देशभर की जेलों में अल्पसंख्यक कैदियों की संख्या अधिक - Vibes Of India

Gujarat News, Gujarati News, Latest Gujarati News, Gujarat Breaking News, Gujarat Samachar.

Latest Gujarati News, Breaking News in Gujarati, Gujarat Samachar, ગુજરાતી સમાચાર, Gujarati News Live, Gujarati News Channel, Gujarati News Today, National Gujarati News, International Gujarati News, Sports Gujarati News, Exclusive Gujarati News, Coronavirus Gujarati News, Entertainment Gujarati News, Business Gujarati News, Technology Gujarati News, Automobile Gujarati News, Elections 2022 Gujarati News, Viral Social News in Gujarati, Indian Politics News in Gujarati, Gujarati News Headlines, World News In Gujarati, Cricket News In Gujarati

देशभर की जेलों में अल्पसंख्यक कैदियों की संख्या अधिक

| Updated: December 12, 2021 16:01

देश भर की जेलों में बंद कैदियों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या अधिक है, चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी हो। ऐसी रिपोर्ट राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की है।

इस सिलसिले में मुस्लिमों के मामलों को देखें। यूपीए के दूसरे कार्यकाल के दौरान “विचाराधीन (अंडरट्रायल)” मुस्लिम कैदी जहां 21 से 22.5 प्रतिशत थे, वहीं एनडीए-2 (2014 से 2019 तक) के तहत 19 से 21 प्रतिशत। चूंकि कानून और व्यवस्था राज्य के विषय हैं, इसलिए इस सवाल की इस स्तर पर जांच करने की जरूरत है।

लगभग सभी हिंदू-बहुल राज्यों में जेल में बंद कैदियों के बीच मुसलमानों का अधिक प्रतिनिधित्व है (और थे)। मसलन असम में 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम आबादी 34 प्रतिशत है, लेकिन विचाराधीन कैदियों में वे 43 से 47.5 प्रतिशत तक का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसी तरह गुजरात में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत है और 2017 से वे “विचाराधीन कैदियों” में 25 से 27 प्रतिशत तक हैं ( 2013 में 24 प्रतिशत थे)।

कर्नाटक में मुस्लिम आबादी 13 प्रतिशत है और वे 2018 से “विचाराधीन कैदियों” के मामले में 19 से 22 प्रतिशत हैं (2013-2017 में वे 13 से 14 प्रतिशत थे)। केरल में वे आबादी का 26.5 प्रतिशत हैं, लेकिन “विचाराधीन कैदियों” में 28 से 30 प्रतिशत। उधर मध्य प्रदेश में मुसलमान 2017 से 6.5 प्रतिशत हैं, लेकिन “विचाराधीन कैदियों” में 12 से 15 प्रतिशत हैं (वे 2013 में पहले से ही 13 प्रतिशत थे)।

महाराष्ट्र में मुस्लिम आबादी 11.5 प्रतिशत है, लेकिन  “विचाराधीन कैदियों” के बीच उनका प्रतिशत 2012 में 36.5 पर पहुंच गया (यह अपने 2009 के स्तर पर वापस चला गया, जबकि  2015 में 30 प्रतिशत था)। राजस्थान में मुसलमान 9 प्रतिशत हैं और वे “विचाराधीन कैदियों” के 18 से 23 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं (वे 2013 में 17 प्रतिशत थे)। 2017 के बाद से तमिलनाडु में मुस्लिम 6 प्रतिशत और विचाराधीन कैदियों में 11 प्रतिशत हैं।

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या का 19 प्रतिशत हैं, और 2012 से “विचाराधीन कैदियों” में 26 से 29 प्रतिशत हैं। इसी तरह  पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी 27 प्रतिशत है, और वे 2017 के बाद से 36 प्रतिशत से अधिक “अंडरट्रायल” का प्रतिनिधित्व करते हैं। एकमात्र प्रमुख राज्य जहां “अंडरट्रायल” के बीच मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कम है, वह है बिहार। वहां विचाराधीन कैदी जहां 15 प्रतिशत मुस्लिम हैं, वहीं उनकी  आबादी 17 प्रतिशत है।

जेल में मुसलमानों की अधिक संख्या कुछ हद तक पुलिस के सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के कारण है। कई राज्यों में “दोषी” मुसलमानों का प्रतिशत “विचाराधीन कैदियों” के बीच उनके प्रतिशत से बहुत कम है।

2019 का ही आकलन करें, तो असम में 47.5 प्रतिशत “विचाराधीन कैदियों” में से दोषियों की संख्या घटकर 39.6 प्रतिशत रह गई। कर्नाटक में 19.5 से 14 प्रतिशत; केरल में 31 से 27 प्रतिशत, मप्र में 12 से 10 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 30 में से 20 प्रतिशत; राजस्थान में 18 में से 17 प्रतिशत, यूपी में 29 में से 22 फीसदी तक हुई।

इन आंकड़ों से पता चलता है कि जब न्यायपालिका आखिरकार कई “विचाराधीन कैदियों” के मामलों को उठाती है, तो  न्यायाधीशों को एहसास होता है कि पर्याप्त सबूत नहीं हैं। फिर वे ऐसे लोगों को रिहा कर देते हैं, जिन्होंने बिना किसी कारण के जेल में बहुत अधिक समय बिताया है।

इसलिए पुलिस और न्यायपालिका कई राज्यों में कुछ हद तक परस्पर विरोधी हैं। इस हद तक कि दोषियों की हिस्सेदारी कर्नाटक, केरल और यहां तक कि उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में मुसलमानों की हिस्सेदारी से बहुत अधिक नहीं है। 2011 की जनगणना (14.2 प्रतिशत) के अनुसार, अखिल भारतीय स्तर पर मुस्लिम दोषियों का अनुपात जनसंख्या में मुसलमानों के प्रतिशत से 2.5 प्रतिशत अंक अधिक था।

केवल कुछ राज्यों में ही पुलिस और न्यायपालिका की सोच में  समानता दिखती है। मुस्लिम “दोषियों” का प्रतिशत केवल एक राज्य में मुस्लिम “अपराधियों” के प्रतिशत के बराबर है। ऐसा राज्य है- तमिलनाडु (11 प्रतिशत)। जबकि दोषियों की तुलना में विचाराधीन कैदियों की संख्या तीन राज्यों में अधिक हैं: गुजरात (25 प्रतिशत के मुकाबले 31), पश्चिम बंगाल (37 प्रतिशत के विरुद्ध 38) और बिहार (15 प्रतिशत के विरुद्ध 18)।

यदि अधिकांश हिंदू-बहुल राज्यों की जेलों के कैदियों में  मुसलमानों की संख्या अधिक है- “दोषियों” से अधिक “विचाराधीन”- तो एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू और कश्मीर की जेल में हिंदुओं का प्रतिनिधित्व अधिक है। इस राज्य में जहां हिंदू 28.5 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं, वहीं 2014 और 2019 के बीच वे “विचाराधीन कैदियों” के रूप में 34 से 39.5 प्रतिशत थे। दोषियों में तो उनकी संख्या और भी अधिक थी – 42.6 से 50.5 प्रतिशत के बीच।

राज्य में मुस्लिम आबादी 68.3 प्रतिशत है। लेकिन  “विचाराधीन कैदियों” का प्रतिशत (60.5 से 56 के बीच) उनके “दोषियों” (53 से 43 प्रतिशत के बीच) की तुलना में बहुत अधिक था। इसी तरह पंजाब में सिखों की आबादी 58 प्रतिशत है। फिर भी 2019 में 51 प्रतिशत और 2018 में 52 प्रतिशत  विचाराधीन कैदियों के रूप में कम प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि मुस्लिम (जनसंख्या का 2 प्रतिशत) अधिक प्रतिनिधित्व करते हैं- 4 से 5 प्रतिशत।

यकीनन ये विस्तृत आंकड़े बहुत परेशान करने वाले हैं। लगभग हर राज्य की जेलों में अल्पसंख्यक कैदी अधिक हैं और बहुसंख्यकों का प्रतिनिधित्व कम है। यह पुलिस के सांप्रदायिकरण का स्पष्ट संकेत है, जो सत्ताधारी दल की विचारधारा के बावजूद प्रबल होता है। इस स्थिति को ठीक करने का एकमात्र तरीका अल्पसंख्यक समुदायों के पुलिसकर्मियों की भर्ती और पदोन्नति हो सकती है। दरअसल, जम्मू-कश्मीर को छोड़कर आईपीएस अधिकारियों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व कम ही है।

Your email address will not be published. Required fields are marked *