पाब्लो पिकासो के कुछ संवाद शायद आज के दौर में ट्विटर के सर्वरों को जलाने क्षमता रखते हैं जैसे की उनका प्रचलित संवाद जिसमे उन्होंने कहा था की “मेरे लिए महिलायें या तो देवी हैं या तो डोरमैट”
महिलाओं के साथ पाब्लो पिकासो का ट्रैक-रिकॉर्ड निश्चित रूप से आज के दौर में निश्चित रूप से उन्हे एक नारीवादी इंसान के रूप में स्वीकार नहीं करेगा, पाब्लो पिकासो की दो पत्नियां थीं और कम से कम छह सहनिवासी थी, पाबलों की अनगिनत प्रेमिकाएं थीं और प्रेमिकाओं के बीमार होने पर उन्हे त्यागने की प्रवृत्ति हर किसी को मालूम है, पाबलो पिकासो की वेश्याओं के प्रति चाह जग जाहीर थी एवं उनके ये सारे गुण कहीं न कहीं उनकी कला में भी अवतरित हुए हैं जैसे उनका कहना की “मेरे लिए महिलायें या तो देवी हैं या तो डोरमैट”
उनके इस रवैये को ढाँकने की पुरजोर कोशिशें भी हुई हैं, जैसे 1973 में उनकी मृत्यु के तुरंत बाद से उनके परिवार के सदस्यों ने किताबों और लेखों के माध्यम से उनके इस रवैये का पुनर्नवीनीकरण किया ।लेकिन Meetoo के बाद की दुनिया में, यह उन लोगों के लिए एक चुनौती समान है जो उनकी विरासत को संभाले हुए हैं
पेरिस में पिकासो संग्रहालय की निर्देशक सेसिल डेब्रे ने कहा “जाहिर तौर पर मीटू ने कलाकार की छवि को कलंकित किया है” और उन्होंने ये भी कहा की पाब्लो पिकासो पर हमले निस्संदेह रूप से अधिक हिंसक हैं क्योंकि पिकासो आधुनिक कला में सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय व्यक्ति हैं – वो एक ऐसी मूर्ति हैं जिन्हे लोग नष्ट कर देना चाहते हैं
ऐसा नहीं है कि इस मुद्दे को कालीन के नीचे दबाया जा रहा है पेरिस संग्रहालय ने हाल ही में महिला कलाकारों को बहस का जवाब देने के लिए आमंत्रित किया और फ्रांसीसी चित्रकार ओरलान द्वारा रचित “वीपिंग वीमेन आर एंग्री” पर चर्चा कारवाई वहीं बार्सिलोना में सिस्टर संग्रहालय कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है और इस मुद्दे को खोलने के लिए कला इतिहासकारों और समाजशास्त्रियों के साथ इस मुद्दे पर बातचीत कर रहा है।
इस विषय पर एक पुरस्कार विजेता फ्रेंच पॉडकास्ट ने पत्रकार सोफी चौवेउ की 2017 की किताब “पिकासो, द मिनोटौर” पर भारी झुकाव रखते हुए बहस को फिर से शुरू कर दिया है जिसमें पाब्लो पिकासो को “हिंसक ईर्ष्यालु विकृत विनाशकारी” कहा गया है
पिकासो संग्रहालय की निर्देशक सेसिल देब्रे ने कहा कि उनके कुछ दावे “बेतुके” थे और “ऐतिहासिक संदर्भों के अनुमान के बिना दिए गए थे लेकिन उन्होंने फिर भी चुनौती का स्वागत करते हुए कहा की “कला का इतिहास हमारे समय और नई पीढ़ियों के सवालों से ही पोषित होता है।”