गुजरात समेत पूरे देश में हड़कंप मचाने वाले नरोदा गाम नरसंहार (Naroda Gam Massacre) मामले में भद्र सिटी सिविल एंड सेशंस न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश व पीठ के विशेष न्यायाधीश शुभदा कृष्णकांत बख्शी (Justice Shubhada Krishnakant Bakshi) ने 20 अप्रैल को सभी 67 अभियुक्तों के रिहाई का आदेश दे दिया था. सबूतों के अभाव में भाजपा की पूर्व मंत्री माया बहन कोडनानी, विहिप के डॉ. जयदीप पटेल, समेत अन्य आरोपियों को बरी करने के लिए 1,728 पन्नों का ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया. इस फैसले को आज न्यायिक वेबसाइट पर अपलोड किया गया है।
अदालत ने फैसले में टिप्पणी की है कि “यह साबित नहीं होता है कि अभियुक्तों ने आपराधिक साजिश रची है, अवैध संघ बनाया है या किसी को जिंदा जलाया है. एसआईटी (SIT) के जांच अधिकारी ने बिना पुष्टि किए ही सीधे बयान के आधार पर चार्जशीट बना दी थी। जो संदेह पैदा करता है और पक्षपातपूर्ण मकसद के तहत जांच की गई है। इसलिए सभी अभियुक्तों को बरी करने का आदेश दिया जाता है क्योंकि अभियोजन पक्ष अपना मामला साबित नहीं कर सका।”
इसके अलावा न्यायालय ने मुख्य रूप से इन बिदुओं पर भी टिप्पणी की:
- आरोपियों ने चारों को जिंदा नहीं जलाया, पटाखों से रूई में लगी आग से उनकी मौत हुई।
- एसआईटी ने बिना सत्यापन के बयानों के आधार पर चार्जशीट दायर की है, यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने कोई अपराध या हत्या की है।
- ठाकोरवास की तरफ से मुस्लिम मोहल्ले पर पथराव नहीं हुआ था, उस वक्त ठाकोरवास में बारहवीं-तेरहवीं की रस्म चल रही थी।
- एसआईटी की कार्यप्रणाली पर गंभीर संदेह जताते हुए पाया कि यह किसी भी अपराध को साबित करने में विफल रही है।
अदालत ने फैसले में आगे कहा कि, मामले की जांच के दौरान आरोपियों ने अब्दुल सत्तार सुगराबीबी, रजियाबाबी, करीमा बीबी किसी को जिंदा नहीं जलाया। लेकिन रफीक नडीयादी और अब्दुल जीवा के घर में पटाखों से आग लग गई और बगल के पिंजारा के घर में रखी रूई में आग लगने के कारण वे घर से बाहर नहीं निकल सके क्योंकि वे चल नहीं सकते थे. इस प्रकार घर में आग लग गई और दुर्भाग्य से चारों की मौत हो गई। इस प्रकार, उन्हें जिंदा जलाने में किसी भी अभियुक्त की संलिप्तता साबित नहीं होती है और जांच भी ऐसी संलिप्तता का समर्थन नहीं करती है। इसी तरह, अभियोजन साक्ष्य के तहत यह साबित नहीं कर सका कि गुडलक टायरवाला मोहम्मद रफीक और उनके बेटे अलाउद्दीन को और अब्दुल सत्तार के घर में लोगों को और मदीनाबेन के घर के लोगों को जिंदा जला दिया गया था.
विशेष न्यायाधीश शुभदा बख्शी (Justice Shubhda Bakshi) ने फैसले में कहा कि यह तथ्य भी स्पष्ट है कि 28-2-2002 को ठाकोरवास से मुस्लिम मोहल्ले पर कोई पथराव नहीं हुआ था. क्योंकि उस दिन संबंधित आरोपी वहां मौजूद नहीं था। इस तथ्य के समर्थन में साक्ष्य अभियोजन पक्ष के समक्ष ही प्रस्तुत किए गए हैं। क्योंकि घटना वाले दिन ठाकोरवास में आरोपी के एक रिश्तेदार की मौत की बारहवीं-तेरहवीं रस्म थी.
अदालत ने यह भी नोट किया कि इस मामले में घटना के दिन अभियुक्तों की उपस्थिति, समय और स्थान सुसंगत नहीं है और कुछ अभियुक्तों के मामले में दोनों पक्षों की दीवानी कार्यवाही के कारण अभियुक्तों की संलिप्तता ही सामने आती है। इस प्रकार, नरोदा गाम नरसंहार की घटना के संबंध में प्रस्तुत किए गए सभी साक्ष्य किसी भी तरह से इस तथ्य का समर्थन नहीं करते हैं कि किसी भी अभियुक्त ने एक अवैध संघ बनाया, आपराधिक साजिश को अंजाम देने में कोई दुराचार किया और किसी को जिंदा जला दिया। अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ अपराध साबित करने में पूरी तरह से विफल रहा है।
एसआईटी जांच पर उठाया सवाल
सीट कोर्ट की विशेष न्यायाधीश शुभदा बख्शी ने नरोदा गाम नरसंहार मामले में विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच पर बेहद गंभीर सवाल उठाए और अपने फैसले में इसकी आलोचना की। विशेष जज ने सीट जांच में हुई गड़बड़ी और खामियों को लेकर भी फैसले में गंभीर टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जांच अधिकारी को आगे कोई जांच नहीं करनी थी, बल्कि जो जांच की गई थी उसके अनुसार ही आगे की जांच की जानी थी. लेकिन जांच अधिकारी द्वारा की गई पूरी जांच को देखकर लगता है कि आगे कोई जांच नहीं की गई है। कोर्ट ने मुख्य जांच अधिकारी की भूमिका के बारे में गंभीर अवलोकन किया है।
न्यायालय ने कहा, नरोदा गाम में 21 जगहों पर जहां गैस सिलेंडर टूटे, वहां के मालिक का बयान लिया गया. लेकिन गैस सिलेंडर के संबंध में कोई रिकार्ड नहीं मिला। एसआईटी की पूरी जांच देख यह स्पष्ट है कि पूरी कार्यवाही डॉ. मायाबेन कोडनानी को अपराध में फंसाने की दृष्टि से आयोजित की गई थी, ताकि उन्हें एक आपराधिक साजिशकर्ता के रूप में रिकॉर्ड में रखा जा सके। 28 मई को गोता के आसपास सोला सिविल अस्पताल के टावर की लोकेशन सुबह दिख रही थी. ऐसे में कॉल डिटेल देखकर नरोदा गाम में, या उसके नजदीक कहीं भी मायाबेन कोडनानी की मौजूदगी नहीं दिख रही है.
अदालत ने आगे कहा कि एसआईटी के जांच अधिकारी ने बिना किसी यथार्थता या सटीकता के सीधे बयानों के आधार पर आरोप पत्र तैयार किया था, जो संदेह पैदा करता है और एक पक्षपातपूर्ण मकसद के तहत बनाया गया प्रतीत होता है। एसआईटी ने जांच के दौरान लिए गए बयानों को चार्जशीट में शामिल नहीं किया है। एसआईटी ने 8 से 10 बार नरोदा गाम का दौरा किया। जिसमें शिनाख्त परेड, सरनेम पंचनामा व शव स्थिति पंचनामा को जांच में शामिल किया गया। घर में घरेलू गैस सिलेंडर फट गए लेकिन उस समय गैस कनेक्शन वैध थे? इस संबंध में कोई जांच नहीं की गई। जांच में न तो गैस एजेंसी के रजिस्टर पकड़े गए और न ही गैस सिलेंडर के स्टॉक के तथ्य।
यह था मामला
गुजरात में अहमदाबाद के नरोदा गाम में 28 फरवरी 2002 को सांप्रदायिक दंगे के दौरान 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में 86 आरोपी बनाए गए थे, जिनमें गुजरात सरकार की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी भी शामिल थे. नरोदा गाम में नरसंहार उस साल के नौ बड़े सांप्रदायिक दंगा मामलों में से एक था. नरसंहार के 21 साल बाद गुरुवार, 20 अप्रैल को इस मामले में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की पूर्व मंत्री माया कोडनानी, बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी और विश्व हिंदू परिषद के नेता जयदीप पटेल सहित सभी 67 आरोपी बरी कर दिए गए हैं.
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