सौराष्ट्र के दूर है खिजड़िया गांव। वहां रहता था नलिन नाम का बड़े सपनों वाला एक छोटा लड़का। पढ़ाई से थी उसे नफरत। लेकिन अमरेली के बाहर खिजड़िया रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने में पिता की मदद करता। वह फिल्मों का बड़ा शौकीन था।
इस क्षेत्र में अभी भी फिल्मों को फिल्लम ही कहा जाता है, जो इन अविकसित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए जमीनी सच्चाई से दूर जाने (reality for people living in these underdeveloped areas) का एकमात्र सहारा था।
भावनगर जिला तब हाशिये पर एक उपेक्षित जिला (neglected district) था, जिसमें राजकोट सभी क्षेत्रों में आगे (Rajkot surpassing it in all sectors) हुआ करता था। गुजरात में भावनगर जिले को रिटायर लोगों का स्वर्ग (paradise for retired people) कहा जाता था। फिर भी वहां कला, संस्कृति का बोलबाला रहा। तब खिजड़िया और अमरेली भावनगर जिले का हिस्सा थे।
अब 57 साल की उम्र में पान नलिन के नाम वाले नलिन के पास अब शिकायत करने के लिए कुछ भी नहीं है। दरअसल उनका पूरा नाम नलिन पांड्या है।
उनकी फिल्म छेलो शो इस साल ऑस्कर के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि (official entry for the Oscars) है। दरअसल यह वही चाय बेचने वाले नलिन अरविंदकुमार पांड्या हैं।
नलिन जिस अदतला गांव में पैदा हुए, वहां कोई सिनेमा हॉल नहीं था। फिर भी वह बड़े सपने और फिल्में देखने से नहीं (it did not deter him from dreaming big and dreaming movies) रुके। उन्होंने पहली बार फिल्म नौ साल की उम्र में देखी थी। उन्होंने अपना भविष्य तभी तय कर लिया था। सपना था- फिल्म निर्माता बनने (His dream was to be a filmmaker) का।
अमरेली जिले (तत्कालीन भावनगर जिले) के लाठी तालुका के एक छोटे-से गांव अदतला में जन्मे नलिन की टेलीविजन तक पहुंच नहीं थी, सिनेमा थिएटरों को तो भूल ही जाइए।
1965-66 के आसपास अदतला गांव की कल्पना कीजिए, जब नलिन पांड्या का जन्म हुआ था। आज अदतला की आबादी लगभग 4500 है। 2011 की जनगणना के अनुसार, 2187 लोग थे। सिर्फ 457 परिवार। साठ के दशक में पास के खिजड़िया रेलवे स्टेशन पर रमणीक पांड्या की चाय की दुकान थी। उनके बेटे नलिन, जिन्हें पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं थी, ने चाय की दुकान पर उनकी मदद की।
दुनिया में हर कोई जानता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरक्की वडनगर रेलवे स्टेशन से हुई, जहां उन्होंने अपने पिता की मदद की। उनके पिता के पास भी चाय की दुकान थी। लेकिन बहुत से लोग नहीं जानते कि नलिन पांड्या ने चाय बेचने में पिता की मदद करते हुए, अपने सपनों को पूरा करने की कैसी कोशिश की, वह भी बिना अच्छे अकादमिक रिकॉर्ड (not many know that Nalin Pandya, while helping his father sell tea, plotted how to escape to achieve his dreams minus a brilliant academic record) के।
नलिन पांड्या की कहानी
जब वह बड़े हुए और किशोरावस्था को पार (When he grew and crossed his teens) कर गए, तब उन्होंने बस यही किया। वह गांव से भाग गए। उन्होंने कुछ समय वडोदरा में बिताया। आजादी से पहले अमरेली बड़ौदा राज्य का हिस्सा था, इसलिए बड़ौदा नलिन की पहली मंजिल (Amreli was a part of the Baroda State before independence so Baroda was Nalin’s first destination) बना। वहां उन्होंने कड़ी मेहनत की। काफी मशक्कत के बाद एमएस यूनिवर्सिटी के ललित कला विभाग (fine arts department) में दाखिला मिला। अब तक हॉलीवुड नलिन का पहला प्यार बन चुका था। यह प्यार तब और मजबूत हुआ, जब नलिन अहमदाबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन (National Institute of Design-NID) में आए। यहीं पर उन्होंने पहली बार ऑस्कर को जाना। तब से नलिन ऑस्कर समारोह को लाइव देखने से (Nalin has never missed watching the Oscars ceremony live) कभी नहीं चूके। पान नलिन कहते हैं, “यह सपने के सच होने जैसा था। इस तरह ऑस्कर समारोह देखने से मुझे अलग तरह की संतुष्टि मिलती।” जवानी में नलिन ने मुंबई में बसने का सपना देखना शुरू कर दिया, क्योंकि बॉलीवुड ही मुंबई था।
क्या है फिल्म की कहानी
छेलो शो का मतलब है अंतिम फिल्म शो (The Last Show ), जो मनोरंजक (हालांकि नलिन के शब्दों में- ज्ञानवर्धक) है। फिल्म समय नामक एक युवा लड़के के बारे में है, जो फिल्मों का दीवाना (who is fascinated with movies) है। समय की मल्टीप्लेक्स तक पहुंच नहीं है। यह कहानी जिस समय की है, तब प्रोजेक्टर के जरिये ही फिल्में दिखाई जाती थीं, तब वही मूविंग थियेटर हुआ करता था। छेलो शो दरअसल अपने दौर की कहानी पर (Chhello Show is a coming of age drama) आधारित है। यह 14 अक्टूबर को रिलीज होने वाली है। ऑस्कर 12 मार्च 2023 को होने वाला है।
छेलो शो का है पान नलिन के साथ वास्तविक जीवन से संबंध
भाविन रबारी द्वारा निभाए गए छेलो शो में नायक समय की रील लाइफ पान नलिन के वास्तविक जीवन से गहराई से जुड़ी (deeply connected to the real life of Pan Nalin) हुई है। नलिन की तरह समय को भी फिल्मों का शौक है। नलिन की तरह समय भी अमरेली जिले में रहता है। पान नलिन ने इस फिल्म की शूटिंग अमरेली जिले के एक छोटे-से गांव चलाला में की थी। छेलो शो दरअसल एक बच्चे की नजर से फिल्म बनाने के बारे में मजेदार फिल्म है।
छेलो शो दरअसल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के एक छोटे-से गांव के बड़ी आंखों वाले नायक समय की कहानी है, जो एक बार एक सिनेमाघर में फिल्म देखने जाता है और फिर जीवनभर के लिए ‘फिल्लम’ के प्यार में पड़ जाता है।
इस फिल्म का पिछले साल अमेरिका में ट्रिबेका फिल्म फेस्टिवल में प्रीमियर हुआ था। इसे गिर सोमनाथ, जूनागढ़, अमरेली और राजकोट जिलों में शूट किया गया है। नलिन ने काम को दिल के बहुत करीब (very intimate and organic) बताया है, क्योंकि उन्होंने सौराष्ट्र की उन जगहों पर शूटिंग करने का फैसला किया, जहां वह पले-बढ़े।
सिद्धार्थ रॉय कपूर और अन्य द्वारा निर्मित छेलो शो दुनिया भर के विभिन्न फिल्म समारोहों में दिखाई जा रही है। भाविन रबारी, भावेश श्रीमाली, ऋचा मीणा, दीपेन रावल और परेश मेहता जैसे अभिनेताओं वाली फिल्म पहले ही स्पेन के 66 वें वलाडोलिड फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन स्पाइक सहित कई पुरस्कार जीत ( the movie has already won multiple awards including the Golden Spike at the 66th Valladolid Film Festival in Spain) चुकी है।
क्या छेलो शो पान नलिन की पहली फिल्म है?
बीबीसी, नेशनल ज्योग्राफिक और डिस्कवरी चैनल के लिए डॉक्यूमेंट्री बनाने के बाद पान नलिन फ्रांस चले गए। फिर वहां से वह हॉलीवुड चले गए। उन्होंने फ्रांसीसी प्रोडक्शन कंपनी आर्टे के साथ अपना पहला डॉक्यू-ड्रामा ‘बॉर्न क्रिमिनल’ (He made his first docu-drama ‘Born Criminal’ with French production company Arte) बनाया। इसके बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। निर्देशक के रूप में उनकी पहली फीचर फिल्म (His first feature film as director) संसार थी। उसने दुनिया भर में जमकर कमाई की थी। इसके लिए उन्हें कुछ अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। फिल्म संसार अब तक 25 मिलियन डॉलर की कमाई कर चुकी है।
ऑस्कर में भारतीय फिल्में
पिछले साल ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि (official entry) के रूप में तमिल फिल्म कूझंगल (कंकड़) देखी गई थी, जो टॉप-5 में जगह बनाने में विफल रहा। यह फिल्म विनोथराज पीएस द्वारा निर्देशित थी। यह तमिलनाडु के रेगिस्तान में अपनी पत्नी की तलाश करने वाले एक व्यक्ति के बारे में थी, जो घरेलू हिंसा के कारण भाग गई थी। वैसे भारतीय फिल्मों की बात करें तो आमिर खान की ब्लॉकबस्टर लगान (2001) टॉप-5 में पहुंचने वाली आखिरी फिल्म थी। इससे पहले, मदर इंडिया (1958) और सलाम बॉम्बे (1989) ने फाइनल में जगह बनाई थी। द गुड रोड पहली गुजराती फिल्म थी, जिसे 2013 में ऑस्कर के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन इसने कोई छाप नहीं छोड़ी।