अशोकनगर में रेडब्रिक्स स्कूल तब विवादों में घिर गया, जब प्राइमरी क्लास के बच्चों को “सेक्स एजुकेशन” के बाद स्कूल बस में शरीर के अंगों पर खुलेआम बात करते सुना गया।
वैसे प्रिंसिपल सुतापा मिश्रा अपने रुख पर कायम हैं। उन्होंने कहा कि शारीरिक अंगों को लिंगभेद (sexuality) के साथ समझाना जरूरी है। लेकिन छह साल के बच्चों के माता-पिता तब हैरान रह जाते हैं, जब उनके बच्चे घर में “योनि (vagina),” “लिंग (penis,),” “भग (vulua,),” “गुदा (anus),” और “निपल्स” जैसे शब्द बोलने लग जाते हैं।
दरअसल रेडब्रिक्स (अशोकनगर) में “कंप्रिहेंसिव सेक्सुअलिटी एजुकेशन” के तहत पहली और दूसरी क्लास के छात्रों ने दिसंबर में “अपने शरीर को समझें” वाले सेशन में भाग लिया था।
इस सिलसिले में दिसंबर 2022 में जारी सर्कुलर में कहा गया, “कंप्रिहेंसिव सेक्सुअलिटी एजुकेशन” के तहत पहली और दूसरी क्लास के बच्चों को ‘अपनी सुरक्षा’ मॉड्यूल के तहत दोस्ती और जेंडर की भूमिकाओं के बारे में जानना है। उनके लिए कार्यों के आधार पर शरीर के अंगों को जानना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, बच्चे को यह बताना कि बच्चे गर्भाशय से आते हैं, जिसके लिए ‘पेट’ शब्द का उपयोग ठीक नहीं है। इसी तरह के उन शब्दों के बारे में बताया जाता है, जो उनके शरीर के भाग हैं। जैसे: जननांग (Genitals), गुदा (Anus), स्तन (Breasts), योनि (Vagina), भग (Vulva) और लिंग (Penis)।”
हाल ही में जब स्कूल ने “हाउ टू बी सेफ पेरेंट्स” विषय पर माता-पिता के लिए एक सेमिनार किया, तो उनमें से कई ने मानव शरीर रचना के प्रति कोमल मन को उजागर करने पर चिंता जताई। अभिभावकों (Parents) का आरोप है कि पिछले साल ऐसा सेशन शुरू करने से पहले स्कूल ने उनकी सहमति नहीं ली थी। हालांकि, प्रिंसिपल ने कहा: “कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करना है, जिससे उन्हें आज की दुनिया में बदलते हालातों से निपटने में मदद मिल सके। यह कार्यक्रम बच्चों को सुरक्षित और असुरक्षित स्थितियों के बारे में जागरूक करता है। साथ ही भरोसेमंद वयस्कों के साथ अपने शरीर की सुरक्षा और अनुभवों के बारे में प्रभावी ढंग से बात करना सीखाता है। यह कार्यक्रम रिसर्च पर आधारित है। साथ ही यह यूनेस्को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework ) और बच्चों के संरक्षण (Protection of Children’s Rights) के लिए राष्ट्रीय आयोग द्वारा तैयार किए गए अंतर्राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुरूप है।”
उन्होंने कहा कि स्कूल माता-पिता को पार्टनर है और उन्होंने उन्हें सेशन के बारे में सूचित किया था। स्कूल बस की घटना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा: “छोटे बच्चे स्वाभाविक रूप से जिज्ञासु होते हैं और अपने दैनिक जीवन में कई तरह के प्रभावों में होते हैं। ऐसी किसी भी घटना को सीधे तौर पर इन सत्रों से नहीं जोड़ा जा सकता है। हमारे पास दो पूर्णकालिक प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक (full-time trained psychologists) हैं। वे नियमित आधार पर बच्चों की सामाजिक-भावनात्मक चिंताओं को दूर करने के लिए उनके साथ काम करते हैं।”
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