प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूरोपीय देशों के अपने तीन दिवसीय दौरे के दौरान नॉर्डिक देशों के विभिन्न गणमान्य व्यक्तियों को उपहार देने के लिए जिन वस्तुओं को चुना है, वे भारत की समृद्ध और विविध परंपराओं को दर्शाती हैं।
सरकारी सूत्रों ने बताया कि मोदी ने गुजरात के कच्छ में प्रचलित एक ‘रोगन चित्रकला’ डेनमार्क की महारानी मार्गेरेट को, बनारस से राजकुमारी मरियम के लिए चांदी की मीनाकारी पक्षी की आकृति और राजस्थान के हस्तशिल्प का नायाब नमूना ‘पीतल का पेड़’ फिनलैंड की अपनी समकक्ष को उपहार में दिया।
उन्होंने राजस्थान से कोफ्तगिरी कला के साथ ढाल और कच्छ कढ़ाई के साथ एक वाल हैंगिंग क्रमशः नॉर्वे और डेनमार्क के प्रधानमंत्रियों को भेंट की, जबकि अपने स्वीडिश समकक्ष को जम्मू-कश्मीर की विशेष शैली में सुसज्जित बॉक्स में एक पश्मीना स्टोल भेंट की।
मोदी ने डेनमार्क के क्राउन प्रिंस फ्रेड्रिक को छत्तीसगढ़ की पहचान ‘डोकरा नाव’ भेंट की। ये उत्पाद दरअसल आदिम सादगी, मोहक लोक रूपांकनों और सशक्त रूप के कारण घरेलू और विदेशी बाजारों में बहुत मांग में हैं।
अधिकारियों ने बताया कि डोकरा गैर-लौह धातु है, जो मोम कास्टिंग तकनीक से बनाई जाती है। इस प्रकार की धातु का उपयोग भारत में 4,000 से अधिक वर्षों से किया जा रहा है और अभी भी इसका उपयोग किया जाता है।
रोगन पेंटिंग में उबले हुए तेल और वनस्पति रंगों से बने पेंट को धातु के ब्लॉक (प्रिंटिंग) या स्टाइलस (पेंटिंग) का उपयोग करके कपड़े पर बिछाया जाता है। 20 वीं शताब्दी के अंत में यह शिल्प लगभग समाप्त हो गया।
बनारसी मीनाकारी कार्य का उल्लेख करते हुए अधिकारियों ने बताया कि बनारस (वाराणसी) में प्रचलित चांदी की तामचीनी की कला लगभग 500 वर्ष पुरानी है और इसकी जड़ें मीनाकारी की फारसी कला में हैं। मीना कांच के लिए फारसी शब्द है।
उन्होंने कहा कि जीवन का वृक्ष जीवन के विकास का प्रतीक है, और यह हस्तनिर्मित दीवार सजावटी कला-टुकड़ा पीतल से बना है। यह भारत की उत्कृष्ट शिल्प कौशल और समृद्ध परंपरा का बेजोड़ उदाहरण है। पेड़ की जड़ें पृथ्वी के साथ संबंध का प्रतिनिधित्व करती हैं, पत्ते और पक्षी जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं और मोमबत्ती स्टैंड प्रकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।
धातु पर तारकाशी या कोफ्तगिरी राजस्थान की एक पारंपरिक कला है, जिसका हथियारों और कवच को सजाने के साधन के रूप में इस्तेमाल होता है। आज इसे चित्र फ्रेम, बक्से, चलने की छड़ें और सजावटी तलवारें, खंजर और ढाल जैसे युद्ध के सामान जैसी वस्तुओं की सजावट में बदल दिया गया है। कच्छ कढ़ाई गुजरात में कच्छ जिले के आदिवासी समुदाय की हस्तशिल्प और वस्त्र हस्ताक्षर कला परंपरा है। अधिकारियों ने बताया कि इसकी समृद्ध डिजाइनों ने भारतीय कढ़ाई परंपराओं में उल्लेखनीय योगदान दिया है।
इसी तरह विलासिता और लालित्य की प्रतीक कश्मीरी पश्मीना स्टोल है। इसकी गिनती दुर्लभ सामग्री, उत्तम शिल्प कौशल और याद दिलाने वाली डिजाइनों के रूप में प्राचीन काल से होती आ रही है। ये स्टोल जैसी गरमाहट और कोमलता प्रदान करती हैं, वह तुलना से परे है।
बता दें कि दो मई से जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस के तीन दिवसीय दौरे पर गए मोदी गुरुवार को भारत लौटने से पहले सात देशों के आठ विश्व नेताओं से मिलने के अलावा कई अन्य कार्यक्रमों में शामिल हुए।
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