2,000 मीटर स्टीपलचेज में 18 वर्षीया नई राष्ट्रीय रिकॉर्ड धारक सोनम दिल्ली के कोटला मुबारकपुर क्षेत्र में घर-घर पार्सल पहुंचाती हैं। ऐसा तब करती है, जब ट्रेनिंग नहीं ले रही होती है। उसके पिता बुलंदशहर में एक ईंट भट्ठे में काम करते हैं। मां खेतिहर मजदूर है।
यह बाधाओं से जूझती उसकी यात्रा है। वह उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के हुरथला गांव में एक दलित बस्ती में एक कमरे के घर से भोपाल में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पोडियम के शीर्ष पर 6 मिनट और 45.71 सेकंड के रिकॉर्ड तोड़ दौड़ के साथ पहुंची।
सोनम का दर्जा ऊंचा है, क्योंकि उसने वर्तमान में भारत की सर्वश्रेष्ठ स्टीपलचेज़र पारुल चौधरी के दशक पुराने रिकार्ड को बेहतर किया है। भोपाल से घर लौटने के बाद उसे 5 किलोमीटर की विजय परेड में गांव में एक खुली जीप में ले जाया गया, जहां उसने बीआर अम्बेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। परिवार साथ खड़ा था।
सात भाई-बहनों में पांचवें नंबर की सोनम ने कहा, “जब आप यह सुनिश्चित नहीं करते हैं कि आपको अपना अगला भोजन मिलेगा या नहीं, तो आप बड़ा सपना नहीं देख सकते हैं।” उसके पिता की 300 रुपये की दैनिक मजदूरी पर निर्भर बड़े परिवार के लिए मेज पर भोजन करना मुश्किल था।
सोनम की मां कश्मीरा देवी दो काम करती हैं – खेत में और भैंसों की देखभाल। उन्होंने कहा, “जब एक भैंस गर्भवती हो जाती है, तो वह बच्चे को जन्म देने तक दूध देना बंद कर देती है। इसलिए इस दौरान हम अन्य लोगों की भैंसों को लेकर खिलाते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। बदले में वे हमें एक छोटी राशि का भुगतान करते हैं। ”
सोनम ने कहा, “मैं अक्सर खाली पेट सोती थी। जब आलू की कीमत गिरती थी, तो मेरी मां उन्हें थोक में खरीदती थी। वह उन्हें उबाल कर धूप में सुखाती थी ताकि वे अधिक समय तक टिके रहें।”
18 साल की इस लड़की को दौड़ने वाले कीड़े ने तब काट लिया था, जब उसने अपने गांव के लड़कों को सेना के लिए ट्रेनिंग लेते देखा था। एक ट्रेनी ने सोनम से कहा, ‘तुम फील्ड में इतना मेहनत करती हो, अगर तुम स्पोर्ट्स में इतनी मेहनत करोगी तो बहुत आगे जाओगी।’
उसके पिता वीर सिंह ने इसे सोनम के लिए अवसर के रूप में देखा। उन्होंने कहा, “मैं नहीं चाहता था कि मेरी बेटी का जीवन मेरे जैसा हो… हमें भट्टी को रेत से ढंकना होगा और उस पर चलना होगा। एक ईंट भी ढीली हुई तो हम चूसे जायेंगे। गरमी से हमारी चप्पलों के तलवे पिघल जाते हैं। हम उन पर लकड़ी के तख्तों को बांधते हैं। गर्मी के अलावा, हम इतनी अधिक धूल अंदर लेते हैं कि ईंट भट्ठे पर काम करने वाले सभी लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है।”
इसलिए चार साल पहले सोनम गाजियाबाद में अपने चाचा के घर चली गईं, जहां उन्होंने एक एथलीट के साथ स्थानीय स्टेडियम में प्रशिक्षण शुरू किया। लेकिन स्टेडियम में कौन प्रशिक्षण ले सकता है, इस पर सख्त नियम बाधा साबित हुए और दिल्ली जाना ही एकमात्र विकल्प था।
सोनम ने कहा, “मैंने केवल जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के बारे में सुना था। मुझे बताया गया था कि केवल शीर्ष एथलीट ही वहां प्रशिक्षण लेते हैं, इसलिए मुझे यकीन नहीं था कि मुझे वहां प्रवेश मिलेगा। ” लेकिन दिल्ली राज्य के मुख्य कोच दिनेश रावत ने युवा खिलाड़ी में प्रतिभा देखी और उसका समर्थन किया।
महामारी की चपेट में आने पर उसे एक और क्यूरबॉल का सामना करना पड़ा। उसके पिता का ईंट भट्ठा अस्थायी रूप से बंद हो गया था। सोनम तब अपने परिवार की आर्थिक मदद करना चाहती थी।
सोनम ने कहा, “हमारे पड़ोसी (दिल्ली के कोटला मुबारकपुर इलाके में) ने हमें बताया कि एक काम है– मंडी से आस-पास की हाउसिंग सोसाइटी में सब्जियां पहुंचाना। महामारी के कारण लोग अपने घरों से बाहर निकलने से डर रहे थे, इसलिए डिलीवरी वालों की मांग थी।”
मुबारकपुर कोटला में ऐसी कोई गली नहीं है जिससे सोनम परिचित न हों। कहती है, “इलाके के कई लोग मुझे एक डिलीवरी एजेंट के रूप में पहचानते हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि इस पदक से लोगों को यह भी एहसास होगा कि मैं एक पेशेवर एथलीट हूं।”