हाल ही में लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, परिदृश्यीय आग (लैंडस्केप फायर) जैसे कि सर्दियों में उत्तरी भारत में पराली जलाने के कारण होने वाले प्रदूषण से 2000 से 2019 के बीच भारत में हर साल औसतन 1.2 लाख से अधिक मौतें हुई हैं।
लैंडस्केप फायर में न केवल कृषि क्षेत्र में पराली जलाना शामिल है, बल्कि जंगलों, घास के मैदानों, और वन्य क्षेत्रों में लगने वाली आग भी आती है। अध्ययन के अनुसार, इन आगों से होने वाले वायु प्रदूषण के कारण भारत में 20 वर्षों के दौरान लगभग 25.54 लाख मौतें श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों के कारण हुईं। वैश्विक स्तर पर, इन आगों के कारण 15.3 लाख मौतों का आकलन किया गया है, जिसमें चीन पहले स्थान पर है, उसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और फिर भारत का स्थान है।
मेलबर्न स्थित मोनाश यूनिवर्सिटी के क्लाइमेट, एयर क्वालिटी रिसर्च (CARE) यूनिट के प्रमुख यूमिंग गुओ द्वारा संचालित इस अध्ययन में दिखाया गया है कि आग के दौरान निकलने वाले सूक्ष्म कण (PM2.5) और ओजोन के कारण स्वास्थ्य पर कितना बड़ा जोखिम है।
गुओ ने कहा, “परिदृश्यीय आग की लपटें और गर्मी आग के पास मौजूद लोगों के लिए घातक हो सकती हैं, लेकिन असली खतरा उस प्रदूषण से है जो सैकड़ों और हजारों किलोमीटर दूर तक यात्रा कर बड़ी आबादी को प्रभावित करता है।”
जलवायु परिवर्तन से बढ़ेगा जोखिम
गुओ ने बताया कि वैश्विक PM2.5 उत्सर्जन का कम से कम 90% हिस्सा वन्य आग (वाइल्डफायर) से आता है, और जलवायु परिवर्तन के साथ यह आंकड़ा और बढ़ने की संभावना है। अध्ययन ने सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को भी उजागर किया, जिसमें आग के प्रदूषण से होने वाली श्वसन बीमारियों के कारण गरीब देशों में मौतें अमीर देशों की तुलना में चार गुना अधिक थीं।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट, इंडिया के एयर क्वालिटी निदेशक प्रकाश दोराईस्वामी ने बड़े पैमाने पर आग लगने की घटनाओं के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, “ये आग सूक्ष्म कणों, काले कार्बन और अन्य प्रदूषकों को उत्सर्जित करती हैं, जो श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों को बढ़ाती हैं और जलवायु परिवर्तन को तेज करती हैं। इन आगों से सैकड़ों किलोमीटर दूर तक वायु गुणवत्ता खराब होती है, जिससे दीर्घकालिक पर्यावरणीय नुकसान होता है।”
रोकथाम और जागरूकता उपाय
इन आगों को रोकने के लिए जंगलों में स्वयंसेवकों को “फायर वॉचर्स” के रूप में नियुक्त किया जाता है। पुणे सर्कल के मुख्य वन संरक्षक एन.आर. प्रवीण ने कहा, “महाराष्ट्र के लगभग 20% भूभाग पर जंगल हैं। 2019 में अच्छी बारिश के कारण आग की घटनाएं कम हुईं, लेकिन आम तौर पर हर साल कम से कम 1,000 आग की घटनाएं होती हैं। पराली जलाने जैसी सस्ती विधियों के कारण यह समस्या होती है, जो कृषि भूमि से जंगलों तक फैल जाती है। इसीलिए सर्दियों की शुरुआत में जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।”
अध्ययन यह दर्शाता है कि परिदृश्यीय आग से होने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरों को कम करने के लिए वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है।
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