एक कुत्ते के मुंह में तीर भरे हुए हैं, जिससे वह चुप हो गया था, लेकिन उसे चोट नहीं पहुंची थी। यह अद्भुत धनुर्विद्या देखकर द्रोणाचार्य ने इस तीरंदाज को ढूंढ निकाला। वह तीरंदाज और कोई नहीं, एकलव्य थे।

जब द्रोणाचार्य ने उनसे उनके गुरु के बारे में पूछा, तो एकलव्य ने बताया कि उन्होंने द्रोणाचार्य की मूर्ति को अपना गुरु मानकर प्रशिक्षण लिया है। इस पर, द्रोणाचार्य ने गुरु दक्षिणा के रूप में एकलव्य से उनका दाहिना अंगूठा मांगा। गुरु की आज्ञा मानते हुए, एकलव्य ने बिना किसी हिचक के अपना अंगूठा काटकर समर्पित कर दिया।

एकलव्य के जीवन की अनसुनी कहानियां

एकलव्य की कहानी केवल उनके अंगूठे के बलिदान तक सीमित नहीं है। वह निषादों के राजा हिरण्यधनु के पुत्र थे। निषाद महाभारत काल में जंगलों और पर्वतों में रहने वाले जनजाति थे, जो शिकार और मछली पकड़ने जैसे कार्यों में लगे रहते थे।

कुछ कथाओं के अनुसार, हिरण्यधनु ने एकलव्य को गोद लिया था। उनके वास्तविक पिता देवश्रवा, वसुदेव (भगवान कृष्ण के पिता) के छोटे भाई थे। एकलव्य के जन्म के समय ऋषियों ने उनकी भविष्यवाणी में अशुभ संकेत दिए थे, जिसके कारण उन्हें जंगल में छोड़ दिया गया था।

द्रोणाचार्य द्वारा अंगूठा कटवाने के बाद भी एकलव्य ने अपने युद्ध कौशल को नहीं छोड़ा। महाभारत में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि एकलव्य ने “चमड़े के दस्तानों” का उपयोग करके युद्ध करना जारी रखा और वह अब भी अत्यंत शक्तिशाली योद्धा थे।

एकलव्य ने मगध के राजा जरासंध के लिए युद्ध किया, जो भगवान कृष्ण के शत्रु थे। जरासंध ने कई बार मथुरा पर आक्रमण किया। अंततः, कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले, भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यह बताते हुए एकलव्य को मार डाला कि वह कौरवों की ओर से लड़ने वाले प्रमुख योद्धाओं में से एक हो सकता था।

एकलव्य की कहानी का सामाजिक और सांस्कृतिक विश्लेषण

एकलव्य की कहानी अक्सर समाज में जातिगत और वर्गीय भेदभाव की ओर इशारा करती है। इसे निचले तबके और वंचित समुदायों को ज्ञान और शक्ति से वंचित करने की कोशिश के रूप में देखा जाता है। द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य को शिक्षा देने से इनकार करना और बाद में उनका अंगूठा मांगना उच्च वर्गों की सत्ता बनाए रखने के प्रयास का प्रतीक है।

हालांकि, महाभारत जैसे ग्रंथ सरल नैतिकताओं से परे, जटिल प्रश्न उठाते हैं। धर्म (कर्तव्य) के संदर्भ में, पात्रों के कार्यों को समझने का प्रयास किया जाता है।

द्रोणाचार्य, जो पांडवों के भी गुरु थे, कुरुक्षेत्र युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े क्योंकि उनका धर्म हस्तिनापुर के सिंहासन के प्रति निष्ठा था। इसी दृष्टिकोण से एकलव्य के प्रति उनका व्यवहार भी देखा जा सकता है। उन्होंने राजकुमारों के लिए किसी भी चुनौती को समाप्त करना अपना कर्तव्य समझा।

दूसरी ओर, एकलव्य की असीम निष्ठा और समर्पण, द्रोणाचार्य की अस्वीकृति के बावजूद, उनकी कहानी को एक दुखांत नायक की गाथा बनाता है।

लोक स्मृति में एकलव्य: अन्याय के प्रतीक

आज के दौर में एकलव्य को एक ऐसे नायक के रूप में देखा जाता है, जिसे अन्यायपूर्ण सामाजिक व्यवस्था ने कुचल दिया। उनकी कहानी उन लोगों को प्रेरणा देती है, जो स्थापित व्यवस्थाओं को चुनौती देते हैं।

राहुल गांधी द्वारा संसद में एकलव्य का उल्लेख युवाओं, किसानों और छोटे कारोबारियों की समस्याओं को उजागर करने का प्रयास है। चाहे पौराणिक कथा हो या आधुनिक राजनीति, एकलव्य की कहानी आज भी न्याय, समानता और सत्ता के कर्तव्यों पर बहस को प्रेरित करती है।

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