भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्रीय बैंक को महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ानी ही होंगी। ऐसे में नेताओं और नौकरशाहों को इस बढ़ोतरी को “राष्ट्र-विरोधी” गतिविधि के रूप में नहीं लेना चाहिए। अपने स्पष्ट विचारों के लिए जाने जाने वाले राजन ने यह भी कहा कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि “महंगाई के खिलाफ युद्ध” कभी खत्म नहीं होता है।
उन्होंने सोमवार क एक लिंक्डइन पोस्ट में कहा, “भारत में महंगाई बढ़ रही है। किसी समय तो आरबीआई को दरें बढ़ानी होंगी, जैसा कि बाकी दुनिया कर रही है।”
महंगे खाद्य पदार्थों ने मार्च में खुदरा मुद्रास्फीति को आरबीआई के ऊपरी सहिष्णुता स्तर से ऊपर 17 महीने के उच्चतम 6.95 प्रतिशत पर पहुंचा दिया, जबकि थोक मूल्य-आधारित महंगाई चार महीने के शिखर 14.55 प्रतिशत पर पहुंच गई। इसका मुख्य कारण था- कच्चे तेल और कमोडिटी की कीमतों में बढ़ोतरी।
उन्होंने जोर देकर कहा, “…नेताओं और नौकरशाहों को यह समझना होगा कि नीतिगत दरों में वृद्धि विदेशी निवेशकों को लाभ पहुंचाने वाली कोई राष्ट्रविरोधी गतिविधि नहीं है, बल्कि आर्थिक स्थिरता में एक निवेश है। इसका सबसे अधिक लाभ भारत सरकार को मिलता है।” राजन इस समय यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर हैं।
इस महीने की शुरुआत में रिजर्व बैंक ने लगातार 11वीं बार रिकॉर्ड निचले स्तर पर उधार लेने की लागत को अपरिवर्तित रखा, ताकि महंगाई में वृद्धि के बावजूद आर्थिक विकास का समर्थन जारी रखा जा सके। जबकि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए खुदरा महंगाई के अनुमान को 4.5 प्रतिशत के पहले के अनुमान से बढ़ाकर 5.7 प्रतिशत कर दिया है, बेंचमार्क ब्याज दर को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया था।
उच्च दरों ने उनके कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को रोक दिया था, इस आलोचना पर राजन ने कहा कि वह सितंबर 2013 में तीन साल के कार्यकाल के साथ आरबीआई गवर्नर बने थे। तब भारत में रुपये में गिरावट के साथ भारत भारी मुद्रा संकट से जूझ रहा था। उन्होंने कहा कि तब महंगाई 9.5 प्रतिशत पर थी, आरबीआई ने इसे कम करने के लिए सितंबर 2013 में रेपो दर 7.25 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत कर दी थी। उन्होंने कहा, “महंगाई कम होने के कारण हमने रेपो दर में 150 आधार अंकों की कटौती कर 6.5 प्रतिशत कर दिया।”
प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा: “हमने सरकार के साथ मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढांचे पर भी हस्ताक्षर किए।” यह देखते हुए कि इन कार्यों ने न केवल अर्थव्यवस्था और रुपये को स्थिर करने में मदद की, बल्कि ” अगस्त 2013 से अगस्त 2016 के बीच महंगाई की दर 9.5 प्रतिशत से घटकर 5.3 प्रतिशत हो गई।”
राजन ने कहा कि आज विदेशी भंडार 600 अरब डॉलर से अधिक हो गया है। इससे आरबीआई को वित्तीय बाजारों पटरी पर रखने में सफलता मिली है, भले ही तेल की कीमतें चढ़ गई हों।
उन्होंने कहा, “याद रखें कि 1990-91 में संकट, जब हमें आईएमएफ से संपर्क करना पड़ा था, तेल काफी महंगा था। आरबीआई के मजबूत आर्थिक प्रबंधन ने यह सुनिश्चित करने में मदद की है, जिससे इस बार ऐसा नहीं हुआ है।”
उन्होंने यह माना कि ब्याज दरें बढ़ने से कोई भी खुश नहीं होता। फिर भी राजन ने कहा कि उन्हें अभी भी राजनीतिक कारणों से आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है कि आरबीआई ने उनके कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था को रोक दिया था।