गुजरात में खेल शिक्षकों की संविदा आधारित नियुक्तियों को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। खेल सहायक योजना के दूसरे वर्ष में प्रवेश करते हुए भी शिक्षकों और अभ्यर्थियों में असंतोष बना हुआ है। हाल ही में बजट सत्र के दौरान गांधीनगर में हुए विरोध प्रदर्शनों में कई लोग शामिल हुए और विधानसभा की ओर मार्च करने के प्रयास में कुछ को हिरासत में भी लिया गया।
राज्य सरकार ने शैक्षणिक सत्र 2024–25 के लिए 1,500 से अधिक खेल सहायकों की नियुक्ति की है। हालांकि, कई नियुक्त शिक्षकों और विशेषज्ञों का कहना है कि यह योजना न तो शिक्षकों के अधिकारों की सुरक्षा करती है और न ही छात्रों के लिए स्थायी लाभ सुनिश्चित करती है।
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि पिछले 15 वर्षों से नियमित खेल शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है, वेतन में अनियमितता है और अनुबंध के नवीनीकरण को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
सरकार ने हाल ही में योजना के तहत नियुक्तियों के लिए अधिकतम आयु सीमा 38 से बढ़ाकर 40 वर्ष कर दी है। योजना की शुरुआत जुलाई 2023 में 35 वर्ष की अधिकतम आयु सीमा के साथ हुई थी।
प्रदर्शनकारी खेल शिक्षक यह भी कहते हैं कि उनसे नियमित शिक्षकों की तरह कार्य लिया जाता है, कई बार उससे अधिक, लेकिन वेतन केवल कुछ महीनों के लिए ही दिया जाता है। कई प्रशिक्षित और राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी, जो खेल शिक्षा में स्नातकोत्तर हैं, बिना वेतन के घर पर बैठने को मजबूर हैं या फिर अचानक सेवा समाप्ति का सामना कर रहे हैं।
विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने इन विरोधों का समर्थन किया है। उनका कहना है कि राज्य सरकार एक ओर जहां 2036 ओलंपिक की मेज़बानी का दावा कर रही है, वहीं दूसरी ओर वर्षों से स्कूलों और कॉलेजों में खेल शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है। इससे सरकार की खेल नीति और व्यवहार में विरोधाभास झलकता है।
हालांकि राज्य शिक्षा विभाग ने प्राथमिक विद्यालयों में हजारों खाली पदों की पहचान की है, लेकिन केवल सीमित संख्या में ही नियुक्तियां हुई हैं। ये नियुक्तियां खेल अभिरुचि परीक्षा (SAT) के आधार पर की जा रही हैं, जिसकी हाल ही में राज्य परीक्षा बोर्ड द्वारा परीक्षा ली गई है।
11 महीने की संविदा अवधि के अंत में शिक्षक की सेवाएं स्कूल प्रबंधन समिति (SMC) और क्लस्टर रिसोर्स सेंटर कोऑर्डिनेटर की समीक्षा के बाद ही आगे बढ़ाई जाएंगी। यह योजना 2027–28 तक मिशन स्कूल ऑफ एक्सीलेंस परियोजना के तहत लागू रहेगी और उसके बाद इसकी समीक्षा के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।
शिक्षा विभाग ने यह स्वीकार किया है कि स्कूलों में खेल शिक्षकों की नियमित भर्ती 2010 के बाद से नहीं हुई है और कॉलेजों में भी नियुक्तियों में वर्षों से ठहराव है। सरकार का कहना है कि यदि खेल सहायकों को नियमित किया गया, तो संगीत और कला विषयों के शिक्षक भी ऐसी ही मांग करेंगे, जिससे नीति निर्माण में जटिलता आ सकती है।
विरोध करने वाले शिक्षकों की मांग है कि सरकार नियुक्तियों की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए, स्थायी पदों पर भर्ती शुरू करे, और संविदा शिक्षकों को न्यूनतम अधिकार एवं वेतन सुरक्षा प्रदान करे। उनका कहना है कि यदि सरकार प्रशिक्षित खेल शिक्षकों को नौकरी नहीं देना चाहती, तो फिर उन कॉलेजों और संस्थानों को बंद किया जाए जो महंगी फीस लेकर खेल शिक्षा दे रहे हैं।
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